अमर उजाला की खास पेशकश 'खबरों के खिलाड़ी' की छठी कड़ी के साथ एक बार फिर हम आपके सामने प्रस्तुत हैं। इस साप्ताहिक शो में हम हफ्ते की बड़ी खबरों और राजनीतिक घटनाक्रम का विश्लेषण करते हैं। यह चुनावी चर्चा अमर उजाला के यूट्यूब चैनल पर लाइव हो चुकी है। इसे रविवार सुबह 9 बजे भी देखा जा सकता है।
इस हफ्ते सत्ता की सबसे बड़ी खबर कर्नाटक विधानसभा चुनाव की घोषणा रही। कर्नाटक चुनाव बेहद अहम माने जा रहे हैं। राहुल गांधी मामले के बाद इनकी अहमियत और बढ़ गई है। राहुल की संसद सदस्यता जाने का मामला अभी गरम है और इसका कर्नाटक चुनाव पर कितना असर होगा?....तो आइए जानते हैं कि हमारे चुनावी विश्लेषकों की इन मुद्दों पर क्या राय है। इस बार की चर्चा में बतौर विश्लेषक हमारे साथ सुमित अवस्थी, अवधेश कुमार, विनोद अग्निहोत्री, रास बिहारी, रामकृपाल सिंह और पूर्णिमा त्रिपाठी मौजूद हैं। पढ़िए चर्चा के कुछ अहम अंश.....
सुमित अवस्थी
क्या भाजपा के लिए इस बार कर्नाटक की राह मुश्किल है? कर्नाटक में इस बार सत्ता विरोधी लहर की बात कही जा रही है और कांग्रेस नेता उनकी पार्टी के सत्ता में आने का दावा कर रहे हैं। डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया खासे सक्रिय हैं। वहीं, राहुल गांधी को संसद सदस्यता से अयोग्य ठहराए जाने के बाद इस बात की भी चर्चा है कि कांग्रेस पार्टी इसके खिलाफ अपील क्यों नहीं कर रही है? क्या ये कांग्रेस की रणनीति है या फिर यह कांग्रेस पार्टी की लापरवाही है। क्या कांग्रेस, कर्नाटक में राहुल गांधी मामले को भुना पाएगी, इस पर सभी की नजरें बनी हुई हैं।
कर्नाटक चुनाव में लिंगायत बनाम वोक्कालिगा की लड़ाई है या फिर वहां राहुल गांधी मामला अहम साबित होगा, ये भी देखने वाली बात होगी। भाजपा की छवि एक भ्रष्टाचार विरोधी पार्टी की रही है लेकिन कर्नाटक में भाजपा येदियुरप्पा को साथ लेकर चल रही है, जबकि येदियुरप्पा पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग चुके हैं। साथ ही भाजपा की मौजूदा प्रदेश सरकार पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे रहे हैं। ऐसे में कर्नाटक चुनाव में भाजपा की क्या रणनीति रहने वाली है, ये देखना भी दिलचस्प होगा।
विनोद अग्निहोत्री
'कर्नाटक में भाजपा ने दो बार सरकार बनाई है लेकिन उसे वहां पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। कर्नाटक में जदयू की भूमिका अहम होगी। मैसूर का इलाका देवगौड़ा का गढ़ माना जाता है, जो वोक्कालिगा का इलाका है। हालांकि देवगौड़ा अब कमजोर हो गए हैं। कर्नाटक में मुख्य लड़ाई भाजपा और कांग्रेस में ही है। कर्नाटक में भ्रष्टाचार भी एक मुद्दा है और 2013 जैसी स्थिति वहां फिर दिखाई दे रही है, जब भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस ने भाजपा को पटखनी दे दी थी। बासवराज बोम्मई अपने नेतृत्व से प्रभावित नहीं कर सके हैं। कर्नाटक चुनाव राहुल गांधी और खरगे की भी अग्निपरीक्षा है। स्थानीय नेतृत्व लगातार मेहनत कर रहा है। डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया लगातार दौरे और यात्राएं कर रहे हैं। कांग्रेस उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है लेकिन अभी तक वहां बगावत की खबर नहीं आई है। ये अहम बात है। राहुल गांधी को भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी कर्नाटक में खासा समर्थन मिला था। कर्नाटक में परिस्थितियां कांग्रेस के पक्ष में हैं।'
