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Kurukshetra: picture of 2024 Lok Sabha elections will be clear from the results of Karnataka election 2023
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कुरुक्षेत्र: भाजपा के मोदी करिश्मे बनाम कांग्रेस के खरगे दांव के मुकाबले में कर्नाटक से निकलेगी आगे की राह
Karnataka Election 2023: पूर्वोत्तर में भाजपा गठबंधन की सियासी बोहनी के साथ ही 2023 के चुनावी मेले की शुरुआत हो गई है। अब अप्रैल-मई में कर्नाटक और उसके बाद साल के आखिर में मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना के चुनावी मेले में भाजपा के रणकौशल और कांग्रेस समेत विपक्ष की चुनौती की कठिन परीक्षा होनी है...
पीएम मोदी और मल्लिकार्जुन खरगे।
- फोटो : Social Media
कर्नाटक विधानसभा चुनावों की तारीखों का एलान हो गया है। विपक्ष खासकर कांग्रेस भाजपा के मुकाबले 2023 के विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनावों में कितनी और कहां टिकेगी इसकी तस्वीर काफी हद तक कर्नाटक विधानसभा चुनावों के नतीजों से साफ हो जाएगी। अगर कर्नाटक में जहां राज्य की भाजपा सरकार जबर्दस्त सत्ता विरोधी लहर से जूझ रही है, वहां कांग्रेस सरकार बना लेती है, तो इसके बाद होने वाले मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के चुनावों में कांग्रेस भाजपा को कड़ी चुनौती दे पाएगी और अगर मोदी करिश्मे से भाजपा राज्य की सत्ता में वापसी करती है तो न सिर्फ भाजपा के मुकाबले कांग्रेस कमजोर साबित होगी, बल्कि विपक्ष की राजनीति में भी उसके दबदबे पर विपरीत असर पड़ेगा। कर्नाटक में मुकाबला भाजपा के मोदी करिश्मे और कांग्रेस के खरगे दांव के बीच होगा। दक्षिण के इस राज्य की जमीन पर ही राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस के लिए राजनीतिक रूप से कितनी फायदेमंद हुई इसकी परीक्षा भी होगी।
भाजपा गठबंधन और संयुक्त विपक्ष के बीच कड़ा मुकाबला
इस साल हुए पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के चुनावी नतीजों, हिंडनबर्ग रिपोर्ट और अदाणी प्रकरण पर विपक्ष के सरकार और सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमले, राहुल गांधी के संसद और लंदन में दिए गए भाषणों के बाद गरमाई राजनीति से संसद के बजट सत्र न चलना और सूरत की अदालत से मानहानि के मुकदमे में दो साल की सजा के बाद राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता खत्म होने के बाद इस मुद्दे पर सभी विपक्षी दलों के एकजुट होने से यह साफ हो गया है कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में भाजपा गठबंधन और संयुक्त विपक्ष के बीच कड़े मुकाबले के संकेत हैं। अगला लोकसभा चुनाव मोदी बनाम राहुल हो या न हो, लेकिन किसी न किसी रूप में राहुल गांधी सरकार विरोधी राजनीति का केंद्र बने रहेंगे।
पूर्वोत्तर में भाजपा गठबंधन की सियासी बोहनी के साथ ही 2023 के चुनावी मेले की शुरुआत हो गई है। अब अप्रैल-मई में कर्नाटक और उसके बाद साल के आखिर में मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना के चुनावी मेले में भाजपा के रणकौशल और कांग्रेस समेत विपक्ष की चुनौती की कठिन परीक्षा होनी है। भाजपा और उसके समर्थक दलों को भरोसा है अपने नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर, उनकी भाषण कला पर जो अपने ऊपर होने वाले हमलों को भी अपना हथियार बना लेती है, अपने कार्यकर्ताओं की लंबी फौज पर, गृह मंत्री अमित शाह की कुशल रणनीति पर, अध्यक्ष जेपी नड्डा की कड़ी मेहनत पर, मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके सभी अनुषांगिक संगठनों के विस्तृत प्रचार तंत्र पर, मोदी सरकार के कामकाज, उपलब्धियों और अस्सी करोड़ से ज्यादा लोगों को मिलने वाले मुफ्त राशन पर तमाम सरकारी योजनाओं के लाभार्थी वर्ग की वफादारी पर और इन सबसे बढ़ कर हिंदुत्व के जरिए देश की बहुसंख्यक आबादी के ध्रुवीकरण पर।
भाजपा के खिलाफ चलेंगे ये हथियार
