समलैंगिकता को अपराध माना जाए या नहीं, इस पर चल रही बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आखिरकार स्वाभाविक झुकाव को अस्वाभाविक कैसे कहा जा सकता है? इसी दौरान एक याचिकाकर्ता की ओर से जिरह कर रहे वकील मुकुल रोहतगी ने धारा 377 के पुराने कानून का विरोध करते हुए कहा कि 160 साल पुरानी नैतिकता आज बेमानी हो चुकी है। वक्त के साथ मूल्य बदलते हैं। सन 1680 के ब्रिटिश काल की नैतिकता अब कोई कसौटी नहीं है। धारा 377 सेक्सुअल नैतिकता को गलत तरीके से परिभाषित करती है। पांच सदस्यीय संविधान पीठ इस कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है।
रोहतगी ने कहा समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में रखना प्रकृति के खिलाफ है। यह कानून ब्रिटिश मॉडल पर आधारित है जबकि प्राचीन भारत में इस विषय का दायरा व्यापक था। उन्होंने महाभारत के शिखंडी का भी जिक्र किया। रोहतगी ने कहा कि वर्षों से यह प्रावधान कानून की किताब में है और इसे आगे भी जारी रखने का कोई आधार नहीं है। निजता को मौलिक अधिकार करार देने वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने फैसले में नाज फाउंडेशन मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को गलत बताया था। रोहतगी ने यह भी कहा कि अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और यहां तक कि नेपाल ने भी समलैंगिकता को अपराध केदायरे से मुक्त कर दिया है।
चीफ जस्टिस चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि समलैंगिक वयस्कों द्वारा सहमति से बनाए गए संबंध को अपराध की श्रेणी में रखने का प्रावधान व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को नियंत्रित करता है। आखिर स्वाभाविक झुकाव को अस्वाभाविक कैसे करार दिया जा सकता है? संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि वह आईपीसी की धारा 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध) के कानून मसले पर ही सुनवाई करेगी। पीठ ने कहा, ‘अगर हम धारा 377 को खत्म कर देते हैं तो अन्य मसले उत्पन्न हो सकते हैं। विवाह का अधिकार, घरेलू हिंसा और लिव-इन रिलेशन पर भी बहस हो सकती है।’
सहमति से बना संबंध अपराध कैसे: रोहतगी
याचिकाकर्ता केशव सूरी की ओर से पूर्व अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने बहस की शुरुआत करते हुए कहा कि लैंगिक झुकाव किसी के व्यक्तित्व का स्वाभाविक रुख होता है। यह पसंद का मसला है और लिंग से इतर होता है। धारा-377 संविधान के तहत लोगों को मिले जीने के अधिकार का उल्लंघन करता है। पुरुष और महिला के बीच बिना सहमति से बनाया गया संबंध बलात्कार है, लेकिन दो वयस्क पुरुषों द्वारा सहमति से बनाए गए संबंध को अपराध कैसे ठहराया जा सकता है?
अब तो ब्रिटिश संसद भी सहमत नहीं: दत्तार
एक अन्य याचिकाकर्ता के वकील अरविंद दत्तार ने कहा कि समलैंगिकता कानून में कई देशों ने बदलाव कर दिया है। वर्ष 1960 का कोड हम पर थोप दिया गया है। यहां तक कि इस पर ब्रिटिश संसद की भी सहमति नहीं है। हाल ही में त्रिनिडाड और टोबेगो में भारतीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुट्टास्वामी मामले में दिए आदेश के आधार पर दो पुरुषों के बीच सहमति से यौन संबंध को अपराधमुक्त कर दिया था। विधि आयोग ने 172 वीं रिपोर्ट में धारा-377 को खत्म करने की सिफारिश की थी।