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Supreme Court: लक्षद्वीप के अयोग्य सांसद की याचिका पर सुप्रीम सुनवाई आज, सदस्यता बहाली की मांग

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: वीरेंद्र शर्मा Updated Tue, 28 Mar 2023 05:19 AM IST
सार

वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, सात पत्र लिखे जा चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। वकील ने यह भी कहा कि केरल हाईकोर्ट से उनकी दोषसिद्धि और सजा पर रोक के खिलाफ लक्षद्वीप प्रशासन की ओर से दायर मामला मंगलवार को जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आ आएगा।

Supreme Court Hearing on Lakshadweep MP Mohammed Faizal Plea seeking withdrawal of disqualification
लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल - फोटो : सोशल मीडिया

विस्तार
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सुप्रीम कोर्ट सोमवार को लक्षद्वीप के अयोग्य सांसद (एनसीपी) मोहम्मद फैजल पीपी की सदस्यता बहाली में लोकसभा सचिवालय से की जा रही देरी के खिलाफ याचिका पर 28 मार्च को विचार करने पर सहमत हो गया। हत्या के प्रयास मामले में उनकी दोषसिद्धि और 10 साल की जेल की सजा पर 25 जनवरी को केरल हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी।


वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, सात पत्र लिखे जा चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। वकील ने यह भी कहा कि केरल हाईकोर्ट से उनकी दोषसिद्धि और सजा पर रोक के खिलाफ लक्षद्वीप प्रशासन की ओर से दायर मामला मंगलवार को जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आ आएगा। शीर्ष अदालत शुरू में मामले को पांच अप्रैल को सुनवाई करना चाहती थी, लेकिन बाद में उसने 28 मार्च को सुनवाई करने पर सहमति जताई।


हत्या के प्रयास का का है मामला 
हत्या के प्रयास के इस मामले में साल 2009 में केस दर्ज किया गया था। मामले से जुड़े वकील ने बताया कि जब 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान पदनाथ सालिह अपने पड़ोस में एक राजनीतिक मामले में दखल देने पहुंचे थे। इसी दौरान एनसीपी सांसद मोहम्मद फैजल और उनके साथियों ने पदनाथ सालिह पर हमला कर दिया। वहीं दोषी ठहराए गए सांसद मोहम्मद फैजल ने कहा कि राजनीति के तहत उन्हें फंसाया गया है।  निचली अदालत ने 11 जनवरी को इस मामले में दोषी ठहराते हुए 10 साल कैद की सजा सुनाई थी। बाद में, उच्च न्यायालय ने फैजल की दोषसिद्धि और सजा पर रोक लगा दी, जिसने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी। जनवरी में, उच्च न्यायालय के 25 जनवरी के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया, जिसने उसके समक्ष अपील के निस्तारण तक उसकी दोषसिद्धि और सजा को निलंबित कर दिया था। मामले में 37 आरोपी थे। उनमें से दो की मौत हो गई थी और उनके खिलाफ मुकदमा खत्म हो गया था। शेष 35 में से  अयोग्य सांसद और उनके भाई सहित चार आरोपियों को दोषी ठहराया गया और 10 साल कैद की सजा सुनाई गई, जबकि बाकी को बरी कर दिया गया।
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