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Savarkar: How did he got Veer title and know about the pioneer of Hindutva and controversies around him
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Savarkar: सावरकर को कैसे मिली 'वीर' उपाधि, किस वजह से विवादों में रहे, जानें उनके बारे में
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: शिवेंद्र तिवारी
Updated Sun, 28 May 2023 03:25 PM IST
सावरकर की पहचान एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार के रूप में है। सावरकर का जन्म नासिक जिले के भागुर गांव में 28 मई को दामोदर पंत सावरकर के यहां हुआ था। विनायक जब नौ साल के थे तभी उनकी माताजी राधाबाई का निधन हो गया।
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वीर सावरकर
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SAVARKARSMARAK.COM
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भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानी और राष्ट्रवादी नेता विनायक दामोदर सावरकर की आज 140वीं जयंती है। इस उपलक्ष्य पर नई संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर लोकसभा अध्यक्ष और अन्य सांसदों ने सावरकर को नमन करते हुए श्रद्धांजलि दी है। आज की सियासत में सावरकर एक ऐसा नाम बन चुके हैं जिनको लेकर किसी न किसी कारण से चर्चा होती रहती है। इसके साथ ही देश की स्वतंत्रता में अपने योगदान को लेकर भी वो विमर्श का एक केंद्र हैं।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानी और राष्ट्रवादी नेता विनायक दामोदर सावरकर की आज 140वीं जयंती है। इस उपलक्ष्य पर नई संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर लोकसभा अध्यक्ष और अन्य सांसदों ने सावरकर को नमन करते हुए श्रद्धांजलि दी है। आज की सियासत में सावरकर एक ऐसा नाम बन चुके हैं जिनको लेकर किसी न किसी कारण से चर्चा होती रहती है। इसके साथ ही देश की स्वतंत्रता में अपने योगदान को लेकर भी वो विमर्श का एक केंद्र हैं।
विनायक दामोदर सावरकर।
- फोटो :
Amar Ujala
पहले जानते हैं कौन हैं सावरकर?
सावरकर की पहचान एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार के रूप में है। उनका पूरा नाम विनायक दामोदार सावरकर था। सावरकर का जन्म नासिक जिले के भागुर गांव में 28 मई 1883 को दामोदर पंत सावरकर के यहां हुआ था। विनायक जब नौ साल के थे तभी उनकी माताजी राधाबाई का निधन हो गया।
वीर सावरकर
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SAVARKARSMARAK.COM
दी थी 'हिंदुत्व' की की परिभाषा
सावरकर को उके दौर का सबसे बड़ा हिंदूवादी नेता भी माना जाता है। वह अखिल भारतीय हिंदू महासभा के छह बाहर राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए। जीवनभर वह हिंदुत्व का झंडा थामकर संघर्ष करते रहे। राजनीति में हिंदू राष्ट्रवाद की विचारधारा को विकसित करने में सावरकर का बहुत बड़ा योगदान माना जाता है। वो वीर सावरकर ही थे जिन्होंने पूरे विश्व में भारत की पहचान हिंदू के रूप में बनाने के लिए हिंदुत्व शब्द को गढ़ा था।
सावरकर ने एक पुस्तक लिखी 'हिंदुत्व - हू इज हिंदू?' इस किताब में उन्होंने पहली बार राजनीतिक विचारधारा के तौर पर हिंदुत्व का इस्तेमाल किया था। वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने एक साक्षात्कार के दौरान बताया था कि सावरकर के हिसाब से भारत में रहने वाला व्यक्ति मूलत: हिंदू है और यही हिंदुत्व शब्द की परिभाषा है। जिस व्यक्ति की पितृ भूमि, मातृभूमि और पुण्य भूमि भारत हो वही इस देश का नागरिक है। हालांकि यह देश किसी भी पितृ और मातृभूमि तो बन सकती है, लेकिन पुण्य भूमि नहीं।
वीर सावरकर
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SAVARKARSMARAK.COM
ऐसे मिली 'वीर' की उपाधि
वर्ष 1936 की बात है। किसी मुद्दे पर कांग्रेस के साथ सावरकर का मतभेद हो गया था। पार्टी के भीतर विरोध की आवाज तेज होने लगी थी। पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा सावरकर का विरोध किया जाने लगा था। लेकिन कांग्रेस के ही एक व्यक्ति ने सबके आक्रोश का सामना करते हुए सावरकर का साथ दिया। यह शख्स मशहूर पत्रकार, शिक्षाविद, कवि और नाटककार पीके अत्रे थे। अत्रे ने सावरकर के लिए पुणे में अपने बालमोहन थिएटर के कार्यक्रम में स्वागत कार्यक्रम का आयोजन किया। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के विरोध के बावजूद हजारों की संख्या में लोग इस कार्यक्रम में आए। इसी दौरान, अत्रे ने सावरकर को वीर की उपाधि से संबोधित किया था और यहीं से विनायक सावरकर का वीर सावरकर के नाम से मशहूर हो गए।
वीर सावरकर
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SAVARKARSMARAK.COM
ऐसे बने सावरकर 'स्वातंत्र्यवीर'?
सावरकर को 'स्वातंत्र्यवीर' के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल जब सावरकर जेल में बंद थे तब उन्होंने 1857 की क्रांति पर आधारित विस्तृत मराठी ग्रंथ '1857 चे स्वातंत्र्य समर' लिखा था। यह ग्रंथ बेहद चर्चित हुआ था और इसी के नाम से अत्रे ने सावरकर को 'स्वातंत्र्यवीर' नाम दिया था।
सेलुलर जेल।
- फोटो :
सोशल मीडिया
दो बार गए जेल
वीर सावरकर अपने जीवनकाल में कई बार जेल गए। इनमें सबसे ज्यादा लंबा समय 1911 से 1921 तक अंडमान की सेल्युलर जेल में रहा। उन्हें काले पानी की सजा सुनाई गई। वीर सावरकर ही देश के अकेले ऐसे व्यक्ति रहे जिन्हें आजीवन कारावास की दुहरी सजा सुनाई गई।
कहा जाता है अंडमान जेल में रहने के दौरान उन्होंने की पत्थरों से जेल की दीवारों पर दस हजार से ज्यादा कविताएं लिखीं। जिन्हें बाद में कलमबद्ध किया। उन्होंने बैरिस्टर की डिग्री इंग्लैंड से ली थी, लेकिन भारत में अंग्रेजी राज का विरोध करने के कारण उन्हें अपनी डिग्री से हाथ धोना पड़ा।
1921 में उन्हें जेल से मुक्त कर दिया गया। जिसके बाद वह कुछ समय के लिए इंग्लैंड चले गए। यहां अंग्रेज सरकार की मुखालफत करने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर भारत वापस भेज दिया गया। इस दौरान पानी के जहाज से लौटते समय वह उससे कूदकर फरार हो गए। हालांकि फिर पकड़े गए और जेल भेज दिया गया।
सावरकर
- फोटो :
Social media
इस वजह से धूमिल हुई थी सावरकर की छवि
वर्ष 1949 में सावरकर पर गांधी हत्याकांड में शामिल होने का आरोप लगा था। अन्य आठ लोगों के साथ उन्हें भी इस साजिश में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। इस वजह से सावरकर की छवि पर बहुत धक्का लगा था। लेकिन ठोस सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया गया था।
जारी किया गया था डाक टिकट
26 फरवरी 1966 में मुंबई में सावरकर का निधन हो गया। तमाम आरोपों से मुक्त होने के बाद 1966 में भारत सरकार ने मौत के बाद उनकी याद में डाक टिकट भी जारी किया। इस वक्त देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं।
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