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Millets: what are millets and effects on health, why government is promoting them
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Shree Anna: मोटे अनाज को सरकार विश्व में क्यों दे रही बढ़ावा, आपकी सेहत पर इसका क्या असर?
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: शिवेंद्र तिवारी
Updated Sat, 04 Feb 2023 01:00 PM IST
सार
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वित्त मंत्री ने बजट में मोटे अनाज को दुनिया में बढ़ावा देने का एलान किया। मोटे अनाज अत्यधिक पोषक, अम्ल-रहित, ग्लूटेन मुक्त और आहार गुणों से युक्त होते हैं। इसके अलावा, बच्चों और किशोरों में कुपोषण खत्म करने में मोटे अनाज का सेवन काफी मददगार होता है।
इस बार के बजट में मोटे अनाज को श्री अन्न नाम मिला है। वित्त मंत्री ने मोटे अनाज को दुनिया में बढ़ावा देने का एलान किया। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात कार्यक्रम में मोटे अनाज का जिक्र कर चुके हैं। केंद्र सरकार लगातार मोटे अनाज को बढ़ाव दे रही है।
आखिर ये मोटा अनाज क्या होता है? इसे बढ़ावा क्यों दिया जा रहा है? भारत में इसका कितना उत्पादन होता है? दुनिया में मोटे अजान के उत्पादन में हम कहां हैं? हमारी सेहत के लिए यह कितना फायदेमंद होता है? कौन से देश मोटे अनाज के सबसे बड़े निर्यातक हैं?
Finger Millet
- फोटो : अमर उजाला
मोटा अनाज क्या होता है?
पुराने ववक्त में भारतीय लोगों का भोजन रहे मोटे अनाज 'सुपर फूड' के नाम से जाने जाते हैं। मोटे अनाज अत्यधिक पोषक, अम्ल-रहित, ग्लूटेन मुक्त और आहार गुणों से युक्त होते हैं। इसके अलावा, बच्चों और किशोरों में कुपोषण खत्म करने में मोटे अनाज का सेवन काफी मददगार होता है क्योंकि इससे प्रतिरक्षा और स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलता है।
मोटे अनाज के अंतर्गत आठ फसलें शामिल हैं। इसमें ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कंगनी, चीना, कोदो, कुटकी और कुट्टू को मोटा अनाज की फसल कहा जाता है। ये फसलें आम तौर पर सीमांत और असिंचित भूमि पर उगाई जाती हैं, इसलिए इनकी उपज स्थायी खेती और फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करती है। सरकार के प्रोत्साहन और स्वास्थ्य के प्रति लोगों की सजगता बढ़ने से इनकी खरीद बढ़ी है। खरीद बढ़ने से लाभान्वित होने वाले किसानों की संख्या भी बढ़ी है।
संसद में मिलेट क्रॉप्स से बने विशेष लंच के दौरान बाजरे के उत्पादों को देखते पीएम और उपराष्ट्रपति।
- फोटो : Social Media
मोटे अनाज को बढ़ावा क्यों दिया जा रहा है?
भारत में परंपरागत रूप से मोटे अनाज का उत्पादन होता रहा हैं। हालांकि, कृषि क्षेत्र में आधुनिकीकरण और मशीनीकृत कृषि उपकरण और अधिक उपज वाले बीज आ गए जिसके बाद लोगों का रुझान चावल और गेहूं के उत्पादन के प्रति बढ़ गया। परिणामस्वरूप मोटे अनाज की खपत और खेती दोनों सीमित हो गई। समय ने एक और करवट ली और बदली जलवायु परिस्थितियों के कारण लोगों ने फिर इन अनाजों को उत्पादन करना शुरू किया। मोटे अनाज की फसल में अन्य समान फसल की तुलना में कम जल और कृषि साधनों (इनपुट) की जरूरत होती है। हमारे देश में, मोटे अनाज मुख्य रूप से खराब कृषि जलवायु क्षेत्रों, विशेष रूप से देश के वर्षा क्षेत्रों में उगाए जाते हैं। इन फसलों को उच्च तापमान वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है और उन्हें शुष्क भूमि फसल कहा जाता है क्योंकि इन्हें 50-100 सेमी वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। ये फसलें मिट्टी की कमियों के प्रति कम संवेदनशील होती हैं और इन्हें कम जलोढ़ या लोमी मिट्टी में उगाया जा सकता है। उन्हें पानी, उर्वरक और कीटनाशकों की भी न्यूनतम आवश्यकता होती है। मोटे अनाज की खेती कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में मदद करती है जो आज एक वैश्विक समस्या है।
इसेक अलावा मोटे अनाज देश की खाद्य और पोषण सुरक्षा में बड़े पैमाने पर योगदान करते हैं। इन्हें न्यूट्री-सीरियल्स के रूप में जाना जाता है क्योंकि ये मानव शरीर के सामान्य कामकाज के लिए आवश्यक अधिकांश पोषक तत्व प्रदान करते हैं। मोटे अनाज में कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआई) होता है और यह मधुमेह की रोकथाम से भी मददगार होता है। ये आयरन, जिंक और कैल्शियम जैसे खनिजों का अच्छा स्रोत हैं। मोटे अनाज वजन कम करने और उच्च रक्तचाप में मददगार होते हैं। इनका आम तौर पर फलियों के साथ सेवन किया जाता है, जो प्रोटीन युक्त होता है।
Foxtail Millet
- फोटो : अमर उजाला
भारत कितना मोटा अनाज उगाता है?
