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भारत-पाकिस्तान सीमा पर मिल रही सुरंगों को लेकर देश में एक नई बहस छिड़ गई है। सेना के पूर्व अफसरों का कहना है कि सुरंग का समय रहते कभी पता नहीं चलता। इसे बीएसएफ की लापरवाही कहा जाएगा। अब समय आ गया है कि इंडियन कोस्ट गार्ड और असम राइफल की तरह बीएसएफ की कमांड, सेना के लेफ्टिनेंट जनरल को सौंप देनी चाहिए। कोस्ट गार्ड को नेवी के अफसर लीड करते हैं तो वहीं असम राइफल की कमान आर्मी अफसर के हाथ में है।
इसके साथ ही आईटीबीपी और एसएसबी का कंट्रोल भी सेना के हाथों में दिया जाए। सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) ने यह बात कही है। उनका कहना है कि जब सुरंग मिल जाती है तो बीएसएफ डीजी लीपापोती करने लगते हैं। दूसरी तरफ कश्मीर में रहे बीएसएफ के पूर्व आईजी विकास चंद्रा कहते हैं कि बीएसएफ शत-प्रतिशत नतीजा दे रही है। आर्मी और बीएसएफ में समन्वय की कमी भी नहीं है। बीएसएफ को कुछ तकनीकी उपकरण और मैन पावर मिल जाएं तो सुरंगों का पता लगाना बड़ी बात नहीं है। सुरंग मिलने वाले संभावित इलाकों में अलग से टनल चेकिंग पार्टी गठित कर दी जाए।इसके लिए थोड़ा बजट भी बढ़ाना पड़ेगा।
सुरंग खोदना आसान नहीं है, पाकिस्तान की फौज करती है मदद
सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ कैप्टन अनिल गौर बताते हैं कि बॉर्डर पर सुरंग खोदना आसान काम नहीं है। भारतीय सीमा पर जो सुरंग मिल रही हैं, उसके लिए पाकिस्तान की सेना मदद करती है। सुरंग खोदने के लिए पाकिस्तानी आर्मी, आतंकी संगठन 'जैश-ए-मोहम्मद' और 'लश्कर-ए-तैयबा' को हर तरह की मदद देती है। आतंकियों के पास उपकरण और मैन पावर की कमी नहीं होती। इस कारण सुरंग से निकली मिट्टी भारतीय सीमा में दिखाई नहीं देती।
बीएसएफ और आईबी वाले भी इन सुरंगों का पता नहीं लगा पाते। सैटेलाइट इमेज में भी ये सुरंगें नहीं आती। इसका मतलब हमारी सुरक्षा एजेंसियों के पास जो मौजूदा उपकरण हैं, वे बहुत कमजोर हैं। अगर हैवी रेंज के उपकरण होते तो उनकी मदद से सुरंग के अंतिम सिरे वाले हिस्से को देखा जा सकता है। वहां बना गड्ढा उपकरणों की स्केनिंग में आ सकता है। इजराइल इस तरह के इंफ्रारेड सिस्टम और स्केनर आदि तैयार करता है। बीएसएफ दावा करती है कि वह सीआईबीएमएस पर काम कर रही है। वह सिस्टम घुसपैठ को कितना रोक पाएगा, मालूम नहीं है।
बीएसएफ का नेतृत्व करने वालों के पास बॉर्डर का अनुभव नहीं होता
बतौर कैप्टन गौर, बीएसएफ, आईटीबीपी और एसएसबी को आईपीएस लीड कर रहे हैं। सेना का सीमा की सुरक्षा करने का अपना एक अलग तरीका होता है। अगर लेफ्टिनेंट जनरल को बीएसएफ की कमांड सौंपी जाए तो घुसपैठ को काफी हद तक रोका जा सकता है। जब घुसपैठ होती है तो बीएसएफ के डीजी बयान जारी कर देते हैं कि हमारी तरफ कुछ नहीं हुआ है, जबकि उनकी तरफ सुरंग का मुंह खुला हुआ है। केंद्रीय गृह मंत्रालय को ऐसे अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।
आतंकियों को रोकने के लिए सड़कों पर ट्रक बॉडी स्केनर लगाए जाएं। पेट्रोलिंग का तरीका बदला जाए। इस बॉर्डर पर फौजी तरीके से काम करने की जरूरत है। सर्विलांस के नए उपकरण काफी मददगार साबित हो सकते हैं।
सुरंगों का पता लगाने के लिए बीएसएफ को मिलें तकनीकी उपकरण
पूर्व आईजी विकास चंद्रा कहते हैं कि बीएसएफ अपनी ड्यूटी में कहीं कोई कमी नहीं छोड़ती। पहले घुसपैठिये, फेंसिंग को काट देते थे, आज तो वैसा कोई मामला सामने नहीं आ रहा। बीएसएफ को जब संसाधन मिल गए तो फेंसिंग को नुकसान पहुंचाने वालों को सबक सिखा दिया गया। यह बात सही है कि कुछ कमियां हैं, लेकिन उन्हें सुधारा जा सकता है। पेट्रोलिंग तो बीएसएफ भी सेना की तरह करती है। बॉर्डर पर अगर पांच-छह मीटर नीचे सुरंग खोदी जा रही है तो उपकरण के जरिए उसका पता लगाना आसान नहीं है। मौजूदा उपकरण तो मात्र दो तीन फुट की गहराई तक ही कुछ पता लगा पाएंगे।
इसके लिए जरुरी है कि वहां मैनुअल तरीके से गश्त की जाए। बीएसएफ का बजट बढ़ाना होगा। लेटेस्ट सर्विलांस उपकरण मुहैया कराए जाएं। बीएसएफ को फालतू ड्यूटी से दूर किया जाए। टनल चेकिंग पार्टी का गठन हो। इसका काम केवल टनल देखना ही रहे। जहां भी सुरंग मिलने की संभावना हो, वहां यह पार्टी नुकीली वस्तु जमीन में चार पांच फुट नीचे तक मारकर पता लगाएगी कि यहां खाली जगह तो नहीं है। जम्मू, सांबा और अख्नूर जैसी जगहों पर अतिरिक्त बटालियन तैनात की जाए। विकास चंद्रा ने कहा, बेहतर होगा कि बीएसएफ कैडर के अच्छे अफसरों को ही बल कमांड करने का मौका मिले।
सार
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इंडियन कोस्ट गार्ड और असम राइफल की तरह बीएसएफ की कमांड, सेना के लेफ्टिनेंट जनरल को सौंप देनी चाहिए। कोस्ट गार्ड को नेवी के अफसर लीड करते हैं तो वहीं असम राइफल की कमान आर्मी अफसर के हाथ में है...