राहुल गांधी मामले पर उन्होंने कहा कि 'छल-प्रपंच राजनीति का हिस्सा है और ये आज से नहीं है आदिकाल से है। भाजपा को भी चिंता है कि राहुल गांधी माफी क्यों नहीं मांग रहे या कोर्ट क्यों नहीं जा रहे। भाजपा इसे लेकर परेशान है। भाजपा के भीतर भी इसे लेकर चिंता है। ऐसे ही कांग्रेस की भी अपनी रणनीति है। शायद राहुल गांधी खुद चाहते हैं कि मामला लंबा चले। राहुल गांधी अगर जेल भी चले जाएं तो वहां से भी अपील की जा सकती है। इसलिए कांग्रेस भी मामले को लंबा खींचने की तैयारी में दिख रही है।'
रामकृपाल सिंह
'निश्चित तौर पर इस बार भाजपा के लिए कर्नाटक की राह मुश्किल है, लेकिन कांग्रेस की राह भी आसान नहीं है। कर्नाटक की जनता काफी समझदार है। 1984 में राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और देश में कांग्रेस को काफी समर्थन मिला था लेकिन सहानुभूति की लहर पर सवार कांग्रेस को 1985 में कर्नाटक की जनता ने झटका दे दिया था और कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था। केंद्रीय सरकार की लोकप्रियता एक अलग चीज है लेकिन राज्य स्तर पर भाजपा के लिए मुश्किलें हैं।'
ये भी पढ़ें-
खबरों के खिलाड़ी:राहुल के बयान और अदाणी की जांच की मांग के बीच संसद ठप, जिम्मेदार कौन? जानिए विश्लेषकों की राय
'कांग्रेस की ताकत क्षेत्रीय पार्टियों ने छीनी है। सिर्फ मध्य भारत में कांग्रेस इसलिए जिंदा है क्योंकि यहां क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत नहीं हैं। कांग्रेस को अगर अपनी ताकत वापस पानी है तो उसे क्षेत्रीय दलों के जनाधार को अपने साथ जोड़ना होगा। कांग्रेस भले कर्नाटक जीत जाए लेकिन उसके बाद क्या होगा? यह बड़ा सवाल है।'
'राहुल गांधी राष्ट्रीय विकल्प नहीं बन पा रहे हैं। राहुल गांधी संसद से अयोग्य ठहराए जाने के मामले पर सहानुभूति ले सकते हैं लेकिन यह सहानुभूति वोटों में तब्दील होगी, ये नहीं कहा जा सकता। मुझे लगता है कि राहुल गांधी मामले में कांग्रेस रणनीतिक तौर पर चूक कर रही है। राहुल का चुनावी राजनीति से संन्यास भाजपा के हक में नहीं है। भाजपा भी ऐसा नहीं चाहती। राहुल गांधी का राजनीतिक परिदृश्य से बाहर होना विपक्ष को फायदा दे सकता है लेकिन बीजेपी को नहीं।'
पूर्णिमा त्रिपाठी
'कर्नाटक में कांग्रेस की तैयारी अच्छी है और उसमें राहुल गांधी की संसद सदस्यता जाने के मुद्दे और मल्लिकार्जुन खरगे का कर्नाटक से होना बेहद अहम साबित होगा। प्रियंका गांधी ने भी कहा है कि हमें राहुल गांधी को अयोग्य ठहराने का जवाब कर्नाटक जीतकर देना है। हालांकि आपसी फूट से निपटना कांग्रेस की चुनौती रहेगी। कर्नाटक के नतीजों से 2024 के लिए भी रूपरेखा थोड़ी साफ होगी।
संसद सदस्यता मामले में राहुल गांधी के अभी तक अपील नहीं करने के पीछे, कांग्रेस की रणनीति हो सकती है। कांग्रेस के पास वकीलों की कमी नहीं है। राहुल गांधी ने सारे मोदी चोर नहीं कहा, लेकिन उन्होंने कहा कि सारे चारों के सरनेम मोदी क्यों हैं? लेकिन आनन फानन में राहुल गांधी को सजा दे दी गई।'
