राजधानी के पॉश इलाके ग्रेटर कैलाश निवासी 11वीं का छात्र अनादि गुप्ता इन दिनों फोन की लत से छुटकारा पाने के लिए उपचार ले रहा है। इनके पिता विश्वजीत गुप्ता के अनुसार अनादि दिनभर ऑनलाइन गेम्स, वीडियो बनाना और चैटिंग इत्यादि में ही लगा रहता है। उसे न भूख लगती है और न ही पढ़ाई में मन।
रात को जब भी नींद से उसकी आंख खुलती है तो वह फोन चैक करने लगता है। ठीक ऐसा ही हाल शाहदरा निवासी विकास यादव के बेटे रवि का है। छठी कक्षा का यह छात्र रात को सोते वक्त भी फोन नहीं छोड़ता है।
ऐसे मोबाइल फोन और इंटरनेट यूजर्स को अब महंगा बिल बेचैन कर देगा। विशेषज्ञों का मानना है कि मोबाइल फोन का बिल बढ़ने से सबसे ज्यादा असर स्कूल व कालेज छात्रों पर पड़ सकता है। सस्ते या मुफ्त पैकेज के ऑफर ने फोन इंटरनेट यूजर्स को करोड़ों तक पहुंचाने के साथ साथ इसकी लत भी लाखों लोगों को लगा दी है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में हर दिन 6 से 7 नए मरीज उपचार के लिए पहुंच रहे हैं। इनकी संख्या बढ़ता देख एम्स में फोन की लत के शिकार मरीजों के लिए अलग से क्लीनिक संचालित किया जा रहा है।
वहीं आरएमएल, सफदरजंग, लोकनायक अस्पताल के अलावा अपोलो, मैक्स व फोर्टिस अस्पताल में भी हर दिन करीब 50 से ज्यादा नए मरीज काउंसलिंग के लिए पहुंच रहे हैं। आरएमएल अस्पताल के डॉ. आरपी बेनीवाल का कहना है कि ज्यादातर मामले कक्षा 6 से 12वीं तक के बच्चों के आ रहे हैं।
डॉक्टरों के अनुसार मोबाइल डाटा की दरें बढ़ने से हर परिवार महंगे रिचार्ज नहीं कराएगा। स्कूल और कालेज के छात्र इंटरनेट पर पढ़ाई से जुड़ी क्रियाओं के लिए स्मार्ट फोन लेते हैं। ऐसे में इनके माता पिता उतना ही पैकेज लेंगे जितना इनकी पढ़ाई के लिए जरूरी है। वीडियो, गेम, मूवी इत्यादि के लिए हाई स्पीड इंटरनेट की जरूरत होती है जबकि पढ़ाई के लिए इतनी स्पीड की जरूरत नहीं होती। बच्चों को इस लत से बचाने में यह काफी मदद कर सकता है।
25 फीसदी इंजीनियरिंग छात्रों में मिली लत
एम्स के डॉ. यतन पाल सिंह बलहारा के अनुसार देश के 23 इंजीनियरिंग कालेजों के 3973 छात्रों पर किए अध्ययन के अनुसार 25 फीसदी से ज्यादा छात्र इंटरनेट की लत के शिकार हैं। यह फोन पर इंटरनेट के जरिए सोशल साइट का इस्तेमाल करते हैं। इनमें प्रोब्लमेटिक इंटरनेट यूज (पीआईयू) के गंभीर लक्षण मिले हैं। इस अध्ययन में एम्स के डॉक्टर भी शामिल थे। यह अध्ययन कुछ दिन पहले इंडियन जर्नल ऑफ साइकाइट्री में प्रकाशित हुआ है।
देश के मनोरोग विशेषज्ञों को एम्स दे रहा प्रशिक्षण
डॉ. बलहारा ने बताया कि फोन और इंटरनेट की लत से बच्चों और युवाओं को बचाने के लिए देश भर के मनोरोग विशेषज्ञों को प्रशिक्षित करना भी जरूरी है ताकि हर शहर में इसका उपचार मिल सके। इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के साथ मिलकर एम्स ने हाल ही में बिहेवियर नाम से वेबसाइट शुरू की है। जहां मनोरोग विशेषज्ञों के लिए ऑनलाइन कोर्स, अभिभावकों के लिए काउंसलिंग के तरीके और उपचार इत्यादि के बारे में बताया जा रहा है।
खास बातें
- फ्री इंटरनेट मिलने से हर किसी को पड़ने लगी फोन की लत
- महिला, बच्चे, युवा और बुजुर्ग हर कोई फोन का आदी