भारत विश्व में मोटे अनाजों के अग्रणी उत्पादकों में एक है और वैश्विक उत्पादन में भारत का अनुमानित हिस्सा करीब 41 फीसदी है। एफएओ के अनुसार, वर्ष 2020 में मोटे अनाजों का विश्व उत्पादन 30.464 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) हुआ। अकेले भारत में 12.49 एमएमटी मोटे अनाज का उत्पादन हुआ। यानी, कुल मोटे अनाज उत्पादन का 41 प्रतिशत अकेले भारत में उगता है। भारत ने 2021-22 में मोटा अनाज उत्पादन में 27 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की, जबकि इससे पहले के वर्ष में यह उत्पादन 15.92 एमएमटी था।
भारत के शीर्ष पांच मोटा अनाज उत्पादक राज्य हैं – राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और मध्य प्रदेश। मोटा अनाज निर्यात का हिस्सा कुल उत्पादन का एक प्रतिशत है। अनुमान है कि 2025 तक मोटे अनाज का बाजार वर्तमान 9 बिलियन डॉलर बाजार मूल्य से बढ़कर 12 बिलियन डॉलर हो जाएगा।
भारत जिन प्रमुख देशों को मोटे अनाज का निर्यात करता हैं, उनमें संयुक्त अरब अमीरात, नेपाल, सऊदी अरब, लीबिया, ओमान, मिस्र, ट्यूनीशिया, यमन, ब्रिटेन तथा अमेरिका हैं। भारत द्वारा निर्यात किए जाने वाले मोटे अनाजों में बाजरा, रागी, कनेरी, जवार और कुट्टू शामिल हैं। मोटे अनाज आयात करने वाले प्रमुख देश हैं - इंडोनेशिया, बेल्जियम, जापान, जर्मनी, मेक्सिको, इटली, अमेरिका, ब्रिटेन, ब्राजील और नीदरलैंड।
भारत के अलावा बाकी कौन से देशों में मोटे अनाज का उत्पादन ज्यादा होता है?
वैश्विक परिदृश्य में मोटे अनाज के उत्पादन की बात करें तो यहां भारत सबसे आगे है। 2020 में, वैश्विक उत्पादन 30.5 मिलियन टन था। दुनिया भर में 32 मिलियन हेक्टेयर से अधिक भूमि में इसकी खेती की जाती हैं। भारत, नाइजर और चीन दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक हैं, जिनका वैश्विक उत्पादन में 55.0% से अधिक हिस्सा है। इनके बाद नाइजीरिया, माली और इथोपिया का नंबर आता है। बदलते जलवायु परिवर्तन के कारण हाल के वर्षों में, अफ्रीका में मोटे अन्न के उत्पादन में अचानक वृद्धि हुई है।
Foxtail Millet
- फोटो : अमर उजाला
कौन से देश मोटे अनाज के सबसे बड़े निर्यातक हैं?
मोटे अन्न का वैश्विक निर्यात 2019 में 380 मिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर 2020 में 402.7 मिलियन अमरीकी डॉलर हो गया है। इसके प्रमुख निर्यातक देश अमेरिका, रूस, यूक्रेन, भारत, चीन, नीदरलैंड, फ्रांस, पोलैंड और अर्जेंटीना हैं। इन देशों का कुल निर्यात 2020 में 221.68 मिलियन अमरीकी डॉलर था। 2020 में मोटे अन्न का वैश्विक निर्यात 466.284 मिलियन अमरीकी डॉलर था।
millet
- फोटो : Social media
सेहत के लिए मोटा अनाज कितना फायदेमंद हो सकता है?
पुरानी पीढ़ियों में मोटे अन्न पोषण का अभिन्न अंग थे। हालांकि, पोषक तत्वों से भरपूर इन अन्नों का इस्तेमाल कम हुआ। न्यूटिषियन जरनल के अध्ययन के अनुसार भारत वर्ष के 3 साल तक के बच्चे यदि 100 ग्राम बाजरा के आटे का सेवन करते हैं तो वह अपनी प्रतिदिन की आयरन (लौह) की आवश्यकता की पूर्ति कर सकते हैं। जो दो साल के बच्चे हैं वह इसमें कम मात्रा का सेवन करें।
बाजरे का आटा विशेषकर भारतीय महिलाओं के लिए खून की कमी को पूरा करने का एक सुलभ साधन है। भारत में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में महिलाएं एवं बच्चों में लौहतत्व (आयरन) एवं मिनरल (खनिज लवण) की कमी पाई जाती है। न्यूटिषियन हारवेस्टप्लस विभागाध्यक्ष डा. एरिक बोई के अनुसार गेहूं एवं चावल से, बाजरा आयरन एवं जिंक का एक बेहतर श्रोत है।
भविष्य में मोटे अन्न के लिए क्या योजना है?
इस साल भी मोटे अन्न को प्रोत्साहित करने के लिए कई कार्यक्रम तय किए गए हैं। 140 से अधिक देशों में भारत के दूतावास 2023 के दौरान अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के उत्सव, आईवाईएम पर साइड इवेंट आयोजित करके प्रदर्शनी, सेमिनार, वार्ता, पैनल चर्चा के साथ-साथ स्थानीय कक्षों की भागीदारी, भोजन ब्लॉगर्स, खाद्य पदार्थों के आयातक और स्थानीय रेस्तरां आदि में भाग लेंगे।
इसके अलावा बाजरा जी-20 बैठकों का भी एक अभिन्न हिस्सा है। इसके तहत प्रतिनिधियों को इसे चखने, किसानों से मिलने और स्टार्ट-अप व एफपीओ के साथ संवादात्मक सत्रों के माध्यम से बाजरा को लेकर अनुभव प्रदान किया जाएगा।
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