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विस्तार
पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस अपने गठन के बाद से लेकर अब तक कर्नाटक में कभी भी अपने दम पर सरकार नहीं बना सकी। हालात यह हो गए कि हर विधानसभा चुनावों में देवगौड़ा की पार्टी का ग्राफ लगातार गिरता रहा। लेकिन पार्टी ने इस बार रणनीति बदलते हुए कर्नाटक की 224 सीटों पर फोकस करने की बजाए उन 123 सीटों पर ताकत लगा दी है, जहां से उसे जेडीएस का भविष्य नजर आ रहा है। पार्टी से जुड़े नेताओं का कहना है कि इस बार जेडीएस अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन करेगी। वहीं सियासी गलियारों में चर्चा इस बात की है कि जिस वोट बैंक को साथ ले कर देवगौड़ा की पार्टी कर्नाटक में राजनीति करती थी, अब उस पर कांग्रेस और भाजपा ने बड़ा दांव खेल दिया है। इसलिए यह चुनाव जेडीएस को अपना अस्तित्व बचाने के लिए लड़ना होगा।
2004 में मिली थीं 58 सीटें
पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने 1999 में जेडीएस का गठन किया। 2004 के विधानसभा चुनावों में जेडीएस में अब तक के विधानसभा चुनावों का सबसे बेहतर प्रदर्शन करते हुए 58 सीटें जीती थीं। उसके बाद 2013 में जेडीएस को 40 सीटें मिली। जबकि 2018 में पार्टी अपने गठन के दो दशक पूरे करने पर सबसे कमजोर प्रदर्शन करते हुए 37 सीटों पर सिमट गई। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सुदर्शन कहते हैं कि 2023 का चुनाव जेडीएस के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसके पीछे का तर्क देते हुए सुदर्शन का कहना है कि पार्टी को न सिर्फ अपना प्रदर्शन बेहतर करना होगा, बल्कि अपने ऊपर लगे किंगमेकर के ठप्पे से भी उबरना होगा। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पार्टी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के लिए यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा अब राजनीति में उतने सक्रिय नहीं हैं। ऐसे में सारा दारोमदार उनके बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी पर ही आ जाता है। सुदर्शन का कहना है कि एचडी देवगौड़ा के नाम, चेहरे और वह वोक्कालिगा समुदाय की राजनीति से पार्टी को मजबूती तो मिलती ही रही है। लेकिन बीते कुछ समय में उनका कोर वोट बैंक उनसे खिसक रहा है।
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राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि एचडी देवगौड़ा कि कम सक्रियता के चलते बड़ी जिम्मेदारी एचडी कुमार स्वामी पर ही आती रही है। लेकिन जिस तरह से बीते चुनावों में पार्टी का जो प्रदर्शन रहा है वह चिंताजनक है। जेडीएस के नेता और पूर्व विधायक रहे एनएच स्वामी कहते हैं कि उनकी पार्टी पंचतंत्र यात्रा के माध्यम से समूचे कर्नाटक में लोगों से जुड़ रही है। स्वामी का कहना है कि इस बार उनकी पार्टी सबसे ज्यादा विधानसभा सीटें जीतेगी। उनका तर्क है कि जेडीएस ने जिस तरीके से कर्नाटक के सभी क्षेत्रों में अपना विस्तार किया है और लोगों का भरोसा जीता है, वही इस बार के चुनाव में परिणाम के तौर पर सामने आने वाले हैं। हालांकि सियासी गलियारे में चर्चा इस बात की हो रही है कि जिन जाति समुदाय की राजनीति देवगौड़ा की पार्टी करती आई है, उस पर अब भाजपा और कांग्रेस में बड़ा दांव खेला है। ऐसे में इस बार तो जेडीएस के लिए उनके अपने कोर वोट बैंक में हुई बड़ी सेंधमारी ही सबसे बड़ी चुनौती है।
कांग्रेस और भाजपा का वोक्कालिगा समुदाय पर फोकस
कर्नाटक में देवगौड़ा कि पार्टी वोक्कालिगा समुदाय की राजनीति करके किंगमेकर की भूमिका में खुद को "सेट" कर देती थी। लेकिन इस बार कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में वोक्कालिगा समुदाय पर बड़ा दांव खेल दिया है। कर्नाटक में भाजपा सरकार ने मुसलमानों का दिए जाने वाले एक आरक्षण का 4 फीसदी हिस्सा खत्म कर वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय में बांट दिया। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ऐसा करके भारतीय जनता पार्टी ने आने वाले विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में बड़ा सियासी दांव खेला है। वहीं भाजपा के बड़े नेताओं की चुनावी जनसभाएं और रैलियां भी उसी इलाके में शुरू हुई हैं, जो जेडीएस का कोर वोटबैंक वाला इलाका माना जाता है। जबकि कांग्रेस ने भी जेडीएस के कोर वोट बैंक में सेंधमारी करते हुए अपने प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार को आगे किया है। डीके शिवकुमार भी जेडीएस के कोर वोट बैंक में पकड़ रखने वाले वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं। राजनीतिक विश्लेषक एस किरण कहते हैं कि भाजपा और कांग्रेस का यह सियासी दांव जेडीएस के लिए बड़ी चुनौती है।
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हालांकि जेडीएस ने इस बार अपनी रणनीति बदल दी है। 224 विधानसभा सीटों वाले कर्नाटक में जेडीएस ने 123 विधानसभा सीटों पर अपना पूरा फोकस और ताकत लगाई है। दरअसल 2018 के विधानसभा चुनावों में जेडीएस को मिली 37 सीटों में 30 सीटें सिर्फ ओल्ड मैसूर क्षेत्र से मिलीं थीं। यह वही क्षेत्र है जहां पर कर्आशीष तिवारीनाटक में वोक्कालिगा समुदाय का बड़ा दबदबा है। पिछले चुनावों में जेडीएस को 62 फ़ीसदी वोक्कालिगा समुदाय का वोट ओल्ड मैसूर क्षेत्र से ही मिला था। राजनीतिक विश्लेषक सुदर्शन कहते हैं कि उत्तरी कर्नाटक और ओल्ड मैसूर जेडीएस का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है। लगातार चुनावों में उसकी पकड़ इन इलाकों में भी कमजोर होती रही है। यही वजह है कि कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी अपनी पार्टी के साथ लगातार मैसूर और उत्तरी कर्नाटक क्षेत्र में मेहनत करके 123 विधानसभा सीटों पर अपना पूरा फोकस कर रहे हैं। सियासी जानकारों का मानना है कि अपने कोर वोट बैंक को बचाकर जेडीएस न सिर्फ अपने अस्तित्व को बरकरार रखने की लड़ाई लड़ रही है बल्कि कर्नाटक में किंग मेकर की भूमिका से भी निकलने की कोशिश कर रही है।