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Manipur Violence: Naxalism and Kashmir like situation in Manipur, how will amit Shah end the war?
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Manipur Violence: मणिपुर में बन रहे नक्सल और कश्मीर जैसे हालात, जंगल-जमीन की लड़ाई को कैसे करेंगे खत्म शाह
Manipur Violence: मणिपुर में जो हिंसा हो रही है, उसमें नगा, कुकी और मैतेई समुदाय शामिल हैं। नुकसान पहुंचाने और खाने वालों में यही तीनों समुदाय हैं। ये अलग बात है कि नगा वाले इलाक़ों में नुकसान कम है। इंफाल पश्चिम के कांगचुप, खुरखुल, इंफाल पूर्व के सगोलमंग व चुराचांदपुर के कई क्षेत्रों में दोबारा से हिंसा शुरू हो गई...
मणिपुर में तीन मई से लेकर अब तक हिंसा, तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाएं जारी हैं। वहां पर सेना, असम राइफल, सीआरपीएफ, मणिपुर पुलिस के कमांडो और दूसरे केंद्रीय बल तैनात हैं, मगर हिंसा थमने का नाम ही नहीं ले रही। अभी तक 75 से ज्यादा लोग मारे गए हैं, सैकड़ों घायल हैं। हजारों लोगों की प्रॉपर्टी आग के हवाले कर दी गई। सेना प्रमुख मनोज पांडे मणिपुर का दौरा कर चुके हैं। सोमवार से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का तीन दिवसीय मणिपुर दौरा शुरू हो रहा है। जानकारों की मानें तो वहां की स्थिति बहुत खराब हो चुकी है। दिल्ली तक आधी अधूरी सच्चाई ही पहुंच रही है। मणिपुर में नक्सल समस्या और कश्मीर जैसे हालात बन रहे हैं। अब अमित शाह एक्शन में आए हैं। देखने वाली बात यह होगी कि जंगल/जमीन की लड़ाई रूपांतरण, पलायन, मंदिर, चर्च और अफीम के कारोबार से गुजरते हुए किसी पड़ाव पर खत्म होती है या नहीं।
48 घंटे में एक हजार से ज्यादा स्वचालित हथियार लूटे
मणिपुर में जो हिंसा हो रही है, उसमें नगा, कुकी और मैतेई समुदाय शामिल हैं। नुकसान पहुंचाने और खाने वालों में यही तीनों समुदाय हैं। ये अलग बात है कि नगा वाले इलाक़ों में नुकसान कम है। इंफाल पश्चिम के कांगचुप, खुरखुल, इंफाल पूर्व के सगोलमंग व चुराचांदपुर के कई क्षेत्रों में दोबारा से हिंसा शुरू हो गई। गोलीबारी में कई लोग मारे गए हैं। ये सब घटनाएं उस वक्त हो रही हैं, जब मणिपुर में सेना और केंद्रीय अर्धसैनिक बल तैनात हैं। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, पिछले दो दिनों में मणिपुर पुलिस की इंडियन रिजर्व बटालियन संख्या 3, 6, 7, व 8 से लगभग एक हजार से ज्यादा स्वचालित हथियार लूटे गए हैं। थोउबल जिले में खंगाबोक स्थित मणिपुर पुलिस की आईआरबी से 70 हथियार लूट लिए गए। हालांकि एक दिन पहले ही बटालियन हेडक्वार्टर से लगभग 500 हथियार, असम राइफल के पास जमा कराए गए थे। छठी आईआरबी के हेडक्वार्टर से 300 हथियार लूट लिए गए। हिल पर स्थित टेंगोपोल पुलिस थाने से लगभग ढाई सौ हथियार लूटे गए। कुल मिलाकर दो दिनों में एक हजार से अधिक हथियार लूटे जा चुके हैं। हथियार लूटने का आरोप मैतेई समुदाय पर लगा है।
यहां से शुरू हुई थी लड़ाई
मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने पर विचार करने के आदेश जारी किए थे। बाद में हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई। चूंकि मामला आरक्षण से जुड़ा था, इसलिए नगा-कुकी जो पहले से ही अनुसूचित जनजाति में शामिल हैं, नाराज हो गए। नगा-कुकी समुदाय में ज्यादातर लोग ईसाई धर्म को मानते हैं। मैतेई हिंदू धर्मावलंबी हैं। तीन मई को 'आदिवासी एकजुटता मार्च' चल रहा था। इसमें शामिल लोग, पहाड़ी जिलों में मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति की मांग का विरोध कर रहे थे। वहीं से दोनों समुदायों के बीच झड़प शुरू हो गई। वन और पर्वतीय क्षेत्र में नगा व कुकी रहते हैं। इन्हें इंफाल घाटी क्षेत्र में भी बसने का अधिकार है। मैतेई समाज को वन एवं पर्वतीय क्षेत्र में ऐसा अधिकार नहीं मिला है। नगा और कुकी, जिनकी आबादी 34 फीसदी है, लेकिन वे राज्य के 90 फीसदी क्षेत्र में फैले हैं। दूसरी तरफ मैतेई हैं, जिनकी कुल आबादी में हिस्सेदारी लगभग 53 फीसदी है। ये लोग दस फीसदी क्षेत्र में रह रहे हैं। मणिपुर विधानसभा में 60 विधायक हैं। इनमें से 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं। बाकी विधायक आदिवासी समुदाय से आते हैं।
