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Doctors says Odisha train accident survivors show post-traumatic stress disorder
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बालासोर रेल हादसा: घायलों में दिख रहा पीटीएस डिसऑर्डर; कोई सो नहीं पा रहा तो कोई दीवारों को ताकता रहता है
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, बालासोर
Published by: शिव शरण शुक्ला
Updated Sat, 10 Jun 2023 09:35 PM IST
अस्पताल के क्लीनिकल साइकोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. जसवंत महापात्रा ने बताया है कि घायलों की मानसिक हालत को देखते हुए सभी के लिए काउंसलिंग की व्यवस्था की गई है। उन्होंने कहा, ऐसे भयावह हादसों में बचने वालों में तनाव, भय और उदासी दिखना आम है।
ओडिशा ट्रेन हादसे का गंभीर असर।
- फोटो : अमर उजाला
ओडिशा के बालासोर जिले में हुए भयावह ट्रेन हादसे ने पलक झपकते ही कइयों की जिंदगी उजाड़ दी, कई घरों के चिराग बुझा दिए। जो किस्मत से जिंदा बच भी गए, उनकी आंखों से अब भी वह मंजर नहीं हट रहा। ओडिशा के एससीबी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती 105 मरीजों में से 40 अब भी स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। डॉक्टरों ने बताया है कि इनमें से ज्यादातर मरीजों में पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) के संकेत मिल रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया है कि इनमें से कई मरीज सही से सो नहीं पा रहे हैं। वहीं कुछ तो केवल दीवारों को ही देखते रहते हैं।
अस्पताल के क्लीनिकल साइकोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. जसवंत महापात्रा ने बताया है कि घायलों की मानसिक हालत को देखते हुए सभी के लिए काउंसलिंग की व्यवस्था की गई है। उन्होंने कहा, ऐसे भयावह हादसों में बचने वालों में तनाव, भय और उदासी दिखना आम है। उन्होंने बताया की मरीजों की काउंसलिंग के लिए चार टीमें बनाई गई हैं। डॉ. ने बताया, सभी टीमों में एक मनोवैज्ञानिक, एक मनोचिकित्सक, एक सामाजिक कार्यकर्ता और मरीज के परिवार से एक या दो लोग शामिल किए गए हैं।
कोई सो नहीं पा रहा, तो कोई दीवारों आंख गड़ाए रहता है
अस्पताल के सर्जरी विभाग की एक नर्स ने इन घायलों की हालत के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इनमें से अधिकांश समय घायल सपने में दुर्घटना को देखते हुए नींद से चौंक कर उठते हैं। उन्होंने बताया सभी घायलों पर लगातार नजर रखी जा रही है।
एक 23 वर्षीय व्यक्ति दुर्घटना में जिसके हाथ और पैर टूट चुके हैं, वह दिन हो या रात सो नहीं पा रहा। जब भी वह आंखें बंद करता है तो वहीं दृश्य उसकी आंखों के सामने घूमने लगता है। डॉक्टर ने बताया कि उसे सीट के अंदर से तीन घंटे बाद निकाला गया था। वहीं कई घायल सूनी आंखों से सिर्फ दीवारों को निहारते रहते हैं। एक युवक जिसके दोस्त की मौत हो चुकी है, वह जब भी जगता है सिर्फ उसको ही खोजता है।
तीन अपने पैर गंवा चुके, कई पागलों की तरह हंसते हैं
अस्पताल में इलाजरत घायलों में से तीन अपने पैर गंवा चुके हैं। कइयों के रीढ़ की हड्डी में चोट आई है। एक अन्य डॉक्टर ने बताया कि कोई अपनी हालत पर रोता है तो कोई पागलों की तरह हंसता है। उन्होंने बताया कि ये लक्षण धीरे-धीरे समय के साथ खत्म होते जाएंगे। डॉ. महापात्रा ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सारे मरीज स्वस्थ होकर घर लौटेंगे।
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