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Desire to be alive after death 600 people freeze dead bodies Cryonics Seeking To Defy Mortality
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अजीब चलन: मरने के बाद जिंदा होने की हसरत, 600 लोगों ने फ्रीज कराए शरीर, वैज्ञानिकों ने किया बड़ा दावा
एजेंसी, नई दिल्ली।
Published by: देव कश्यप
Updated Thu, 01 Dec 2022 06:20 AM IST
सार
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कानूनी तौर पर भले ही ये लोग मर चुके हैं, लेकिन क्रायोनिक्स तकनीक में भरोसा रखने वाले वैज्ञानिकों का मानना है कि वो अभी सिर्फ बेहोश हुए हैं। इस तकनीक के जरिये उन्हें फिर से जिंदा किया जा सकता है।
दुनियाभर में दोबारा जिंदा होने के लिए शरीर फ्रीज करवाने का चलन बढ़ रहा है। इस समय विश्वभर में करीब 600 लोगों के मरे हुए शरीरों को फ्रीज करके रखा गया है। इनमें से 300 से ज्यादा शव सिर्फ अमेरिका और रूस में हैं।
कानूनी तौर पर भले ही ये लोग मर चुके हैं, लेकिन क्रायोनिक्स तकनीक में भरोसा रखने वाले वैज्ञानिकों का मानना है कि वो अभी सिर्फ बेहोश हुए हैं। इस तकनीक के जरिये उन्हें फिर से जिंदा किया जा सकता है। यही वजह है कि दुनिया में कई सारे लोग मरने से पहले अपने परिवार के सामने ये इच्छा जाहिर कर रहे हैं कि उनके शरीर को हमेशा के लिए खत्म करने की बजाय इस तकनीक के जरिये सुरक्षित रखा जाए।
यह है क्रायोनिक्स
अमेरिकी वैज्ञानिक डॉक्टर रिचर्ड गिब्सन के मुताबिक, जब इन्सान को कोई तकनीक जिंदा रखने में असफल हो जाती है तब मौत के बाद उसके शरीर को फ्रीजर में इस उम्मीद में रखा जाता है कि भविष्य में विज्ञान के और उन्नति करने पर उस इंसान को फिर से जिंदा करना संभव हो सकेगा।
भारत, अमेरिका समेत कई देशों में बनीं निजी प्रयोगशालाएं
भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, रूस समेत दुनिया के दर्जनों देशों में निजी कंपनियों ने प्रयोगशालाएं बनाई हैं, जो मरे हुए शरीर को सुरक्षित रखने का दावा करती हैं। हालांकि, इंडियन फ्यूचर सोसायटी के संस्थापक अविनाश कुमार सिंह के मुताबिक, भारत में शव को फ्रीज करके रखने के लिए कोई स्पष्ट कानून नहीं है। यहां कोर्ट और सरकार से इजाजत लेना काफी मुश्किल है।
लंदन हाईकोर्ट में पहला मामला
इसका पहला मामला 2016 में लंदन हाईकोर्ट के एक फैसले में सामने आया था। यहां 14 वर्षीय लड़की की कैंसर से 17 अक्तूबर 2016 को मौत हो गई थी। मौत से पहले उसने लंदन हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी कि उसकी मौत कैंसर बीमारी से होने वाली है। ऐसे में एक बार फिर से जीवन जीने का उसे अधिकार मिलना चाहिए।
बच्ची के परिवार को भरोसा था कि 50 या 100 साल के बाद मेडिकल साइंस में उसकी बीमारी का इलाज संभव होगा और उसे डॉक्टर एक बार फिर जिंदा कर सकेंगे। इसलिए उसने अदालत से इस तकनीक के जरिये अपना शरीर सुरक्षित रखने की अपील की थी।
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