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Par panel flags large number of outsourced staff in CIC, asks SSC to look into it
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CIC में आउटसोर्स कर्मियों की भर्ती का मामला: संसदीय समिति ने कहा- दिक्कतों का पता लगाए SSC, जानें सबकुछ
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: हिमांशु मिश्रा
Updated Sun, 02 Apr 2023 02:55 PM IST
सार
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रिपोर्ट में कहा गया है कि पैनल ने सिफारिश की है कि कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) को सीआईसी में सीधी भर्ती रिक्तियों को भरने में बाधा डालने वाले कारणों पर गौर करना चाहिए और उनसे अवगत कराना चाहिए।
केंद्रीय सूचना आयोग में आउटसोर्स कर्मियों की भर्ती के मामले में संसदीय समिति ने सुनवाई की। समिति के सामने सूचना आयोग ने बताया कि 160 स्वीकृत पदों के सापेक्ष 100 आउटसोर्स कर्मियों की भर्ती की गई है। बाकी उपयुक्त उम्मीदवारों की अनुपलब्धता के कारण सभी रिक्त पदों को भरने में सक्षम नहीं है। इसपर समिति ने कर्मचारी चयन आयोग (SSC) को इस मसले पर गौर करने के लिए कहा है। समिति ने आयोग से कहा कि वह आउटसोर्स कर्मियों की भर्ती में आने वाली दिक्कतों का पता लगाएं और उनसे अवगत कराएं। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि समिति का विचार है कि अनुबंधित कर्मचारी नियमित कार्यबल का पूरक हो सकते हैं, लेकिन इसका विकल्प नहीं हो सकते।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पैनल ने सिफारिश की है कि कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) को सीआईसी में सीधी भर्ती रिक्तियों को भरने में बाधा डालने वाले कारणों पर गौर करना चाहिए और उनसे अवगत कराना चाहिए। समिति ने यह भी कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 25 के अनुसार, सार्वजनिक प्राधिकरणों के लिए सीआईसी को तिमाही रिटर्न जमा करने की वैधानिक आवश्यकता है।
समिति ने कहा, 'यह देखा गया है कि 2021-22 के दौरान, केवल 95 प्रतिशत सार्वजनिक प्राधिकरणों ने रिपोर्टिंग वर्ष के दौरान सभी चार त्रैमासिक रिटर्न जमा किए।' समिति ने कहा कि सार्वजनिक प्राधिकरण अपने वैधानिक दायित्वों को पूरा नहीं कर रहे हैं और सिफारिश की है कि सीआईसी को सभी मंत्रालयों और स्वतंत्र विभागों पर 100 प्रतिशत अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने के लिए दबाव डालना चाहिए।
संसदीय पैनल ने कहा- सरल भाषा में तैयार करें बिल, ताकी आम लोग भी समझ सकें
कानून और कार्मिक विभाग से संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने भी कहा है कि वर्तमान में केंद्रीय कानून मंत्रालय में विधायी विभाग द्वारा तैयार किए जा रहे सभी विधेयकों को या तो देश के बुद्धिजीवी या कानूनी ज्ञान रखने वाले लोग ही समझ सकते हैं। ऐसे में संसदीय पैनल ने सिफारिश की है कि विधेयकों का मसौदा ऐसी भाषा में तैयार किया जाना चाहिए जिससे आम आदमी को उन्हें समझने में मदद मिले और प्रस्तावित कानून लाने के कारण भी पता चल सकें।
समिति की अध्यक्षता करते हुए सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा, 'एक आम आदमी के लिए संसद में पेश किए जाने वाले बिलों को समझना बहुत मुश्किल है। इसलिए, समिति यह सिफारिश करना चाहेगी कि बिलों को इतनी सरल भाषा में तैयार किया जाए ताकि एक आम आदमी भी प्रस्तावित उद्देश्य के बारे में समझ सके।'
10 वर्षों से लंबित 1,350 मामले पेंशनधारियों को दी जाए वरीयता
संसदीय समिति ने 10 साल से अधिक समय से लंबित 1,350 मामलों का जिक्र करते हुए केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) से इन पर प्राथमिकता के आधार पर फैसला करने को कहा है। कैट केंद्र सरकार के कर्मचारियों की सेवा से जुड़े मामलों पर फैसला करता है। 31 दिसंबर 2022 तक के आंकड़ों के अनुसार, अधिकरण की विभिन्न पीठ के सामने 80,545 मामले लंबित हैं। समिति ने कहा कि जहां तक संभव हो, हर अर्जी पर उसे दायर किए जाने की तारीख से छह महीने के भीतर सुनवाई होनी चाहिए और फैसला किया जाना चाहिए। समिति ने सिफारिश की कि पेंशन, वरिष्ठ नागरिकों से संबंधित मामलों और 10 साल से अधिक समय से लंबित मामलों का प्राथमिकता के आधार पर निपटारा किया जाए।
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