न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: गौरव पाण्डेय
Updated Tue, 07 Dec 2021 11:07 PM IST
महिला सशक्तिकरण के लिए ऐतिहासिक राष्ट्रीय नीति अपने के दो दशकों के बाद भी भारत में 65 साल पुराना एक कानून संपत्ति उत्तराधिकार के मामलों में महिलाओं के साथ भेदभाव कर रहा है। इसके चलते सुप्रीम कोर्ट को इसमें दखल देना पड़ा है। शीर्ष अदालत ने सोमवार को हिंदू उत्तराधिकार के एक विसंगत प्रवधान पर केंद्र सरकार को अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया है। शीर्ष अदालत ने इसके लिए केंद्र सरकार को चार सप्ताह का समय दिया है।
न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना की पीठ को न्याय मित्र मीनाक्षी अरोड़ा ने बताया कि कानून के तहत संपत्ति उत्तराधिकार के प्रावधान में असमानता है। विवाहित हिंदू पुरुष की विवाद रहित मौत होने पर उसकी संपत्ति उसके माता-पिता के पास जाएगी। वहीं, किसी विधवा की विवाद रहित मौत होने पर उसकी संपत्ति (जो उसे अपने माता-पिता से नहीं मिली है) उसके खुद के माता-पिता के स्थान पर उसके पति के माता-पिता या संबंधियों को जाती है।
इसके अलावा निसंतान विधवा की मौत पर संपत्तियों के उत्तराधिकार में पति के संबंधियों को तरजीह दी जाती है, भले ही वह संपत्ति महिला को वह संपत्ति अपने माता-पिता या संबंधियों से उपहार के तौर पर ही क्यों न मिली हो। इस प्रावधान में में एक विचार करने वाली बात यह है कि अगर विधवा अपने माता-पिता से मिली किसी संपत्ति को बेचती है और उससे मिले पैसे से कोई दूसरी संपत्ति खरीदती है तो नई खरीदी संपत्ति विरासत में मिली नहीं मानी जाएगी।
इसे लेकर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अदालत ने उत्तराधिकार कानून के जिस प्रावधान की बात की है उसमें संसद की ओर से विधायिकी दखल की जरूरत पड़ सकती है। इस पर पीठ ने कहा कि कानून की कमियों को जल्द से जल्द दूर किए जाने की जरूरत है। यह काम या तो संसद के जरिए या न्याय पालिका के माध्यम से किया जाना चाहिए। पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से चार सप्ताह के अंदर इस मुद्दे पर केंद्र का रुख साफ करने को कहा है।
विस्तार
महिला सशक्तिकरण के लिए ऐतिहासिक राष्ट्रीय नीति अपने के दो दशकों के बाद भी भारत में 65 साल पुराना एक कानून संपत्ति उत्तराधिकार के मामलों में महिलाओं के साथ भेदभाव कर रहा है। इसके चलते सुप्रीम कोर्ट को इसमें दखल देना पड़ा है। शीर्ष अदालत ने सोमवार को हिंदू उत्तराधिकार के एक विसंगत प्रवधान पर केंद्र सरकार को अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया है। शीर्ष अदालत ने इसके लिए केंद्र सरकार को चार सप्ताह का समय दिया है।
न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना की पीठ को न्याय मित्र मीनाक्षी अरोड़ा ने बताया कि कानून के तहत संपत्ति उत्तराधिकार के प्रावधान में असमानता है। विवाहित हिंदू पुरुष की विवाद रहित मौत होने पर उसकी संपत्ति उसके माता-पिता के पास जाएगी। वहीं, किसी विधवा की विवाद रहित मौत होने पर उसकी संपत्ति (जो उसे अपने माता-पिता से नहीं मिली है) उसके खुद के माता-पिता के स्थान पर उसके पति के माता-पिता या संबंधियों को जाती है।
इसके अलावा निसंतान विधवा की मौत पर संपत्तियों के उत्तराधिकार में पति के संबंधियों को तरजीह दी जाती है, भले ही वह संपत्ति महिला को वह संपत्ति अपने माता-पिता या संबंधियों से उपहार के तौर पर ही क्यों न मिली हो। इस प्रावधान में में एक विचार करने वाली बात यह है कि अगर विधवा अपने माता-पिता से मिली किसी संपत्ति को बेचती है और उससे मिले पैसे से कोई दूसरी संपत्ति खरीदती है तो नई खरीदी संपत्ति विरासत में मिली नहीं मानी जाएगी।
इसे लेकर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अदालत ने उत्तराधिकार कानून के जिस प्रावधान की बात की है उसमें संसद की ओर से विधायिकी दखल की जरूरत पड़ सकती है। इस पर पीठ ने कहा कि कानून की कमियों को जल्द से जल्द दूर किए जाने की जरूरत है। यह काम या तो संसद के जरिए या न्याय पालिका के माध्यम से किया जाना चाहिए। पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से चार सप्ताह के अंदर इस मुद्दे पर केंद्र का रुख साफ करने को कहा है।