अवधेश कुमार
'कर्नाटक में अभी अस्पष्ट तस्वीर है और पूर्ण बहुमत मिलना वहां बहुत मुश्किल है। कर्नाटक की स्थिति ये है कि मुख्यमंत्री के चेहरे की समस्या है, तभी भाजपा को येदियुरप्पा के नाम का सहारा लेना पड़ रहा है। सत्ता विरोधी लहर से कांग्रेस को कुछ वोट तो मिल सकता है लेकिन उसे इसी दम पर सत्ता मिल जाएगी। ऐसा नहीं कहा जा सकता। मुस्लिम आरक्षण एक बड़ा मुद्दा है। कर्नाटक कांग्रेस में केंद्रीय नेतृत्व की कमजोरी भारी पड़ सकती है, जबकि ये भाजपा की ताकत है।'
'कर्नाटक 2013 में भाजपा इसलिए हारी क्योंकि येदियुरप्पा बाहर थे। भाजपा वहां एक ताकत है और हिंदू राष्ट्र एक बड़ा मुद्दा है। पीएफआई, हिंदुत्व कर्नाटक में बड़ा मुद्दा है और इसकी काट किसी पार्टी के पास नहीं है। उत्तर प्रदेश में जो दर्जा कल्याण सिंह का था,वैसा ही कर्नाटक में येदियुरप्पा का है।'
ये भी पढ़ें-
खबरों के खिलाड़ी: क्या 1978 की तरह कांग्रेस वापसी करेगी? राहुल को हमदर्दी मिल सकेगी? जानिए विश्लेषकों की राय
राहुल गांधी मामले पर उन्होंने कहा कि 'गलत रणनीति या छल-प्रपंच की रणनीति से आप जनता का समर्थन नहीं ले सकते। क्रिमिनल केस को छोटा नहीं माना जा सकता और कांग्रेस इसे लड़ ही नहीं रही। राहुल गांधी ने इस मामले को लड़ा ही नहीं। फैसले के आने के बाद राहुल गांधी को तुरंत अपील करनी चाहिए थी लेकिन नहीं की गई। राहुल गांधी पीड़ित बनकर जनता का समर्थन लेना चाह रहे हैं। देश की जनता इतनी नासमझ नहीं है कि इस बात को ना समझ पाए। इस रणनीति से तात्कालिक सहानुभूति मिल सकती है लेकिन इसका दीर्घकालिक फायदा नहीं मिलेगा। दावे से कह सकता हूं कि विपक्ष भी कुछ समय बाद राहुल गांधी से अलग हो जाएगा। अगर ये राहुल गांधी की रणनीति है तो ये खुद को खत्म करने की ही राजनीति है!'
रास बिहारी
'भाजपा कर्नाटक में कमजोर नहीं है। कर्नाटक में लिंगायत वर्ग अहम है और येदियुरप्पा इस वर्ग के बड़े नेता हैं। यही वजह है कि भाजपा येदियुरप्पा को साथ लेकर चल रही है। देवगौड़ा का ये आखिरी चुनाव है। सिद्धारमैया भी शायद अगली बार सक्रिय ना रहें। ऐसे में दोनों पार्टियां इस मुद्दे पर भी सहानुभूति वोट पाने की कोशिश कर रही हैं। भाजपा की कमजोरी वहां मुख्यमंत्री का चेहरा है। भाजपा नया चेहरा लाने की भी तैयारी में है। हाल ही में भाजपा ने जो मुस्लिम आरक्षण घटाया और वोक्कालिगा और लिंगायत को आरक्षण देकर बड़ा कदम उठाया है, उसका भी फायदा भाजपा को मिल सकता है। भाजपा की सबसे बड़ी ताकत पीएम मोदी का चेहरा है और वहां पीएम मोदी और अमित शाह पूरा जोर लगा रहे हैं।' कर्नाटक चुनाव की घोषणा हो गई है। ओपिनियन पोल में भाजपा को पीछे बताना, उन्हें फायदा दे सकता है। भाजपा अगले तीस-चालीस दिनों में रिकवर भी कर सकती है।'
राहुल गांधी मामले पर रास बिहारी ने कहा कि 'राहुल गांधी ने कहा है कि मैं सावरकर नहीं हूं, माफी नहीं मांगूंगा लेकिन शरद पवार के कहने पर वह अपने इस स्टैंड से पीछे हटते दिख रहे हैं। राहुल गांधी मामले में कांग्रेस की रणनीति कारगर नहीं लग रही। पवन खेड़ा मामले में वह तुरंत अदालत पहुंच जाते हैं लेकिन राहुल गांधी मामले में जो रणनीति अपनाई जा रही है, वो लगता है डुबाने वाली रणनीति है।'