दूसरी तरफ, विपक्ष यानी कांग्रेस और उसके समर्थक दलों को लगता है कि महंगाई, बेरोजगारी, पुरानी पेंशन योजना, नोटबंदी जीएसटी से छोटे उद्योगों और व्यापारियों को होने वाले आर्थिक नुकसान, समाज के बिगड़े ताने-बाने, पूर्वी सीमा पर चीन का बढ़ता अतिक्रमण, अदाणी समूह को लेकर हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद याराना पूंजीवाद का बढ़ता खतरा, गैर भाजपा शासित राज्यों के साथ केंद्र सरकार के बिगड़ते रिश्ते और गैर भाजपा दलों के नेताओं के खिलाफ लगातार सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग जैसे मुद्दे मोदी सरकार और भाजपा के खिलाफ उसके पास बड़ा कारगर हथियार हैं। साथ ही जिस तरह पहले संसद में अदाणी मुद्दे पर अपने आक्रामक तेवरों और फिर लंदन में अपने भाषणों को लेकर जिस तरह राहुल गांधी सार्वजनिक चर्चा में रहे और फिर सूरत की कोर्ट से मानहानि मामले में उन्हें मिली सजा और लोकसभा से उनकी सदस्यता के खात्मे ने भी विपक्षी राजनीति की आग में घी डालने का काम किया है। राहुल गांधी के मुद्दे को कांग्रेस गरम रखते हुए उनके लिए सहानुभूति जुटाने की पूरी कोशिश कर रही है। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से लेकर खुद पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी समेत सभी प्रमुख नेता मैदान में जिस तरह उतरे हैं, उससे लगता है कि कांग्रेस आसानी से इस मुद्दे पर पीछे हटने वाली नहीं है। विपक्षी नेताओं खासकर अब तक कांग्रेस से दूरी बनाकर चल रहे अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, चंद्रशेखर राव के साथ आ जाने से भी कांग्रेस का हौसला बढ़ा है। पार्टी इसे भाजपा के खिलाफ भावी विपक्षी एकता के पहले कदम के रूप में देख रही है।
भाजपा को भी इसका अहसास है इसलिए उसने राहुल गांधी के उस बयान पर जिसे लेकर उन्हें सजा हुई है, ओबीसी कार्ड खेलना शुरू कर दिया है। सरकार के सभी वरिष्ठ मंत्री राहुल गांधी पर हमलावर हैं। पहले उनके लंदन वाले भाषण को लेकर उन पर देशविरोधी काम करने का आरोप लगाते हुए माफी मांगने पर जोर दिया गया और अब राहुल गांधी पर ओबीसी के अपमान का आरोप लगाकर भाजपा ने अपने ओबीसी सांसदों को मैदान में उतार दिया है। भाजपा इसमें एक तरफ तो कांग्रेस और राहुल गांधी को निशाने पर लेना चाहती है, तो दूसरी तरफ अपने इस दांव में सपा, जद(यू), राजद जैसे मंडलवादी दलों के जातीय जनगणना कार्ड की काट भी देख रही है। हालांकि भाजपा को जवाब देते हुए अखिलेश यादव ने सवाल किया है कि जब 2017 में उन्होंने मुख्यमंत्री आवास खाली किया तो उसे गंगा जल से धोने वाले कैसे ओबीसी की बात कर सकते हैं। उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मैदान में उतर आए हैं। उन्होंने पहले संसद में विपक्ष को चुनौती देते हुए कहा कि एक अकेला सब पर भारी और अब दिल्ली में भाजपा कार्यालय पर हुए एक समारोह को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि उनकी सरकार के खिलाफ अभी और निचले स्तर के आरोप लगाए जाएंगे। मोदी ने राहुल के मुद्दे पर एकजुट हो रहे विपक्ष पर हमला करते हुए कहा कि उनके खिलाफ सारे भ्रष्टाचारी एकजुट हो रहे हैं।
शेल कंपनियों का मुद्दा
कुल मिलाकर आने वाले सभी चुनावों की गोलबंदी और मुद्दे स्पष्ट हैं। कांग्रेस समेत सारा विपक्ष हिंडनबर्ग अदाणी मुद्दे को लोकसभा चुनावों तक जिंदा रखेगा और सरकार से पूछता रहेगा कि अदाणी की कंपनियों में शेल कंपनियों से आने वाली रकम किसकी है और प्रधानमंत्री मोदी का अदाणी से क्या रिश्ता है। जबकि भाजपा विपक्ष के आरोपों को मोदी सरकार की अगुआई में भारत की विकास यात्रा के खिलाफ साजिश बताते हुए अपनी सरकार की योजनाओं और उपलब्धियों को आगे रखेगी। जवाब में विपक्ष महंगाई, बेरोजगारी के मुद्दों पर जोर देगा। जनवरी 2024 में राम मंदिर के निर्माण पूरा होने, काशी मथुरा के मंदिरों के विवाद और कुछ साधू-संतों द्वारा हिंदू राष्ट्र की मांग बार बार उठाते रहने के जरिए हिंदुत्व का अपना हथियार भी इस्तेमाल करेगी। जिसकी काट के लिए विपक्षी खेमे के मंडलवादी दल जातीय जनगणना की मांग पर जोर देंगे। मुद्दों और आरोपों की इन्हीं धाराओं अंतर्धाराओं के घमासान के बीच इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों और अगले साल के लोकसभा चुनावों में लोग वोट डालेंगे।
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