क्यों कही गई नक्सल और कश्मीर की बात
सुरक्षा एजेंसियों के एक अधिकारी ने बताया, यहां सब वैसा ही चल रहा है, जो आपने कश्मीर या नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में देखा है। कश्मीर में बहुत से लोग पलायन कर गए। इसी तरह नक्सल में जंगल और जमीन की लड़ाई चल रही है। कुछ वैसा ही मणिपुर में भी दिख रहा है। कुकी और नगा, पहाड़ी क्षेत्र में हैं, वे नहीं चाहते कि यहां पर मैतई को आने का अधिकार मिले। लेखक, इतिहास एवं शोधकर्ता मनोशी सिन्हा बताती हैं, कास्ट स्टे्टस की वजह से आज मणिपुर जल रहा है। सारी लड़ाई की वजह जातिगत आरक्षण है। हिंदू मैतई अल्पसंख्यक हैं। कुकी भी हिंदू हैं, लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है। मैतेई आबादी 62 फीसदी से घटकर 53 फीसदी रह गई है। ये लोग दूसरे राज्यों में जाकर बस रहे हैं। इनकी सांस्कृतिक पहचान खत्म हो रही है। गत वर्ष मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की सरकार ने चूराचांदपुर के वनक्षेत्र में बसे नगा और कुकी जनजाति को घुसपैठिया कहा था। उन्हें वहां से निकालने के आदेश दिए थे। पहले यहां के गांवों में मंदिर थे। जहां पर सभी पर्व मनाए जाते थे। सभी लोग कम से कम एक माह में अवश्य मिलते थे। अब जातिगत बाधाएं आ गईं। कुकी व नगा में अधिकांश इसाई हैं। वे खुद को तो इसाई रखना ही चाहते हैं, लेकिन दूसरे समुदाय के लिए भी ऐसी स्थितियां पैदा कर रहे हैं कि वे भी इसाई बनें या पलायन कर जाएं। हालांकि मैतई की तरह सिटी लाइफ गुजारना कुकी भी चाहते हैं। अब स्थिति ऐसी है कि अगर सरकार मैतई के पक्ष में कुछ करती है तो नगा व कुकी नाराज हो जाएंगे। नगा व कुकी के पक्ष में और ज्यादा होता है तो मैतई नाराज होंगे।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि मणिपुर की हिंसा के लिए हाई कोर्ट का फैसला जिम्मेदार है। इसी तरह अब असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा कह रहे हैं कि ये सब हिंसा हाई कोर्ट के फैसले के कारण हुई है। हाई कोर्ट को इस मामले में एकाएक यह फैसला नहीं देना चाहिए। मनोशी सिन्हा कहती हैं, ये बात सही है कि मैतई समुदाय को संसाधन मिलने चाहिए। मणिपुर से इनका पलायन हो रहा है। कुकी मंदिर तोड़ रहे हैं। कोर्ट और सरकार को दोनों समुदायों की भावनाओं और वस्तुस्थिति के अनुसार आगे बढ़ना चाहिए। दोनों समुदायों के बीच सामंजस्य जरूरी है। मणिपुर को लेकर सुरक्षा बल के एक अधिकारी बताते हैं कि शुरू में जब मणिपुर में हिंसा होने पर सीएपीएफ और आर्मी के हजारों जवान पहुंचे थे, तो उन्हें इंफाल में रोक दिया गया। फ्लैग मार्च तक नहीं निकल सका। रोड जाम कर दिया गया था। इंफाल सिटी में भयंकर तोड़फोड़ हुई। वहां भी करीब 35000 कुकी फंसे हुए थे। पूर्व आईबी अधिकारी और वार्ताकार एके मिश्रा द्वारा शुरू की गई शांति प्रक्रिया की पहल में बाधा डाली गई। आरोप हैं कि लोकल पुलिस कमांडो, मैतई का पक्ष ले रहे हैं। वहां तेज रफ्तार में रेडिकलाइजेशन हो रहा है। इस बाबत आईबी ने विस्तृत रिपोर्ट भेजी है। हिंदू और ईसाई की लड़ाई तो दिखावा है। नगा बाहुल्य क्षेत्र में कोई नुकसान नहीं हो रहा। यहां तक कि पुलिस के शीर्ष अफसर जो कुकी हैं, उनका घर जला दिया गया।
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