मीडिया में इन दिनों महिला पहलवानों के धरने प्रदर्शन का मुद्दा छाया हुआ है। बीते दिनों जिस तरह से दिल्ली पुलिस ने पहलवानों के खिलाफ कार्रवाई की, उसने इस मामले को गरमा दिया। कई लोग पहलवानों के समर्थन में आ गए हैं और सरकार से मामले में जल्द कार्रवाई की मांग की जा रही है। साथ ही इस मामले का असर देश की राजनीति पर भी हो रहा है। इस अहम मुद्दे पर चर्चा के लिए इस बार हमारे साथ रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, सुमित अवस्थी, पूर्णिमा त्रिपाठी, शुभ्रास्था शिखा और शिवम त्यागी जैसे विश्लेषक मौजूद रहे। पढ़िए चर्चा के कुछ अंश...
सुमित अवस्थी
'महिला पहलवानों के मुद्दे पर सरकार का संवेदनशील ना होना कई सवाल खड़े कर रहा है। सरकार की तरफ से किसी ने प्रदर्शन कर रहे पहलवानों से बात करने की कोशिश नहीं की। जो पार्टी महिलाओं को आगे बढ़ाने और पढ़ाने की बात कर रही है, वह पार्टी एक चेहरे के आगे क्यों नतमस्तक है! आखिर सरकार की क्या मजबूरी है? बृजभूषण शरण सिंह को बचाया जा रहा है और इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि खराब हो रही है। इस पूरे मामले को लेकर सरकार के खिलाफ आमजन में गलत अवधारणा बन रही है। इस अवधारणा को तोड़ने के लिए सरकार का कार्रवाई करना जरूरी हो गया है, वरना सरकार विपक्ष के हाथ में बड़ा मुद्दा दे देगी। कुलदीप सिंह सेंगर और एमजे अकबर के उदाहरण हैं कि भाजपा ने तुरंत कार्रवाई की, लेकिन बृजभूषण मामले पर भाजपा क्यों मजबूर दिख रही है, ये बड़ा सवाल है।'
शुभ्रास्था शिखा
'नैतिक तौर पर अगर आप पर आरोप लगे हैं तो आपको पहले इस्तीफा देना चाहिए। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि जो प्रदर्शन हो रहे हैं, उनमें राजनीति भी हो सकती है लेकिन महिला पहलवानों के आरोपों के आधार पर तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए। सरकार को इस मामले में संवेदनशीलता दिखानी चाहिए। बृजभूषण को बाहुबली बताया जा रहा है तो यह हमारे समाज पर भी सवाल है कि ऐसे लोगों को राजनीति में क्यों प्रश्रय दिया जा रहा है। भाजपा मौजूदा समय की सबसे तगड़े वर्चस्व वाली पार्टी है। ऐसे में भाजपा में क्या पूर्वांचल में एक भी ऐसा नेता नहीं है, जो बृजभूषण के खिलाफ कार्रवाई के बाद पार्टी को वहां जीत दिला सके। अगर ऐसा है तो यह भाजपा के राजनीति में वर्चस्व पर बड़ा सवाल है।'
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पूर्णिमा त्रिपाठी
'सबसे बड़ी बात यह है कि मामला राजनीतिक हुआ क्यों? महिला पहलवान पहले भी धरना प्रदर्शन कर चुकी हैं तो उसी समय उनकी शिकायत का निवारण क्यों नहीं किया गया? यह इतना गंभीर मामला है, जिस पर तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए। इतने गंभीर आरोप लगने के बाद भी बृजभूषण जिस तरह की सीना जोरी दिखा रहे हैं, उसे देखते हुए भाजपा पर सवाल उठ रहे हैं और पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। यहां भाजपा चूक गई है। अब भाजपा को जो शर्मिंदगी झेलनी पड़ रही है। अगर उसे शुरू में संभाल लिया जाता तो इससे बचा जा सकता था। राहुल गांधी के एक भाषण पर ही बेटियों के सम्मान का हवाला देकर उनसे पूछताछ के लिए जो दिल्ली पुलिस उनके घर पहुंच गई थी, वो आज कहां है? इस देश में ऐसे आरोप क्या कोई महिला बेवजह लगा सकती है? आज मुद्दा ये है कि क्या हम देश में ऐसी राजनीति चाहते हैं तो इतने संवेदनशील मामले में भी नफे-नुकसान को देखे?'
