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SC to hear if pleas challenging electoral bond scheme can be referred to constitution bench
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Supreme Court: चुनावी बॉन्ड से जुड़ी याचिकाओं को संविधान पीठ के पास भेजा जा सकता है या नहीं? कोर्ट करेगा विचार
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: कुमार विवेक
Updated Tue, 21 Mar 2023 06:10 PM IST
सार
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Supreme Court: चुनावी बॉन्ड को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका में याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि अब तक राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से 12,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है और इसमें से दो तिहाई राशि एक ही प्रमुख राजनीतिक दल को गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह इस बात पर विचार करेगा कि क्या पार्टियों के राजनीतिक चंदे के लिए चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को 'आधिकारिक घोषणा' के लिए संवैधानिक पीठ के पास भेजा जा सकता है।
याचिकाओं को संविधान पीठ के पास भेजा जा सकता है या नहीं, यह तय करने के लिए शीर्ष अदालत की उक्त टिप्पणियां इस मुद्दे पर जनहित याचिका दायर करने वाले एक एनजीओ के दावे को देखते हुए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि अब तक राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से 12,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है और इसमें से दो तिहाई राशि एक ही प्रमुख राजनीतिक दल को गई है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि आगामी कर्नाटक विधानसभा चुनावों को देखते हुए इस मामले में तेजी से फैसला करने की आवश्यकता है।
11 अप्रैल को होगी अगली सुनवाई
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने कहा, ''हम देखेंगे कि क्या याचिकाओं को 11 अप्रैल को संविधान पीठ के पास भेजा जा सकता है।" जनहित याचिका दायर करने वालों में से एक की ओर से पेश वकील शादान फरासत ने कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना का लोकतांत्रिक राजनीति और राजनीतिक दलों के वित्त पोषण पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण याचिकाओं को संविधान पीठ के पास भेजा जाना चाहिए।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले मामले में सुनवाई की मांग
फरासत ने कहा कि इस मुद्दे पर वृहद पीठ को 'आधिकारिक फैसले' की जरूरत है। गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने भी जनहित याचिकाओं को संविधान पीठ के पास भेजने के संबंध में दलील का समर्थन किया। दवे ने कहा कि आगामी कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले अप्रैल में ही इस मामले की सुनवाई की जानी चाहिए। इस बीच, पीठ ने जनहित याचिकाओं की सुचारू सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए नेहा राठी सहित दो वकीलों को नोडल वकील नियुक्त किया और कहा कि वे यह सुनिश्चित करने के लिए समन्वय करेंगे कि फैसलों और अन्य रिकॉर्डों का साझा संकलन दायर किया जाए।
यूपी पर 120 करोड़ का मुआवजा लगाने के एनजीटी के आदेश पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने गोरखपुर जिले की नदियों में अनट्रीटेड सीवेज छोड़ने और अनुचित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को लेकर उत्तर प्रदेश राज्य पर 120 करोड़ रुपये का पर्यावरणीय मुआवजा लगाने के नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(एनजीटी) के आदेश पर रोक लगा दी है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने एनजीटी के 13 सितंबर, 2022 के आदेश को चुनौती देने वाली उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए यूपी राज्य को मुआवजे के रूप में 120 करोड़ रुपए जमा करने के एनजीटी के आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी है। पीठ ने अपने आदेश में यह स्पष्ट किया है कि हमारा आदेश एनजीटी द्वारा दिए अन्य सभी निर्देशों का पालन करने और ट्रिब्यूनल को अनुपालन रिपोर्ट देने के निर्देश का पालन करने के राज्य सरकार के दायित्व के आड़े नहीं आएगा।
2014 में मीरा शुक्ला व अन्य ने एनजीटी में एक आवेदन दायर किया गया था, जिसमें उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले और उसके आसपास रामगढ़ झील, अमी, राप्ती और रूहानी नदियों में अनट्रीटेड सीवेज और औद्योगिक अपशिष्टों के निर्वहन के कारण जल निकायों और भूजल के प्रदूषण के बारे में चिंता व्यक्त की गई थी।
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