न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Thu, 26 Nov 2020 05:57 AM IST
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पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन से जारी विवाद के बीच भारत और अमेरिका के बीच घनिष्ठता बढ़ रही है। हिंद महासागर क्षेत्र में निगरानी के लिए नौसेना ने एक अमेरिकी कंपनी से लीज पर दो प्रीडेटर ड्रोन लिए हैं। इन ड्रोन की तैनाती पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर की जा सकती है।
इन अमेरिकी ड्रोन को नौसेना ने चीन से विवाद को देखते हुए रक्षा मंत्रालय द्वारा मंजूर आपातकालीन खरीद शक्ति के तहत शामिल किया है। शीर्ष सरकारी सूत्र ने बताया कि ये दोनों ड्रोन नवंबर के दूसरे हफ्ते में पहुंचे थे और नौसेना के आईएनएस रजाली बेस पर 21 नवंबर को फ्लाइंग ऑपरेशन के चलते शामिल किया गया। उन्होंने बताया कि ड्रोन ने उड़ान अभियान भी शुरू कर दिया है। 30 घंटे से भी अधिक वक्त तक आसमान में टिके रहने की क्षमता समुद्री बल के लिए बड़े ही कारगर साबित होंगे। सूत्रों ने बताया कि कंपनी की तरफ से अमेरिकन क्रू भी आए हुए हैं जो इन ड्रोन को ऑपरेट करने में नौसेना की मदद करेंगे।
ड्रोन को भारतीय रंग में रंगा गया है और इन्हें एक साल की लीज पर लिया गया है। तीनों सशस्त्र बलों में अमेरिका की तरफ से ऐसे और 18 ड्रोन को खरीदने की तैयारी चल रही है। पूर्वी लद्दाख में चीन से जारी विवाद के बीच भारत और अमेरिका काफी करीबी से काम कर रहे हैं और अमेरिका की तरफ से सर्विलांस और सूचना साझा कर मदद की जा रही है.
दो एमक्यू-9 सी गार्डियन के लीज पर लिए जाने के बाद भारत को सीमा पर निगरानी इंटेलिजेंस और सर्विलांस करने में मदद मिलेगी। सेना के सूत्रों के मुताबिक सी गार्डियन को एक साल के लीज पर लिया है। हाल ही में सरकार ने रक्षा उपकरणों को लेकर अपनी नीतियों में बदलाव किया था, जिसमें हथियारों को एकमुश्त खरीदने के बजाय लीज पर लेने की अनुमति दी थी।
सरकार की ओर से रक्षा उपकरण नीतियों में ढिलाई के बाद लीज पर लेने का पहला फैसला है जिसमें दो एमक्यू-9 को लीज लिया गया है। इनकी खास बात ये है कि ये लगातार 40 हजार फीट की ऊंचाई से ऑपरेट करने में सक्षम हैं। साथ ही 30 घंटे तक लगातार उड़ान भर सकते हैं।
गौरतलब है कि लद्दाख सीमा पर भारतीय सैनिकों और चीनी सैनिके बीच इस साल कई बार टकराव देखने को मिला है। सीमा पर लगातार चीन की हरकतें भारत को कड़े फैसले लेने को मजबूर कर रही है। पिछले कुछ समय में सात से ज्यादा बार सैन्य वार्ता हुई जो विफल साबित हुई।
सार
- 21 नवंबर को किए गए शामिल, आसमान में 30 घंटे से भी अधिक समय तक उड़ान की क्षमता
विस्तार
पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन से जारी विवाद के बीच भारत और अमेरिका के बीच घनिष्ठता बढ़ रही है। हिंद महासागर क्षेत्र में निगरानी के लिए नौसेना ने एक अमेरिकी कंपनी से लीज पर दो प्रीडेटर ड्रोन लिए हैं। इन ड्रोन की तैनाती पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर की जा सकती है।
इन अमेरिकी ड्रोन को नौसेना ने चीन से विवाद को देखते हुए रक्षा मंत्रालय द्वारा मंजूर आपातकालीन खरीद शक्ति के तहत शामिल किया है। शीर्ष सरकारी सूत्र ने बताया कि ये दोनों ड्रोन नवंबर के दूसरे हफ्ते में पहुंचे थे और नौसेना के आईएनएस रजाली बेस पर 21 नवंबर को फ्लाइंग ऑपरेशन के चलते शामिल किया गया। उन्होंने बताया कि ड्रोन ने उड़ान अभियान भी शुरू कर दिया है। 30 घंटे से भी अधिक वक्त तक आसमान में टिके रहने की क्षमता समुद्री बल के लिए बड़े ही कारगर साबित होंगे। सूत्रों ने बताया कि कंपनी की तरफ से अमेरिकन क्रू भी आए हुए हैं जो इन ड्रोन को ऑपरेट करने में नौसेना की मदद करेंगे।
ड्रोन को भारतीय रंग में रंगा गया है और इन्हें एक साल की लीज पर लिया गया है। तीनों सशस्त्र बलों में अमेरिका की तरफ से ऐसे और 18 ड्रोन को खरीदने की तैयारी चल रही है। पूर्वी लद्दाख में चीन से जारी विवाद के बीच भारत और अमेरिका काफी करीबी से काम कर रहे हैं और अमेरिका की तरफ से सर्विलांस और सूचना साझा कर मदद की जा रही है.
दो एमक्यू-9 सी गार्डियन के लीज पर लिए जाने के बाद भारत को सीमा पर निगरानी इंटेलिजेंस और सर्विलांस करने में मदद मिलेगी। सेना के सूत्रों के मुताबिक सी गार्डियन को एक साल के लीज पर लिया है। हाल ही में सरकार ने रक्षा उपकरणों को लेकर अपनी नीतियों में बदलाव किया था, जिसमें हथियारों को एकमुश्त खरीदने के बजाय लीज पर लेने की अनुमति दी थी।
सरकार की ओर से रक्षा उपकरण नीतियों में ढिलाई के बाद लीज पर लेने का पहला फैसला है जिसमें दो एमक्यू-9 को लीज लिया गया है। इनकी खास बात ये है कि ये लगातार 40 हजार फीट की ऊंचाई से ऑपरेट करने में सक्षम हैं। साथ ही 30 घंटे तक लगातार उड़ान भर सकते हैं।
गौरतलब है कि लद्दाख सीमा पर भारतीय सैनिकों और चीनी सैनिके बीच इस साल कई बार टकराव देखने को मिला है। सीमा पर लगातार चीन की हरकतें भारत को कड़े फैसले लेने को मजबूर कर रही है। पिछले कुछ समय में सात से ज्यादा बार सैन्य वार्ता हुई जो विफल साबित हुई।