रामकृपाल सिंह
'इस पूरे मामले को लेकर ऐसी अवधारणा बन गई है कि बेटियों के साथ न्याय नहीं हो रहा है। सरकार को इसे प्रतिष्ठा का सवाल नहीं बनाना चाहिए। बृजभूषण शरण सिंह बाहुबली माने जाते हैं और पूर्वांचल में उनका दबदबा है। वे कई पार्टियों में रहे हैं और जीतते रहे हैं लेकिन भाजपा को दो-चार सीटों के नुकसान के बारे में नहीं सोचना चाहिए और इस नफा-नुकसान से ऊपर उठकर एक्शन लेना चाहिए। सत्ता में जो बैठा है, उसे ये देखना चाहिए कि आम जनता में किसी घटना को लेकर क्या अवधारणा बन रही है। इस मामले से भाजपा के चाल-चरित्र पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। अब्दुल रहमान अंतुले ने इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान और प्रतिभा प्रतिष्ठान बनाए, लेकिन उसे लेकर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और आखिरकार अंतुले को इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन जांच में वे बेदाग मिले, लेकिन तब तक उनकी राजनीति खत्म हो चुकी थी। इसलिए जांच भी सही तरीके से होनी जरूरी है।'
विनोद अग्निहोत्री
'राजनीतिक दलों में एक प्रवृत्ति होती है कि अगर हमारा आदमी है तो हम उस पर आंच नहीं आने देंगे और पिछले 10-12 सालों में इसमें तेजी आई है। पहले भी सेंगर के मामले में भी जब दबाव बना, तब कार्रवाई की गई। बृजभूषण पर जो आरोप लगे हैं, उस स्थिति में कोई उनका समर्थन कर ही नहीं सकता। भाजपा को अगर लगता है कि बृजभूषण की वजह से आठ-10 सीटों का फायदा हो सकता है तो ये गलतफहमी है क्योंकि भाजपा को वोट यूपी में पीएम मोदी और योगी आदित्यनाथ के नाम पर मिलता है। बेटियों की कोई जाति नहीं होती और इस मामले से आमजनों में एक तरह की बेचैनी है। ऐसे में सरकार की क्या मजबूरी है, यह समझ से परे है। संसद भवन का जो कार्यक्रम था, उस दिन पहलवानों का वो निर्णय गलत था, जिसमें उन्होंने संसद भवन की तरफ मार्च करने का फैसला किया था, लेकिन इसके बावजूद पुलिस की कार्रवाई का समर्थन नहीं किया जा सकता।'
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'अतीक अहमद, शहाबुद्दीन या हरिशंकर तिवारी जैसे उदाहरण हमारे सामने हैं कि रॉबिनहुड की छवि वाले जो नेता होते हैं, उनके बारे में या तो लोग डरकर नहीं बोलते या फिर प्रभावित होकर कुछ नहीं बोलते। इस देश में 80 के दशक में माया त्यागी कांड हुआ था और लोकदल ने वो लड़ाई लड़ी थी। कांग्रेस की सरकार थी, तब किसी ने नहीं कहा कि राजनीति हो रही है। जनकल्याण और जनता से जुड़े मुद्दों पर राजनीति नहीं होगी तो किस मुद्दे पर होगी? हाथरस मामले और अजय मिश्र टेनी के बेटे के मामले में सरकार ने इतनी त्वरित कार्रवाई की कि किसी को बोलने का मौका नहीं दिया लेकिन इस मामले में जो देरी हो रही है, उससे सरकार अपने खिलाफ अवधारणा बनाने का मौका दे रही है।'
शिवम त्यागी
'बृजभूषण का रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त हो चुका है और वह जांच को प्रभावित करने की स्थिति में नहीं हैं। मुझे लगता है कि फास्ट ट्रैक कोर्ट में मामले को ले जाना चाहिए। पुलिस इस मामले में कार्रवाई कर रही है। महिला सशक्तीकरण का हम सभी समर्थन करते हैं, लेकिन एनसीआरबी का डाटा कहता है कि यौन उत्पीड़न के 74 प्रतिशत मामलों में आरोपी छूट रहे हैं। सरकार को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए।'