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Should Sedition Law Be Repealed? What Commission Said to the government
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Sedition Law: देशद्रोह कानून नहीं हो सकता रद्द! जरूरत पड़ने पर संशोधन की गुंजाइश; आयोग ने सरकार को बताई वजह
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: काव्या मिश्रा
Updated Fri, 02 Jun 2023 09:57 AM IST
सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में आयोग ने कहा कि धारा 124ए के दुरुपयोग पर विचारों का संज्ञान लेते हुए ये अनुशंसा करता है कि उन्हें रोकने के लिए केंद्र की ओर से दिशा-निर्देश जारी किए जाएं।
देशद्रोह कानून पर लॉ कमीशन (विधि आयोग) ने अपनी रिपोर्ट गुरुवार को केंद्र सरकार को सौंप दी है। उसका कहना है कि देशद्रोह से निपटने के लिए आईपीसी की धारा 124ए को बनाए रखने की आवश्यकता है। हालांकि, रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि प्रावधान के उपयोग को लेकर ज्यादा स्पष्टता के लिए कुछ संशोधन किए जा सकते हैं।
केंद्र कर सकता है दिशा-निर्देश जारी
सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में आयोग ने कहा कि धारा 124ए के दुरुपयोग पर विचारों का संज्ञान लेते हुए ये अनुशंसा करता है कि उन्हें रोकने के लिए केंद्र की ओर से दिशा-निर्देश जारी किए जाएं। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को लिखे अपने कवरिंग लेटर में 22वें लॉ कमीशन के अध्यक्ष जस्टिस रितु राज अवस्थी (सेवानिवृत्त) ने कुछ सुझाव भी दिए हैं।
लॉ कमीशन ने दिए सुझाव
इसमें कहा गया कि आईपीसी की धारा 124ए जैसे प्रावधान की अनुपस्थिति में, सरकार के खिलाफ दंगा भड़काने वाले किसी भी अभिव्यक्ति पर निश्चित रूप से विशेष कानूनों और आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत मुकदमा चलाया जाएगा, जिसमें अभियुक्तों से निपटने के लिए कहीं अधिक कड़े प्रावधान हैं।
अन्य देशों की नकल उतारना संभव नहीं
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि सभी देश अपनी स्थिती को देखकर फैसला लेते हैं। इसलिए आईपीसी की धारा 124ए को केवल इस आधार पर निरस्त करना कि कुछ देशों ने ऐसा किया है, ये ठीक नहीं है क्योंकि ऐसा करना भारत में मौजूद जमीनी हकीकत से आंखें मूंद लेने की तरह होगा।
यूनियन ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया कि वह धारा 124ए की फिर से जांच कर रहा है और अदालत ऐसा करने में अपना समय बर्बाद नहीं कर सकती है। उसी के अनुसार, शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को धारा 124ए के संबंध में जारी सभी जांचों को निलंबित करते हुए कोई भी प्राथमिकी दर्ज करने या कोई कठोर कदम उठाने से परहेज करने का निर्देश दिया। इसके अलावा, यह भी निर्देश दिया कि सभी लंबित परीक्षणों, अपीलों और कार्यवाही को स्थगित रखा जाए।
देश की सुरक्षा पर पड़ सकता है प्रभाव
रिपोर्ट में बताया गया कि इसे निरस्त करने से देश की अखंड़ता और सुरक्षा पर प्रभाव पड़ सकता है। अक्सर कहा जाता है कि देशद्रोह का अपराध एक औपनिवेशिक विरासत है जो अंग्रेजों के जमाने पर आधारित है, जिसमें इसे अधिनियमित किया गया था। विशेष रूप से भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इसके उपयोग के इतिहास को देखते हुए ये बात कही जाती है, लेकिन ऐसे में तो भारतीय कानूनी प्रणाली का संपूर्ण ढांचा एक औपनिवेशिक विरासत है।
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मानसून सत्र में पेश होगा प्रस्ताव
केंद्र सरकार देशद्रोह कानून में संशोधन की तैयारी कर रही है। इसे लेकर संसद के मानसून सत्र में एक प्रस्ताव भी लाया जा सकता है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में बीती एक मई को भी इसके बारे में जानकारी दी थी। सरकार का कहना है कि 124ए की समीक्षा की प्रक्रिया आखिरी चरण में है। बता दें कि, कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था।
सुप्रीम कोर्ट ने कानून किया था स्थगित
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने बीते साल मई के महीने में देशद्रोह कानून को स्थगित कर दिया था। तब राज्य सरकारों से कोर्ट ने कहा था कि केंद्र सरकार की ओर से इस कानून को लेकर जांच पूरी होने तक इस प्रावधान के तहत सभी लंबित कार्यवाही में जांच जारी न रखें। जो केस लंबित हैं, उन पर यथास्थिति बनाई जाए।
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