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विस्तार
ओडिशा में हुए रेल हादसे के बाद कई तरह की बातें सामने आ रही हैं। रेलवे में एक तरफ स्टाफ की कमी है, तो दूसरी ओर अप्रशिक्षित व अयोग्य श्रमिकों की नियुक्त हो जाती है। आमतौर पर निजीकरण की प्रक्रिया में ये बातें देखने को मिलती हैं। अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) के महासचिव सी. श्रीकुमार ने रेलवे कर्मियों से बातचीत कर कई बातों का खुलासा किया है। उन्होंने कहा, वर्तमान में रेलवे में लोको पायलट, तकनीशियन और ट्रैकमैन आदि सहित तीन लाख से अधिक पद रिक्त हैं। जनशक्ति की इतनी भारी कमी के साथ भारतीय रेलवे, देशभर में सुरक्षित संचालन कैसे कर सकता है। लोको पायलट की कमी के कारण उन्हें लगातार 14 से 16 घंटे काम करने के लिए कहा जाता है। अकेले ट्रैकमैन के ही दो लाख पद खाली पड़े हैं। बतौर श्रीकुमार, अब रेलवे मंत्रालय, वित्त मंत्रालय की दया पर निर्भर है। हर साल 4500 किलोमीटर लंबा रेलवे ट्रैक क्षतिग्रस्त हो जाता है। मौजूदा समय में 19500 किलोमीटर लंबे ट्रैक और पुलों को मरम्मत की जरूरत है।
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आश्रित परिवार के एक सदस्य को रेलवे में नियुक्ति दें
श्रीकुमार के मुताबिक, ओडिशा के बालासोर के पास हुए भीषण ट्रेन हादसे के सदमे से देश उबर नहीं पाया है। इसमें सैकड़ों लोगों की मौत हो गई है और हजारों लोग, जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 1995 के बाद से यह अपनी तरह की सबसे भीषण दुर्घटना है। इस मामले को तकनीकी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है। रेलवे में मानव संसाधन के सामने आने वाली कठिनाइयों और उसके तत्काल उपचारात्मक उपाय किए जाने की आवश्यकता है। रेलवे के ट्रेड यूनियन नेताओं के नियमित संपर्क में रहने वाले श्रीकुमार ने कहा, दुर्घटना में मारे गए लोगों के परिवारों को सभी आवश्यक राहत दी जाएं। मृत व्यक्ति के परिवार के किसी एक सदस्य को तत्काल रेलवे में नियुक्ति दें। घायलों को बेहतर इलाज देना और उनकी जान बचाना, यह सरकार और रेलवे की जिम्मेदारी है। केंद्र सरकार, 95 फीसदी लोगों के मन में यह विश्वास पैदा करें कि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित है।
रक्षा और रेलवे, सरकार की उदासीनता के शिकार
केंद्र सरकार के नियंत्रण वाले दो प्रमुख उद्योग, रक्षा और रेलवे सरकार की गलत नीतियों व उदासीनता के शिकार हैं। कॉरपोरेटाइजेशन के बाद 41 आयुध कारखानों का हश्र देखिए। ऐसा नहीं है कि कर्मचारियों को परेशानी हो रही है। संकट या युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न होने पर देश और सशस्त्र बलों को इसका नुकसान होगा। आयुध कारखानों को एक वाणिज्यिक उद्योग की तरह नहीं माना जा सकता है। यह हमारे देश की सुरक्षा आवश्यकता के लिए है। सरकार इस ओर ध्यान ही नहीं दे रही। आईसीएफ पेराम्बुर निर्मित रेलवे काउच को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह लगातार कोचों के बीच झटकों को खत्म करता है। इसे एंटी-टेलीस्कोपिक डिवाइस कहा जाता है। आईसीएफ और अन्य कोच फैक्ट्रियों को मजबूती प्रदान करने व उनके विस्तार का कार्य करने की बजाए, आउटसोर्स पर फोकस है। किसी भी आउटसोर्सिंग की पहली दुर्घटना काम की गुणवत्ता है। निजी उद्योग, सस्ती मजदूरी के लिए अप्रशिक्षित और अयोग्य श्रमिकों को नियुक्त करते हैं।
हर साल 4500 किलोमीटर रेलवे ट्रैक क्षतिग्रस्त
मौजूदा रेल हादसे की वजह सिग्नल फेल होना बताया जा रहा है। कई जगहों पर तो सिग्नल काम ही नहीं कर रहे हैं। गलत सिग्नल का परिणाम, ट्रेन गलत मार्ग पर चली जाती है। नतीजा, भयावह दुर्घटना होती है। कुछ लोको पायलटों से चर्चा के बाद सामने आया है कि बार-बार सिग्नल खराब होने की शिकायत करने के बाद भी वे ठीक नहीं हो रहे हैं। हर साल 4500 किलोमीटर रेलवे ट्रैक क्षतिग्रस्त हो जाता है। इसमें मुश्किल से 2000 किलोमीटर लाइन की मरम्मत या बदलाव हो पाता है।
इसके चलते 19500 किलोमीटर से ज्यादा ट्रैक की मरम्मत की जरूरत है। रेलवे पुलों का भी यही हाल है। अगर इन पुलों का ठीक से रखरखाव नहीं किया गया, तो इसके परिणामस्वरूप और अधिक आपदाएं झेलनी होंगी। एआईडीईएफ के महासचिव ने बताया कि रेल अधिकारियों द्वारा लापरवाही का कारण फंड की कमी बताया जा रहा है। रेल बजट को समाप्त कर उसे आम बजट में विलय कर देने के बाद कोष एक बड़ी समस्या बन गया है। अब रेलवे को वित्त मंत्रालय की दया पर निर्भर रहना पड़ता है।
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समय-परीक्षणित अलग बजट वापस लाना चाहिए
वर्तमान में तीन लाख से अधिक पद रिक्त हैं। महिला लोको पायलटों को अनगिनत समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ट्रैकमैन के दो लाख पद ही खाली पड़े हैं। रेलवे और रक्षा उद्योग के प्रति सरकार की उदासीनता समाप्त होनी चाहिए। सरकार को अपनी हठधर्मिता और निराशाजनक नीतियों से बाहर आना होगा। रेलवे को मजबूत करने के लिए नवीनतम तकनीक का उपयोग करना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि निजीकरण और आउटसोर्सिंग को रोका जाए। समय-परीक्षणित अलग बजट वापस लाना चाहिए। रेलवे सेवाओं के आधुनिकीकरण के लिए संसाधनों का पता लगाना लगाएं। रेलवे की विभिन्न अखिल भारतीय विशिष्ट सेवाओं को समाप्त करने के लिए निर्णयों की भी समीक्षा करने की आवश्यकता है। विशेषज्ञता हमेशा किसी भी उद्योग की आवश्यकता होती है। श्रीकुमार ने कहा, कोई भी संवेदनशील और समझदार सरकार अगर यह पाती है कि उसके निर्णय/नीतियां विफल हो रहे हैं और वांछित परिणाम नहीं मिल रहे हैं तो तो उन्हें वापस ले लेना चाहिए।