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NREGA workers had to buy expensive smart phone will to get daily wage only after uploading photo
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NREGA: नरेगा में रोजी रोटी बचाने को खरीदना पड़ा महंगा स्मार्ट फोन, फोटो अपलोड होने पर ही मिलेगी दिहाड़ी
NREGA: मजदूरों के मुताबिक, खराब नेटवर्क के कारण वे इस एप पर अपनी पूर्ण उपस्थिति दर्ज नहीं कर पाते हैं। तस्वीरें अपलोड करने के लिए पर्याप्त नेटवर्क की तलाश में उन्हें हर रोज पहाड़ियों पर लगभग दो किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। इसके बावजूद ठीक से तस्वीरें अपलोड नहीं हो पातीं...
NREGA: जंतर-मंतर पर नरेगा संघर्ष समिति के बैनर तले धरने में शामिल मजदूर
- फोटो : Amar Ujala
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत काम पाने वाले मजदूरों को अपना मेहनताना हासिल करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इस योजना के अंतर्गत अपनी रोजी-रोटी बचाने के लिए मजदूरों को महंगा स्मार्ट फोन खरीदना पड़ रहा है। बहुत से ऐसे मजदूर हैं, जिन्होंने फोन भी खरीदा, लेकिन इसके बाद भी उनकी मुसीबतें कम नहीं हुई। वजह, उन्हें नेटवर्क की तलाश में दो-तीन किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। वहां भी कई बार पूरा नेटवर्क नहीं मिल पाता। नतीजा, मजदूरों के फोटो साइट पर अपलोड नहीं हो पाते। इस वजह से उनकी दिहाड़ी मारी जाती है।
नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर 'नरेगा संघर्ष समिति' के बैनर तले चल रहे 100 दिवसीय धरने में शामिल मजदूरों ने यह बात कही है। बुधवार को धरने का 34वां दिन था। राजस्थान से आए नरेगा मजदूरों का कहना था, केंद्र सरकार को इस योजना में धरातल की स्थिति के अनुसार सुधार किए जाने चाहिए। शिकायत निवारण तंत्र में कई तरह की कमियां हैं। राजस्थान के अजमेर जिले की एक नरेगा कार्यकर्ता ने बताया कि वह नरेगा में मेट के रूप में काम करती है। चूंकि नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सॉफ्टवेयर (एनएमएमएस) एप लागू है, तो इसमें कई बार दिक्कतें आती हैं। एक, सभी मजदूरों के पास स्मार्ट फोन नहीं है। यह एप आने के बाद उन्हें अपनी रोजी रोटी बचाने के लिए महंगा स्मार्ट फोन खरीदना पड़ा।
मजदूरों के मुताबिक, खराब नेटवर्क के कारण वे इस एप पर अपनी पूर्ण उपस्थिति दर्ज नहीं कर पाते हैं। तस्वीरें अपलोड करने के लिए पर्याप्त नेटवर्क की तलाश में उन्हें हर रोज पहाड़ियों पर लगभग दो किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। इसके बावजूद ठीक से तस्वीरें अपलोड नहीं हो पातीं। इसकी शिकायत जब अवर मंडल लिपिक से करने की कोशिश करते हैं, तो वह उन्हें घर जाने के लिए कहता है। इसका मतलब यह है कि वह और उनके जैसे कई अन्य मजदूर उपस्थिति दर्ज न होने के कारण अपने काम की पूरी मजदूरी पाने ने असमर्थ हैं। नरेगा कार्यकर्ता ने बताया कि कुछ मजदूरों ने 13-14 दिनों तक काम किया, लेकिन उन्हें केवल 5-6 दिनों की मजदूरी का भुगतान मिलता है। उन महिला मजदूरों को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जो लंबी दूरी तय कर काम पर आती हैं।
राजस्थान के सिरोही जिले के श्रमिकों ने भी अपनी कठिनाइयों के बारे में बताया। आदिवासी क्षेत्र की एक कार्यकर्ता ने कहा, उन्होंने अपना जीवन नरेगा में काम करते हुए बिताया है। ऑनलाइन-आधारित उपस्थिति के कारण कई नरेगा मजदूरों को उनका भुगतान नहीं मिलता। कुछ मजदूर तो ऐसे भी रहे, जिन्होंने 12 दिन तक नरेगा योजना के तहत काम किया, लेकिन उन्हें मात्र तीन दिन की मजदूरी का भुगतान किया गया है। उनकी मांग है कि ऑनलाइन उपस्थिति बंद कर मैनुअल मस्टर रोल वापस लाया जाए। पहाड़ियों से घिरे एक आदिवासी इलाके में रहने वाले मजदूरों का कहना था कि वहां नेटवर्क ठीक से नहीं आता है। फोटो अपलोड न होने के कारण उनकी दिहाड़ी मारी जाती है। जिन मजदूरों के बैंक खाते आधार से जुड़े नहीं थे, या उनके जॉब कार्ड बैंक खातों से जुड़े नहीं थे, उन्हें भी दिक्कतें उठानी पड़ रही हैं। ऐसे में मजदूरों को मामूली सी गलती के कारण उनके वेतन से भी वंचित कर दिया गया।
उत्तर प्रदेश के सीतापुर में संगतिन किसान मजदूर संगठन की प्रतिनिधि रिचा सिंह ने बताया, जंतर-मंतर पर आयोजित धरने में 16 राज्यों के मजदूर शिरकत कर रहे हैं। बारी-बारी से इन राज्यों के मजदूर जंतर-मंतर पर पहुंच रहे हैं। जैसे 22 मार्च से 27 मार्च तक यूपी और कर्नाटक के प्रतिनिधि धरने पर मौजूद रहे। अब 28 मार्च से अगले सात दिन तक राजस्थान व दूसरे प्रांत के प्रतिनिधि वहां अपनी बात रखेंगे। बतौर रिचा सिंह, यूपी के सीतापुर में ही नरेगा मजदूरों के 16 करोड़ रुपये का भुगतान बाकी है। अगर पूरे यूपी की बात करें तो यह राशि तीन अरब रुपये तक पहुंच जाती है। अब तो नरेगा के बजट में 32 फीसदी की कमी कर दी गई है। एक अप्रैल 2023 से मजदूरी की राशि 230 रुपये हो जाएगी। अभी यह राशि 217 रुपये है। एक तो यह राशि कम बढ़ाई गई है और दूसरा, बजट भी कम कर दिया गया है। बजट में कटौती से मजदूरों को काम भी कम मिलेगा। एक वर्ष में सौ दिन की मजदूरी का तो सवाल ही नहीं उठता। इन सबके बावजूद मजदूरों के एक बड़ी समस्या एप ने खड़ी कर दी है। उपस्थिति ठीक से नहीं लग पाने के कारण उनकी पेमेंट छूट रही है। मजदूरों को तकनीकी उपकरणों में फंसा दिया गया है। आधार लिंक होने में दिक्कतें आती हैं। सरकार को चाहिए कि वह नरेगा मजदूरों के लिए एक सरल प्रक्रिया बनाए।
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