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ED directors tenure Subsequent changes in law cant be ground to recall earlier order says SC
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ED Director Tenure: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कानून में बाद में हुआ बदलाव पहले के आदेश को रद्द करने का आधार नहीं
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: निर्मल कांत
Updated Mon, 30 Jan 2023 09:51 PM IST
सार
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जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ ईडी के निदेशक एसके मिश्रा के कार्यकाल को दिए गए तीसरे सेवा विस्तार और केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) संशोधन अधिनियम 2021 को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई कर रहे थे।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि कानून में बाद में हुआ बदलाव अदालत के पहले के आदेश को रद्द करने या उसे संशोधित करने का आधार नहीं हो सकता है। शीर्ष कोर्ट ने यह मौखिक टिप्पणी केंद्र सरकार के उस आवेदन पर सवाल उठाते हुए की, जो उसने 8 सितंबर, 2021 को पारित निर्देश को वापस लेने के लिए किया था।
कोर्ट ने अपने इस निर्देश में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा के कार्यकाल को 16 नवंबर 2021 से आगे बढ़ाने से रोक दिया था। केंद्र की दलील थी कि यह विस्तार केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम में किए गए संशोधनों के तहत है, जो ईडी निदेशक के कार्यकाल को पांच साल तक बढ़ाने की अनुमति देता है।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ ईडी के निदेशक एसके मिश्रा के कार्यकाल को दिए गए तीसरे सेवा विस्तार और केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) संशोधन अधिनियम 2021 को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई कर रहे थे।
सुनवाई की शुरुआत में सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि याचिकाएं 8 सितंबर 2021 को कॉमन कॉज बनाम भारत संघ के मामले में दिए गए फैसले पर आधारित थीं।
पिछले साल नवंबर में केंद्र सरकार ने सीवीसी अधिनियम में बाद में हुए संशोधन का हवाला देते हुए आदेश को संशोधित करने के लिए एक आवेदन दायर किया था। इसमें ईडी निदेशक मिश्रा को नवंबर 2021 के बाद और विस्तार देने की बात थी।
उन्होंने पीठ से कहा कि मैं केवल यह तर्क रखना चाहता हूं कि हम पहले ही उक्त आदेश में उचित संशोधन के लिए एक आवेदन दायर कर चुके हैं। कोर्ट ने भी इस पर नोटिस जारी किया था। संदर्भ स्पष्ट करने के बाद उन्होंने पीठ से याचिकाओं के बैच के साथ केंद्र के आवेदन को 'टैग' करने का आग्रह किया।
इस पर जस्टिस गवई ने स्पष्ट रूप से कहा कि हमने पहले ही संकेत दिया है कि हम इस तरह के आवेदन पर विचार नहीं करेंगे क्योंकि यह लगभग समीक्षा की प्रकृति में है। जवाब में मेहता ने आग्रह किया कि अर्जी को सुनने के बाद आप इसे अस्वीकार कर सकते हैं। मुझे भरोसा है कि मैं आपके आधिपत्य को मनाने में सक्षम हो जाऊंगा। बाद में विधायी परिवर्तन हुए हैं।
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इस पर जस्टिस गवई ने तुरंत जवाब दिया कि बाद में कानून में बदलाव इस अदालत के पहले के फैसले या आदेश को वापस लेने या संशोधित करने का आधार नहीं हो सकता है। मेहता ने पीठ से जवाब दाखिल करने के लिए और समय की मोहलत मांगी।
हालांकि याचिकाकर्ता की ओर से पीठ को बताया कि सरकार नियमित रूप से जवाब दाखिल करने के लिए समय मांग रही है। साथ ही कहा कि अदालत सरकार को चाहे जितना समय दे, उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। इसके बाद पीठ ने मामले को तीन हफ्ते बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
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