सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में एक बार फिर दोहराया है कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत हिंदू विवाहिता के मायके वालों को अजनबी नहीं कहा जा सकता। शीर्ष अदालत ने कहा, किसी विधवा द्वारा अपने भाई के बेटे के नाम संपत्ति करना गलत नहीं है।
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने फैसले में कहा, जब हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत विवाहित महिला के पिता के उत्तराधिकारियों को संपत्ति के उत्तराधिकारियों में शामिल किया गया है ऐसे में महिला के मायके वालों को अजनबी नहीं कहा जा सकता।
शीर्ष कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ महिला के देवर के बच्चों की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें महिला द्वारा अपने भाई के बच्चों को संपत्ति दिए जाने को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, पहले निचली अदालत ने और फिर हाईकोर्ट ने भी इसी प्रावधान के तहत याचिका को खारिज किया था, जो सही है। शीर्ष कोर्ट ने कहा, हाईकोर्ट के फैसले में दखल का कोई कारण नहीं बनता।
क्या है मामला
हरियाणा के गढ़ी गांव में बदलू की खेतीहर जमीन थी। उसके दो बेटे थे, बाली राम और शेर सिंह। शेर सिंह की 1953 में मृत्यु हो गई उसके कोई संतान नहीं थी। शेर सिंह की विधवा जगनो को पति के हिस्से की आधी खेतीहर जमीन मिली। जगनो ने अपने हिस्से की जमीन अपने भाई के बेटों के नाम कर दी। अगस्त 1991 को अदालत ने जगनो के भाई के बेटों के नाम डिक्री पारित कर दी।
इसके बाद जगनों के देवर बाली राम के बच्चों ने कोर्ट में मुकदमा दाखिल कर पारिवारिक समझौते में जगनों के अपने भाई के बेटों को परिवार की जमीन देने का विरोध किया। देवर के बच्चों ने कोर्ट से 1991 का आदेश रद करने की मांग करते हुए दलील दी कि पारिवारिक समझौते में बाहरी लोगों को परिवार की जमीन नहीं दी जा सकती। लेकिन निचली अदालत ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट से भी उसे कोई राहत नहीं मिली। जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में एक बार फिर दोहराया है कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत हिंदू विवाहिता के मायके वालों को अजनबी नहीं कहा जा सकता। शीर्ष अदालत ने कहा, किसी विधवा द्वारा अपने भाई के बेटे के नाम संपत्ति करना गलत नहीं है।
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने फैसले में कहा, जब हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत विवाहित महिला के पिता के उत्तराधिकारियों को संपत्ति के उत्तराधिकारियों में शामिल किया गया है ऐसे में महिला के मायके वालों को अजनबी नहीं कहा जा सकता।
शीर्ष कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ महिला के देवर के बच्चों की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें महिला द्वारा अपने भाई के बच्चों को संपत्ति दिए जाने को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, पहले निचली अदालत ने और फिर हाईकोर्ट ने भी इसी प्रावधान के तहत याचिका को खारिज किया था, जो सही है। शीर्ष कोर्ट ने कहा, हाईकोर्ट के फैसले में दखल का कोई कारण नहीं बनता।
क्या है मामला
हरियाणा के गढ़ी गांव में बदलू की खेतीहर जमीन थी। उसके दो बेटे थे, बाली राम और शेर सिंह। शेर सिंह की 1953 में मृत्यु हो गई उसके कोई संतान नहीं थी। शेर सिंह की विधवा जगनो को पति के हिस्से की आधी खेतीहर जमीन मिली। जगनो ने अपने हिस्से की जमीन अपने भाई के बेटों के नाम कर दी। अगस्त 1991 को अदालत ने जगनो के भाई के बेटों के नाम डिक्री पारित कर दी।
इसके बाद जगनों के देवर बाली राम के बच्चों ने कोर्ट में मुकदमा दाखिल कर पारिवारिक समझौते में जगनों के अपने भाई के बेटों को परिवार की जमीन देने का विरोध किया। देवर के बच्चों ने कोर्ट से 1991 का आदेश रद करने की मांग करते हुए दलील दी कि पारिवारिक समझौते में बाहरी लोगों को परिवार की जमीन नहीं दी जा सकती। लेकिन निचली अदालत ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट से भी उसे कोई राहत नहीं मिली। जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।