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Former CJI SA Bobde talked about making Sanskrit official language of country
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Sanskrit: पूर्व CJI बोबडे ने की संस्कृत को देश की आधिकारिक भाषा बनाने की वकालत, बीआर आंबेडकर का दिया उदाहरण
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नागपुर
Published by: शिव शरण शुक्ला
Updated Fri, 27 Jan 2023 08:27 PM IST
सार
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पूर्व सीजेआई ने आगे कहा कि संस्कृत को पेश करने का मतलब किसी धर्म को पेश करना नहीं होगा। 95 प्रतिशत भाषाओं का किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन वे दर्शन, कानून, विज्ञान, साहित्य, ध्वन्यात्मकता, वास्तुकला, खगोल विज्ञान आदि से संबंधित मुद्दों से संबंधित है।
भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश शरद बोबडे ने अदालतों सहित देश की आधिकारिक भाषा के रूप में संस्कृत की वकालत की है। इस दौरान उन्होंने 1949 की कुछ मीडिया रिपोर्ट्स का भी हवाला दिया। उन्होंने शुक्रवार को कहा कि कि 1949 की मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि संविधान निर्माता और प्रख्यात न्यायविद बीआर आंबेडकर ने भी इसका प्रस्ताव किया था। संस्कृत भारती की ओर से आयोजित अखिल भारतीय छात्र सम्मेलन के दौरान अपने संबोधन में उन्होंने यह बातें कहीं।
पूर्व सीजेआई ने कहा कि कानून के मुताबिक, हिंदी और अंग्रेजी का उपयोग शासन और अदालतों में आधिकारिक भाषाओं के रूप में किया जाता है। उन्होंने आगे कहा कि प्रत्येक मुख्य न्यायाधीश को संबंधित क्षेत्रीय भाषाओं को पेश करने के लिए अनुरोध प्राप्त होता है। जो अब जिला स्तर की न्यायपालिका और कुछ उच्च न्यायालयों में एक वास्तविकता है।
उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के स्तर पर आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। हालांकि कई हाईकोर्ट को क्षेत्रीय भाषाओं में आवेदनों, याचिकाओं और दस्तावेज तक की अनुमति देनी पड़ी है। पूर्व सीजेआई ने कहा कि मुझे नहीं लगता है कि यह मुद्दा अनसुलझा रहना चाहिए। यह मसला 1949 से ही अनसुलझा है।
अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि 11 सितंबर 1949 के समाचार पत्रों की रिपोर्ट के अनुसार, डॉ. आंबेडकर ने संस्कृत को भारत की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए प्रस्ताव आगे बढ़ाया था। संस्कृत की शब्दावली हमारी बहुत सी भाषाओं के लिए सामान्य है। मैं यह खुद से सवाल करता हूं कि डॉ आंबेडकर के प्रस्ताव के बाद भी संस्कृत को आधिकारिक भाषा क्यों नहीं बनाया जा सकता।
पूर्व सीजेआई ने आगे कहा कि संस्कृत को पेश करने का मतलब किसी धर्म को पेश करना नहीं होगा। 95 प्रतिशत भाषाओं का किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन दर्शन, कानून, विज्ञान, साहित्य, ध्वन्यात्मकता, वास्तुकला, खगोल विज्ञान आदि से संबंधित मुद्दों से संबंधित है। उन्होंने आगे कहा कि इस भाषा का संबंध दक्षिण या उत्तर भारत से भी नहीं है। यह धर्मनिरपेक्ष उपयोग के लिए पूरी तरह से सक्षम है।
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