विस्तार
भारत-पाकिस्तान सीमा पर मिल रही सुरंगों को लेकर देश में एक नई बहस छिड़ गई है। सेना के पूर्व अफसरों का कहना है कि सुरंग का समय रहते कभी पता नहीं चलता। इसे बीएसएफ की लापरवाही कहा जाएगा। अब समय आ गया है कि इंडियन कोस्ट गार्ड और असम राइफल की तरह बीएसएफ की कमांड, सेना के लेफ्टिनेंट जनरल को सौंप देनी चाहिए। कोस्ट गार्ड को नेवी के अफसर लीड करते हैं तो वहीं असम राइफल की कमान आर्मी अफसर के हाथ में है।
इसके साथ ही आईटीबीपी और एसएसबी का कंट्रोल भी सेना के हाथों में दिया जाए। सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) ने यह बात कही है। उनका कहना है कि जब सुरंग मिल जाती है तो बीएसएफ डीजी लीपापोती करने लगते हैं। दूसरी तरफ कश्मीर में रहे बीएसएफ के पूर्व आईजी विकास चंद्रा कहते हैं कि बीएसएफ शत-प्रतिशत नतीजा दे रही है। आर्मी और बीएसएफ में समन्वय की कमी भी नहीं है। बीएसएफ को कुछ तकनीकी उपकरण और मैन पावर मिल जाएं तो सुरंगों का पता लगाना बड़ी बात नहीं है। सुरंग मिलने वाले संभावित इलाकों में अलग से टनल चेकिंग पार्टी गठित कर दी जाए।इसके लिए थोड़ा बजट भी बढ़ाना पड़ेगा।
सुरंग खोदना आसान नहीं है, पाकिस्तान की फौज करती है मदद
सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ कैप्टन अनिल गौर बताते हैं कि बॉर्डर पर सुरंग खोदना आसान काम नहीं है। भारतीय सीमा पर जो सुरंग मिल रही हैं, उसके लिए पाकिस्तान की सेना मदद करती है। सुरंग खोदने के लिए पाकिस्तानी आर्मी, आतंकी संगठन 'जैश-ए-मोहम्मद' और 'लश्कर-ए-तैयबा' को हर तरह की मदद देती है। आतंकियों के पास उपकरण और मैन पावर की कमी नहीं होती। इस कारण सुरंग से निकली मिट्टी भारतीय सीमा में दिखाई नहीं देती।
बीएसएफ और आईबी वाले भी इन सुरंगों का पता नहीं लगा पाते। सैटेलाइट इमेज में भी ये सुरंगें नहीं आती। इसका मतलब हमारी सुरक्षा एजेंसियों के पास जो मौजूदा उपकरण हैं, वे बहुत कमजोर हैं। अगर हैवी रेंज के उपकरण होते तो उनकी मदद से सुरंग के अंतिम सिरे वाले हिस्से को देखा जा सकता है। वहां बना गड्ढा उपकरणों की स्केनिंग में आ सकता है। इजराइल इस तरह के इंफ्रारेड सिस्टम और स्केनर आदि तैयार करता है। बीएसएफ दावा करती है कि वह सीआईबीएमएस पर काम कर रही है। वह सिस्टम घुसपैठ को कितना रोक पाएगा, मालूम नहीं है।
बीएसएफ का नेतृत्व करने वालों के पास बॉर्डर का अनुभव नहीं होता
बतौर कैप्टन गौर, बीएसएफ, आईटीबीपी और एसएसबी को आईपीएस लीड कर रहे हैं। सेना का सीमा की सुरक्षा करने का अपना एक अलग तरीका होता है। अगर लेफ्टिनेंट जनरल को बीएसएफ की कमांड सौंपी जाए तो घुसपैठ को काफी हद तक रोका जा सकता है। जब घुसपैठ होती है तो बीएसएफ के डीजी बयान जारी कर देते हैं कि हमारी तरफ कुछ नहीं हुआ है, जबकि उनकी तरफ सुरंग का मुंह खुला हुआ है। केंद्रीय गृह मंत्रालय को ऐसे अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।
आतंकियों को रोकने के लिए सड़कों पर ट्रक बॉडी स्केनर लगाए जाएं। पेट्रोलिंग का तरीका बदला जाए। इस बