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Can the Vice President and Law Minister be removed, who has the right, what is the procedure?
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Vice President: क्या हटाए जा सकते हैं उपराष्ट्रपति और कानून मंत्री, किसके पास है अधिकार, क्या है प्रक्रिया?
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: हिमांशु मिश्रा
Updated Thu, 02 Feb 2023 06:09 PM IST
सार
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बड़ा सवाल यही है कि क्या हाईकोर्ट उपराष्ट्रपति और कानून मंत्री को हटाने का आदेश दे सकती है? क्या वाकई में दोनों को हटाया जा सकता है? उपराष्ट्रपति और कानून मंत्री को हटाने की प्रक्रिया क्या है? आइए समझते हैं...
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और कानून मंत्री किरण रिजिजू
- फोटो : अमर उजाला
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और कानून मंत्री किरेन रिजिजू को पद से हटाने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई है। दोनों पर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। याचिका में कहा गया है कि न्यायपालिका पर दोनों के हालिया बयान भारत के संविधान में विश्वास की कमी दिखाते हैं। ऐसे में उन्हें अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए।
इस याचिका के बाद तमाम तरह के सवाल उठने लगे हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या हाईकोर्ट उपराष्ट्रपति और कानून मंत्री को हटाने का आदेश दे सकती है? क्या वाकई में दोनों को हटाया जा सकता है? उपराष्ट्रपति और कानून मंत्री को हटाने की प्रक्रिया क्या है? आइए समझते हैं...
पहले जानिए क्या है पूरा मामला?
पिछले दिनों जयपुर में आयोजित एक कार्यक्रम को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने न्यायपालिका पर कड़ी टिप्पणी की थी। राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम निरस्त किए जाने के मुद्दे पर परोक्ष रूप से न्यायपालिका की आलोचना करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि संसद के बनाए कानून को किसी और संस्था द्वारा अमान्य किया जाना लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2015 में एनजेएसी अधिनियम को निरस्त किए जाने को लेकर उन्होंने यह भी कहा कि 'दुनिया में ऐसा कहीं नहीं हुआ है।'
संवैधानिक संस्थाओं को अपनी सीमाओं में रहकर संचालन करने की बात कहते हुए उपराष्ट्रपति बोले, 'संविधान में संशोधन का संसद का अधिकार क्या किसी और संस्था पर निर्भर कर सकता है? क्या भारत के संविधान में कोई नया 'थियेटर' है, जो कहेगा कि संसद ने जो कानून बनाया उस पर हमारी मुहर लगेगी, तभी कानून होगा? 1973 में एक बहुत गलत परंपरा पड़ी, 1973 में केशवानंद भारती के केस में सुप्रीम कोर्ट ने मूलभूत ढांचे का विचार रखा कि संसद, संविधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन मूलभूत ढांचे में नहीं।' उन्होंने आगे कहा, 'यदि संसद के बनाए गए कानून को किसी भी आधार पर कोई भी संस्था अमान्य करती है तो यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं होगा। बल्कि यह कहना मुश्किल होगा कि क्या हम लोकतांत्रिक देश हैं।'
इसी तरह कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने भी कई बार सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी की थी। वह लगातार सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम पर सवाल उठाते रहे हैं। इन्हीं मुद्दों को उठाते हुए बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन की ओर से बॉम्बे हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इसमें मांग की गई है कि उच्च न्यायालय उपराष्ट्रपति धनखड़ व कानून मंत्री रिजिजू को आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोके और घोषित करे कि दोनों अपने सार्वजनिक आचरण और उनके बयानों के माध्यम से भारत के संविधान में विश्वास की कमी दिखाते हुए अपने संवैधानिक पदों को धारण करने से अयोग्य हैं।
तो क्या हाईकोर्ट से हटाए जा सकते हैं उपराष्ट्रपति और कानून मंत्री?
इसे समझने के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्र प्रकाश पांडेय से बात की। उन्होंने कहा, 'उपराष्ट्रपति एक संवैधानिक पद होता है। ये देश को दूसरा सबसे उच्चतम संवैधानिक पद है। उपराष्ट्रपति को हाईकोर्ट से नहीं हटाया जा सकता है। उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए संसद में किसी भी राजनीतिक दल के 14 सदस्य एडवांस नोटिस में प्रस्ताव दे सकते हैं। इस प्रस्ताव पर राज्यसभा में चर्चा होगी और वोटिंग होगी। अगर वहां से पास हो जाता है तो ये प्रस्ताव लोकसभा में जाता है। वहां भी इसी तरह की प्रक्रिया होती है। अगर यहां से भी प्रस्ताव पास हो जाता है तो राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद उपराष्ट्रपति को पदमुक्त समझा जाता है।'
पांडेय आगे कहते हैं, 'भारत के उच्चतम न्यायालय से अनुच्छेद 71(1) के तहत निर्वाचन अनाचार के आधार पर या फिर अनुच्छेद 71(3) के अनुसार किसी भी कारण से अयोग्य घोषित होने पर उपराष्ट्रपति को पदमुक्त किया जा सकता है।'
वहीं, कानून मंत्री के मामले में संविधान थोड़ा अलग है। इसमें राष्ट्रपति खुद से किसी भी कैबिनेट मंत्री को हटा सकते हैं। प्रधानमंत्री की सलाह पर भी कानून या किसी भी मंत्री को हटाया जा सकता है। इसके अलावा अगर कोर्ट से मंत्री अयोग्य घोषित होते हैं, तो भी उन्हें पदमुक्त किया जा सकता है। हालांकि, हाईकोर्ट के फैसले के बाद मंत्री के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प मौजूद रहता है।
क्यों बार-बार हो रहा विवाद?
वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्र प्रकाश पांडेय कहते हैं कि मौजूदा समय केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच कई मामलों को लेकर द्वंद युद्ध चल रहा है। ऐसा नहीं है कि ये पहली बार हुआ है। इसके पहले की सरकारों के साथ भी ऐसा हो चुका है। जब दो संवैधानिक शक्तियां आपस में टकराती हैं तो इस तरह का विवाद होना लाजमी है। हालांकि, दोनों संस्थाएं ये विवाद आपस में बैठकर निपटा सकती हैं।
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