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विस्तार
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी को इस बात की तसल्ली है कि प्रधानमंत्री मोदी के सपनों के संसद भवन को इतनी कलात्मकता और रचनात्मकता के साथ वक्त पर देश को समर्पित कर दिया गया। इतने कम वक्त में लोकतंत्र के इस विशाल और आधुनिकतम संसद भवन में भारतीय कला, संस्कृति औऱ परंपरा को उच्चतम स्थान तक पहुंचाने के पीछे डॉ. जोशी की सोच, योजना और कलादृष्टि है। उनका कहना है कि यह सब उनकी टीम और मित्रों की दुआओं का असर है, हालांकि अभी पहले चरण का ही काम पूरा हो सका है, दूसरा चरण अभी बाकी है। लेकिन महज दो साल पांच महीने में यह उपलब्धि इस बात का प्रतीक है कि भारतीय अगर ठान लें तो कोई काम नामुमकिन नहीं।
डॉ. जोशी खुद एक बेहतरीन कलाकार हैं, रंगकर्मी हैं, लेखक और कवि हैं, शिक्षाविद के साथ साथ एक बेहद संवेदनशील व्यक्तित्व के धनी हैं। दिल्ली के जनपथ पर बने एतिहासिक इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र का विशाल परिसर जब सेंट्रल विस्टा परियोजना के तहत आया और यह तय हुआ कि अब आईएनसीए को यहां से कहीं और स्थापित किया जाना है, तब भी डॉ जोशी ने इस विशाल धरोहर को पहले से भी बेहतर तरीके से जनपथ होटल की इमारत में स्थानांतरित करवाया। यह व्यवस्था तात्कालिक तौर पर की गई लेकिन अगर आप यहां आएंगे, तो पता चलेगा कि किसी जमाने में दिल्ली का प्रतिष्ठित होटल रहा यह भवन कैसे कला और संस्कृति का इतना शानदार केंद्र बन गया। डॉ. जोशी कहते हैं कि केंद्र का नया परिसर जामनगर हाउस में बन रहा है और हमारी कोशिश है कि यह पूरे देश की कला-संस्कृति के साथ जमीन से जुड़े सभी कलाकारों का सबसे आधुनिक केंद्र हो।
नए संसद भवन के विहंगम प्रोजेक्ट पर काम करते हुए डॉ जोशी ने देश के हर कोने से आए कलाकारों को प्रतिनिधित्व दिया है। उनका कहना है कि नए संसद भवन की दीवारों को अपनी कला से देश के विभिन्न हिस्सों से आए ज़मीन से जुड़े 75 लोक कलाकारों ने सजाया है। इस पूरी परियोजना के तहत उन हाशिए पर पड़े कलाकारों को लोकतंत्र के इस सर्वोच्च मंदिर में देखना हमारे लिए सौभाग्य की बात है। डॉ जोशी कहते हैं कि संस्कृति की कल्पना संगीत और नृत्य के बैगर नहीं की जा सकती। नए संसद का एक गलियारा पूरी तरह भारतीय संगीत को समर्पित है जिसमें आप तमाम वाद्य यंत्र देख सकते हैं। उन्होंने पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, पंडित रविशंकर, उस्ताद बिस्मिल्ला खां, उस्ताद अमजद अली खां, पंडित शिवकुमार शर्मा समेत देश के उन कलाकारों और उनके परिजनों का आभार भी जताया जिन्होंने अपने अपने वाद्ययंत्र इस संसद भवन को समर्पित किया।
डॉ. जोशी को इस बात की काफी खुशी है कि इस भवन को बनाने में ज़मीन से जुड़े जिन 60 हजार कलाकारों, श्रमजीवियों ने अपना योगदान दिया है, उनपर एक डिजिटल फ्लिपबुक जारी कर उन्हें मुख्य धारा में लाने की कोशिश की गई है। इसका नाम है– हैंड्स दैट मेड इट हैपेन। उनका कहना है कि यह इतिहास में पहली बार हो रहा है कि इतनी मेहनत करने वाले ऐसे कलाकारों को देश की सर्वोच्च संस्था में सम्मान दिया जा रहा है। उनका कहना है कि यह संसद भवन में प्रदर्शित कलाकृतियों का पहला चरण है। दूसरे चरण की योजना और व्यापक है। अब हमारी कोशिश है कि स्वाधीनता संग्राम से जुड़ी हस्तियों, आदिवासी नेताओं, प्रतिष्ठित महिला नेताओं, धार्मिक और आध्यात्मिक शख्सियतों के साथ-साथ अपने देश की खेल और ज्ञान परंपराओं को भी कला के जरिये स्थापित किया जाए।
बेशक नये संसद भवन के उद्घाटन को लेकर सियासत होती रही, लेकिन इसकी वास्तुकला और डिजाइन के साथ साथ इसके आधुनिक स्वरूप की सबने तारीफ ही की है। डॉ जोशी कहते हैं कि कुछ भी नया होता है तो उसके साथ विवाद भी होते ही हैं, लेकिन अगर वह अपने देश की संस्कृति, कला और परंपरा को समृद्ध करने वाली पहल हो, साथ ही उसे आधुनिकता से जोड़ने की कोशिश हो, डिजिटल ज़माने के साथ कदमताल मिलाकर चलने का प्रयास हो तो इसका स्वागत होना ही चाहिए, आखिरकार यह अपने देश का ही गौरव बढ़ाता है।