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kerala high court said women denied autonomy over own body nudity obscenity not always same
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फैसला: नग्नता और अश्लीलता अलग-अलग, हाईकोर्ट ने अर्धनग्न शरीर पर बच्चों से पेंट करवाने वाली महिला को किया बरी
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, कोच्चि
Published by: नितिन गौतम
Updated Mon, 05 Jun 2023 03:37 PM IST
कोर्ट ने कहा कि महिला ने बच्चों को सिर्फ कैनवास की तरह अपने शरीर को पेंट करने की अनुमति दी। यह एक महिला का अधिकार है कि वह अपने शरीर को लेकर स्वायत्त फैसले ले सकती है।
केरल हाईकोर्ट का कहना है कि नग्नता और अश्लीलता एक-दूसरे के पर्यायवाची नहीं, अलग-अलग हैं। शरीर के ऊपरी भाग की नग्नता को अश्लीलता या यौन कृत्य से नहीं जोड़ सकते। अपने अर्धनग्न शरीर पर अपने ही बच्चों से चित्रकारी करवाने वाली केरल की रेहाना फातिमा को पॉक्सो कानून सहित अन्य मामलों से मुक्त करते समय हाईकोर्ट ने सोमवार को यह बात कही।
'बॉडी एंड पॉलिटिक्स' नाम से यह वीडियो सोशल मीडिया में पोस्ट करने पर कोच्चि पुलिस ने पोक्सो, आईटी एक्ट व अन्य धाराओं में 33 साल की फातिमा पर केस दर्ज किया था। जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने कहा कि कोई और यह निष्कर्ष नहीं दे सकता कि फातिमा ने अपने बच्चों को किसी असली या बनावटी यौन कृत्य में शामिल किया, वह भी अपने यौन सुख के लिए। उसने अपना शरीर कैनवास की तरह अपने बच्चों को उपयोग करने दिया। महिला का अपने शरीर को लेकर खुद निर्णय लेना समानता व निजता के अधिकारों का मर्म है।
हाईकोर्ट ने कहा... ऐसी चित्रकारी 'निर्दोष कलात्मक अभिव्यक्ति'
जस्टिस कौसर ने फातिमा के बचाव से सहमत होकर कहा 'मां के शरीर के ऊपरी हिस्से पर बच्चों द्वारा चित्रकारी एक आर्ट प्रोजेक्ट है, यौन गतिविधि नहीं। औरत हो या मर्द, शरीर के ऊपरी नग्न हिस्से में चित्रकारी यौन कृत्य नहीं कही जा सकती। इस निर्दोष कलात्मक अभिव्यक्ति को यौन गतिविधि में बच्चों का इस्तेमाल कहना कठोरता होगी।'
बचाव में यह बोली थी फातिमा
निचली अदालत द्वारा फातिमा को आरोप मुक्त करने से इन्कार के बाद उसने हाईकोर्ट में अपील की थी। बचाव में कहा कि उसने अपने शरीर पर चित्रकारी एक राजनीतिक संदेश के लिए करवाई। समाज में यह नजरिया बन गया है कि महिला के शरीर का ऊपरी नग्न भाग यौन कृत्य से जुड़ा है। पुरुषों के ऊपरी नग्न भाग को इस तरह नहीं देखा जाता।
व्यभिचार, सहमति से समलैंगिक संबंध, लिव-इन...गलत नहीं
अभियोजन पक्ष ने कहा था कि फातिमा का वीडियो नैतिकता की जनभावना के विपरीत है। जस्टिस कौसर ने यह तर्क भी नकारा और कहा कि सामाजिक नैतिकता का विचार सहज तौर पर व्यक्तिपरक है। व्यभिचार, सहमति से समलैंगिक संबंध, लिव-इन संबंध आदि को कई लोग अनैतिक मानते हैं, लेकिन यह कानूनन गलत नहीं हैं।
मां को सजा से बच्चों पर बुरा असर
जस्टिस कौसर ने फातिमा के बच्चों के बयानों के हवाले से कहा कि उन्हें अपनी मां से प्यार और देखभाल मिल रहे हैं। फातिमा को सजा दी गई तो बच्चों पर भी बुरा और विपरीत असर होगा। निचली अदालत के लिए हाईकोर्ट ने कहा कि उसने वीडियो के साथ जारी संदेश को अनदेखा किया, कार्रवाई के पर्याप्त आधार नहीं हैं, इसलिए निचली अदालत का आदेश रद्द किया जाता है।
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