बीजापुर नक्सली हमले के जिम्मेदार 'हिडमा' ने अपनी एक खास मिलिट्री बटालियन खड़ी कर रखी है। इस बटालियन के पास अमूमन वही हथियार हैं, जो सीआरपीएफ या डीआरजी के जवान इस्तेमाल करते हैं। इन हथियारों में एके-47, एक्स-95, यूबीआरएल, चीनी पिस्टल, एलएमजी, यूबीजीएल, इंसास और एसएलआर राइफल शामिल हैं। नक्सलियों के पास पश्चिम जर्मनी में निर्मित हेक्लर व कोच जी3 बेटल राइफल भी बताई गई हैं। चीन में निर्मित हथियार भी छत्तीसगढ़ के जंगलों में पहुंच रहे हैं। बुलेटप्रूफ जैकेट और संचार सिस्टम के मामले में भी नक्सली बहुत आगे हैं। हिडमा के एक हजार से ज्यादा लड़ाके इन्हीं सब हथियारों से लैस हैं। ये हथियार एवं उपकरण तीन रास्तों से नक्सलियों तक पहुंचते हैं।
इन्हीं हथियारों के दम पर करते हैं घात लगाकर हमला
एनआईए ने गत वर्ष गया जिले से हथियारों की तस्करी करने वाले एक शख्स को गिरफ्तार किया था। पूछताछ के दौरान उसने बताया कि वह जबलपुर की केंद्रीय आयुध निर्माणी से स्वचालित राइफलें चुराता है। इसके बाद उन्हें नक्सली संगठनों को सप्लाई किया जाता है। इससे पहले कोलकाता पुलिस ने 2018 में हथियार डीलर रैकेट का भंडाफोड़ किया था। इसमें पता चला कि वह गिरोह नक्सल प्रभावित सभी राज्यों में हथियारों की सप्लाई करता है।
सीआरपीएफ के पूर्व आईजी वीपीएस पवार के अनुसार, नक्सलियों के पास मौजूदा समय में घातक हथियार हैं, यह बात साबित हो चुकी है। इन्हीं के दम पर वे सुरक्षा बलों को घेर लेते हैं। घात लगाकर हमला करने के जितने भी मामले सामने आए हैं, उनमें एके-47 और रॉकेट लॉन्चर का इस्तेमाल किया गया है।
इन तीन रास्तों से नक्सलियों को मिलते हैं घातक हथियार
पवार के अनुसार, नक्सलियों के पास ऐसे घातक हथियार पहुंचने के तीन रास्ते हैं। पहला, नक्सली जब किसी बड़े हमले के द्वारा सुरक्षा बलों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं, तो वे उनके हथियार, बुलेटप्रूफ जैकेट और संचार उपकरण लूट लेते हैं। शवों के पास कुछ भी नहीं छोड़ा जाता। बीजापुर के ताजा हमले में शहीद हुए जवानों के शरीर पर बुलेटप्रूफ जैकेटें तक नहीं थीं। उनके हथियार भी नहीं मिले। गत वर्ष डीआरजी के 17 जवानों को मार दिया गया था। घटना स्थल से स्वचालित राइफलें, गोला बारुद और संचार सिस्टम को नक्सली ले गए थे। करीब डेढ़ दशक में हजारों एके-47 राइफलें नक्सलियों के पास पहुंच चुकी हैं।
दूसरा, सामान्य तौर पर लूटपाट, जैसे किसी गनमैन से हथियार छीनना, पुलिस कर्मी के साथ छीना-झपटी और थाने के शस्त्रगृह में लूटपाट आदि शामिल है। माइनिंग साइट से भी कई बार हथियार छीनने की घटनाएं सामने आई हैं। साल 2013 में जब नक्सलियों ने कांग्रेस पार्टी की परिवर्तन रैली पर हमला किया तो उस दौरान पार्टी के राज्य प्रमुख नंद कुमार पटेल, पूर्व विपक्षी नेता महेंद्र कर्मा और पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल सहित 29 लोग मारे गए थे। उस वक्त भी नक्सलियों ने सुरक्षा कर्मियों के हथियार लूटे थे। संचार उपकरण के जरिए नक्सली कुछ समय तक सुरक्षा बलों की मूवमेंट और संदेश ट्रैप करने का प्रयास करते हैं।
तीसरा, नक्सलियों ने अब स्वचालित राइफलें खरीदनी शुरू कर दी हैं। इसके लिए खर्च में कटौती की जा रही है। उत्तर पूर्व के आतंकी समूहों से हथियार खरीदे गए हैं, जांच एजेंसियों के पास इसके पुख्ता सबूत हैं। वहां से नक्सलियों को चीन में निर्मित हथियार भी मिल जाते हैं। सुकमा में तैनात सुरक्षा बल के एक अधिकारी ने बताया, नक्सली अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। उन्होंने माइनिंग और बड़े निर्माण स्थलों को निशाना बनाया है। कई जगहों पर नक्सली लूटपाट न कर यह सौदा करते हैं कि वह व्यवसायी उनके लिए हथियारों के डीलर को पैसा दे देगा। इन सब कारणों के चलते नक्सली हथियारों के मामले में सुरक्षा बलों से किसी भी तरह कम नहीं हैं। पूर्व आईजी एसएस संधू कहते हैं, सुरक्षा बलों की हर टीम के साथ एक छोटी पार्टी रहनी चाहिए। बड़ा हमला होने की स्थिति में कम से कम वह पार्टी हथियार आदि की लूट को रोक सकती है। भले यह पार्टी दो-तीन किलोमीटर की दूरी पर रहे।
