वेतनभोगियों को भविष्य निधि पेंशन कितनी मिलेगी, यह जानने के लिए उन्हें अभी इंतजार करना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को वेतन के अनुपात में भविष्य निधि पेंशन देने के फैसले पर फिलहाल परोक्ष रूप से ‘रोक’ लगा दी है।
इससे पहले गत 31 जनवरी को कोर्ट ने वर्ष 2019 के अपने उस फैसले को वापस लेते हुए पुनर्विचार करने का फैसला लिया था जिसके तहत अधिकतम पेंशन योग्य वेतन प्रतिमाह 15 हजार रुपये की सीमा को खत्म कर अधिक पेंशन देने का रास्ता खुला था। वर्ष 2018 के केरल हाईकोर्ट के फैसले पर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगाई थी।
जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने बृहस्पतिवार को केरल, दिल्ली और राजस्थान हाईकोर्ट में केंद्र सरकार और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के खिलाफ चल रही अवमानना की कार्यवाही पर रोक लगा दी।
इससे साफ है कि वेतन के अनुपात में पेंशन देने के आदेश का अनुपालन न करने पर फिलहाल केंद्र सरकार और ईपीएफओ को दंडित नहीं किया जाएगा। इन सभी हाईकोर्ट में दायर अवमानना याचिकाओं में कहा गया है कि एक अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट से मुहर लगने के बाद सरकार और ईपीएफओ ने वेतन के अनुरूप पेंशन की रूपरेखा तैयार नहीं की है।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और ईपीएफओ की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सीए सुंदरम ने पीठ से सितंबर 2018 के केरल हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने की मांग की जिसमें वेतन के अनुसार पेंशन देने के लिए कहा गया था लेकिन पीठ ने फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया।
वास्तव में बृहस्पतिवार को जस्टिस ललित दो सदस्यीय पीठ में बैठे थे, जबकि इस मसले पर विचार तीन सदस्यीय पीठ कर रही है। श्रम मंत्रालय व ईपीएफओ द्वारा केरल हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करने का कारण है कि इससे पेंशन 50 गुना तक बढ़ सकती है।
पीठ ने इस मामले पर 23 मार्च से नियमित सुनवाई करने का निर्णय करते हुए सरकार और ईपीएफओ की याचिकाओं पर सभी प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया है। शीर्ष अदालत ने इस मामले को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि हम लोगों को अधिक इंतजार नहीं करवा सकते जो यह जानने के लिए बेकरार हैं कि पीएफ पेंशन का स्वरूप क्या होगा व भविष्य में उनके लिए क्या है।
वेतनभोगियों को भविष्य निधि पेंशन कितनी मिलेगी, यह जानने के लिए उन्हें अभी इंतजार करना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को वेतन के अनुपात में भविष्य निधि पेंशन देने के फैसले पर फिलहाल परोक्ष रूप से ‘रोक’ लगा दी है।
इससे पहले गत 31 जनवरी को कोर्ट ने वर्ष 2019 के अपने उस फैसले को वापस लेते हुए पुनर्विचार करने का फैसला लिया था जिसके तहत अधिकतम पेंशन योग्य वेतन प्रतिमाह 15 हजार रुपये की सीमा को खत्म कर अधिक पेंशन देने का रास्ता खुला था। वर्ष 2018 के केरल हाईकोर्ट के फैसले पर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगाई थी।
जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने बृहस्पतिवार को केरल, दिल्ली और राजस्थान हाईकोर्ट में केंद्र सरकार और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के खिलाफ चल रही अवमानना की कार्यवाही पर रोक लगा दी।
इससे साफ है कि वेतन के अनुपात में पेंशन देने के आदेश का अनुपालन न करने पर फिलहाल केंद्र सरकार और ईपीएफओ को दंडित नहीं किया जाएगा। इन सभी हाईकोर्ट में दायर अवमानना याचिकाओं में कहा गया है कि एक अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट से मुहर लगने के बाद सरकार और ईपीएफओ ने वेतन के अनुरूप पेंशन की रूपरेखा तैयार नहीं की है।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और ईपीएफओ की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सीए सुंदरम ने पीठ से सितंबर 2018 के केरल हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने की मांग की जिसमें वेतन के अनुसार पेंशन देने के लिए कहा गया था लेकिन पीठ ने फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया।
वास्तव में बृहस्पतिवार को जस्टिस ललित दो सदस्यीय पीठ में बैठे थे, जबकि इस मसले पर विचार तीन सदस्यीय पीठ कर रही है। श्रम मंत्रालय व ईपीएफओ द्वारा केरल हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करने का कारण है कि इससे पेंशन 50 गुना तक बढ़ सकती है।
पीठ ने इस मामले पर 23 मार्च से नियमित सुनवाई करने का निर्णय करते हुए सरकार और ईपीएफओ की याचिकाओं पर सभी प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया है। शीर्ष अदालत ने इस मामले को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि हम लोगों को अधिक इंतजार नहीं करवा सकते जो यह जानने के लिए बेकरार हैं कि पीएफ पेंशन का स्वरूप क्या होगा व भविष्य में उनके लिए क्या है।