सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि अदालतों को ‘सरकारी संस्थानों’ के तौर पर सार्वजनिक आलोचना व जांच पड़ताल के लिए खुला होना चाहिए। न्यायाधीशों, न्यायिक मर्यादाओं और कामकाज की आलोचना में कुछ भी अपमानजनक नहीं है। जिस लहजे में इस तरह की आलोचनाएं की जाती हैं, उसे हल्के-फुल्के अंदाज में स्वीकार किया जाना चाहिए।
वरिष्ठ वकील ने कहा, आलोचना में कुछ भी अपमानजनक नहीं
साल्वे ने रविवार को अहमदाबाद में 16वें जस्टिस पीडी देसाई स्मृति व्याख्यान को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित किया। साल्वे ने कहा, हमने हमेशा यह माना है कि अदालतों के फैसलों की आलोचना की जा सकती है। ऐसी भाषा में की गई आलोचना भी जो विनम्र न हो।
कोर्ट के फैसलों की निंदा हो सकती है। हम फैसले करने की प्रक्रिया की निंदा कर सकते हैं। सूर्य की तेज रोशनी के उजाले तले शासन होना चाहिए। मेरा मानना है कि ऐसा वक्त आएगा जब सुप्रीम कोर्ट सरकारी गोपनीयता कानून के बड़ी संख्या में प्रावधानों पर गंभीरता से विचार करेगा और देखेगा कि वे लोकतंत्र के अनुरूप हैं या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि अदालतों को ‘सरकारी संस्थानों’ के तौर पर सार्वजनिक आलोचना व जांच पड़ताल के लिए खुला होना चाहिए। न्यायाधीशों, न्यायिक मर्यादाओं और कामकाज की आलोचना में कुछ भी अपमानजनक नहीं है। जिस लहजे में इस तरह की आलोचनाएं की जाती हैं, उसे हल्के-फुल्के अंदाज में स्वीकार किया जाना चाहिए।
वरिष्ठ वकील ने कहा, आलोचना में कुछ भी अपमानजनक नहीं
साल्वे ने रविवार को अहमदाबाद में 16वें जस्टिस पीडी देसाई स्मृति व्याख्यान को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित किया। साल्वे ने कहा, हमने हमेशा यह माना है कि अदालतों के फैसलों की आलोचना की जा सकती है। ऐसी भाषा में की गई आलोचना भी जो विनम्र न हो।
कोर्ट के फैसलों की निंदा हो सकती है। हम फैसले करने की प्रक्रिया की निंदा कर सकते हैं। सूर्य की तेज रोशनी के उजाले तले शासन होना चाहिए। मेरा मानना है कि ऐसा वक्त आएगा जब सुप्रीम कोर्ट सरकारी गोपनीयता कानून के बड़ी संख्या में प्रावधानों पर गंभीरता से विचार करेगा और देखेगा कि वे लोकतंत्र के अनुरूप हैं या नहीं।