विस्तार
बीजापुर नक्सली हमले के जिम्मेदार 'हिडमा' ने अपनी एक खास मिलिट्री बटालियन खड़ी कर रखी है। इस बटालियन के पास अमूमन वही हथियार हैं, जो सीआरपीएफ या डीआरजी के जवान इस्तेमाल करते हैं। इन हथियारों में एके-47, एक्स-95, यूबीआरएल, चीनी पिस्टल, एलएमजी, यूबीजीएल, इंसास और एसएलआर राइफल शामिल हैं। नक्सलियों के पास पश्चिम जर्मनी में निर्मित हेक्लर व कोच जी3 बेटल राइफल भी बताई गई हैं। चीन में निर्मित हथियार भी छत्तीसगढ़ के जंगलों में पहुंच रहे हैं। बुलेटप्रूफ जैकेट और संचार सिस्टम के मामले में भी नक्सली बहुत आगे हैं। हिडमा के एक हजार से ज्यादा लड़ाके इन्हीं सब हथियारों से लैस हैं। ये हथियार एवं उपकरण तीन रास्तों से नक्सलियों तक पहुंचते हैं।
इन्हीं हथियारों के दम पर करते हैं घात लगाकर हमला
एनआईए ने गत वर्ष गया जिले से हथियारों की तस्करी करने वाले एक शख्स को गिरफ्तार किया था। पूछताछ के दौरान उसने बताया कि वह जबलपुर की केंद्रीय आयुध निर्माणी से स्वचालित राइफलें चुराता है। इसके बाद उन्हें नक्सली संगठनों को सप्लाई किया जाता है। इससे पहले कोलकाता पुलिस ने 2018 में हथियार डीलर रैकेट का भंडाफोड़ किया था। इसमें पता चला कि वह गिरोह नक्सल प्रभावित सभी राज्यों में हथियारों की सप्लाई करता है।
सीआरपीएफ के पूर्व आईजी वीपीएस पवार के अनुसार, नक्सलियों के पास मौजूदा समय में घातक हथियार हैं, यह बात साबित हो चुकी है। इन्हीं के दम पर वे सुरक्षा बलों को घेर लेते हैं। घात लगाकर हमला करने के जितने भी मामले सामने आए हैं, उनमें एके-47 और रॉकेट लॉन्चर का इस्तेमाल किया गया है।
इन तीन रास्तों से नक्सलियों को मिलते हैं घातक हथियार
पवार के अनुसार, नक्सलियों के पास ऐसे घातक हथियार पहुंचने के तीन रास्ते हैं। पहला, नक्सली जब किसी बड़े हमले के द्वारा सुरक्षा बलों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं, तो वे उनके हथियार, बुलेटप्रूफ जैकेट और संचार उपकरण लूट लेते हैं। शवों के पास कुछ भी नहीं छोड़ा जाता। बीजापुर के ताजा हमले में शहीद हुए जवानों के शरीर पर बुलेटप्रूफ जैकेटें तक नहीं थीं। उनके हथियार भी नहीं मिले। गत वर्ष डीआरजी के 17 जवानों को मार दिया गया था। घटना स्थल से स्वचालित राइफलें, गोला बारुद और संचार सिस्टम को नक्सली ले गए थे। करीब डेढ़ दशक में हजारों एके-47 राइफलें नक्सलियों के पास पहुंच चुकी हैं।
दूसरा, सामान्य तौर पर लूटपाट, जैसे किसी गनमैन से हथियार छीनना, पुलिस कर्मी के साथ छीना-झपटी और थाने के शस्त्रगृह में लूटपाट आदि शामिल है। माइनिंग साइट से भी कई बार हथियार छीनने की घटनाएं सामने आई हैं। साल 2013 में जब नक्सलियों ने कांग्रेस पार्टी की परिवर्तन रैली पर हमला किया तो उस दौरान पार्टी के राज्य प्रमुख नंद कुमार पटेल, पूर्व विपक्षी नेता महेंद्र कर्मा और पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल सहित 29 लोग मारे गए थे। उस वक्त भी नक्सलियों ने सुरक्षा कर्मियों के हथियार लूटे थे। संचार उपकरण के जरिए नक्सली कुछ समय तक सुरक्षा बलों की मूवमेंट और संदेश ट्रैप करने का प्रयास करते हैं।
तीसरा, नक्सलियों ने अब स्वचालित राइफलें खरीदनी शुरू कर दी हैं। इसके लिए खर्च में कटौती की जा रही है। उत्तर पूर्व के आतंकी समूहों से हथियार खरीदे गए हैं, जांच एजेंसियों के पास इसके पुख्ता सबूत हैं। वहां से नक्सलियों को चीन में निर्मित हथियार भी मिल जाते हैं। सुकमा में तैनात सुरक्षा बल के एक अधिकारी ने बताया, नक्सली अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। उन्होंने माइनिंग और बड़े निर्माण स्थलों को निशाना बनाया है। कई जगहों पर नक्सली लूटपाट न कर यह सौदा करते हैं कि वह व्यवसायी उनके लिए हथियारों के डीलर को पैसा दे देगा। इन सब कारणों के चलते नक्सली हथियारों के मामले में सुरक्षा बलों से किसी भी तरह कम नहीं हैं। पूर्व आईजी एसएस संधू कहते हैं, सुरक्षा बलों की हर टीम के साथ एक छोटी पार्टी रहनी चाहिए। बड़ा हमला होने की स्थिति में कम से कम वह पार्टी हथियार आदि की लूट को रोक सकती है। भले यह पार्टी दो-तीन किलोमीटर की दूरी पर रहे।