- ऑनलाइन गेम्स, चैटिंग, वीडियो साइट का बच्चों में चलन ज्यादा
राजधानी के पॉश इलाके ग्रेटर कैलाश निवासी 11वीं का छात्र अनादि गुप्ता इन दिनों फोन की लत से छुटकारा पाने के लिए उपचार ले रहा है। इनके पिता विश्वजीत गुप्ता के अनुसार अनादि दिनभर ऑनलाइन गेम्स, वीडियो बनाना और चैटिंग इत्यादि में ही लगा रहता है। उसे न भूख लगती है और न ही पढ़ाई में मन।
रात को जब भी नींद से उसकी आंख खुलती है तो वह फोन चैक करने लगता है। ठीक ऐसा ही हाल शाहदरा निवासी विकास यादव के बेटे रवि का है। छठी कक्षा का यह छात्र रात को सोते वक्त भी फोन नहीं छोड़ता है।
ऐसे मोबाइल फोन और इंटरनेट यूजर्स को अब महंगा बिल बेचैन कर देगा। विशेषज्ञों का मानना है कि मोबाइल फोन का बिल बढ़ने से सबसे ज्यादा असर स्कूल व कालेज छात्रों पर पड़ सकता है। सस्ते या मुफ्त पैकेज के ऑफर ने फोन इंटरनेट यूजर्स को करोड़ों तक पहुंचाने के साथ साथ इसकी लत भी लाखों लोगों को लगा दी है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में हर दिन 6 से 7 नए मरीज उपचार के लिए पहुंच रहे हैं। इनकी संख्या बढ़ता देख एम्स में फोन की लत के शिकार मरीजों के लिए अलग से क्लीनिक संचालित किया जा रहा है।
वहीं आरएमएल, सफदरजंग, लोकनायक अस्पताल के अलावा अपोलो, मैक्स व फोर्टिस अस्पताल में भी हर दिन करीब 50 से ज्यादा नए मरीज काउंसलिंग के लिए पहुंच रहे हैं। आरएमएल अस्पताल के डॉ. आरपी बेनीवाल का कहना है कि ज्यादातर मामले कक्षा 6 से 12वीं तक के बच्चों के आ रहे हैं।
यूं पड़ेगा महंगे बिल का असर
डॉक्टरों के अनुसार मोबाइल डाटा की दरें बढ़ने से हर परिवार महंगे रिचार्ज नहीं कराएगा। स्कूल और कालेज के छात्र इंटरनेट पर पढ़ाई से जुड़ी क्रियाओं के लिए स्मार्ट फोन लेते हैं। ऐसे में इनके माता पिता उतना ही पैकेज लेंगे जितना इनकी पढ़ाई के लिए जरूरी है। वीडियो, गेम, मूवी इत्यादि के लिए हाई स्पीड इंटरनेट की जरूरत होती है जबकि पढ़ाई के लिए इतनी स्पीड की जरूरत नहीं होती। बच्चों को इस लत से बचाने में यह काफी मदद कर सकता है।
25 फीसदी इंजीनियरिंग छात्रों में मिली लत
एम्स के डॉ. यतन पाल सिंह बलहारा के अनुसार देश के 23 इंजीनियरिंग कालेजों के 3973 छात्रों पर किए अध्ययन के अनुसार 25 फीसदी से ज्यादा छात्र इंटरनेट की लत के शिकार हैं। यह फोन पर इंटरनेट के जरिए सोशल साइट का इस्तेमाल करते हैं। इनमें प्रोब्लमेटिक इंटरनेट यूज (पीआईयू) के गंभीर लक्षण मिले हैं। इस अध्ययन में एम्स के डॉक्टर भी शामिल थे। यह अध्ययन कुछ दिन पहले इंडियन जर्नल ऑफ साइकाइट्री में प्रकाशित हुआ है।
देश के मनोरोग विशेषज्ञों को एम्स दे रहा प्रशिक्षण
डॉ. बलहारा ने बताया कि फोन और इंटरनेट की लत से बच्चों और युवाओं को बचाने के लिए देश भर के मनोरोग विशेषज्ञों को प्रशिक्षित करना भी जरूरी है ताकि हर शहर में इसका उपचार मिल सके। इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के साथ मिलकर एम्स ने हाल ही में बिहेवियर नाम से वेबसाइट शुरू की है। जहां मनोरोग विशेषज्ञों के लिए ऑनलाइन कोर्स, अभिभावकों के लिए काउंसलिंग के तरीके और उपचार इत्यादि के बारे में बताया जा रहा है।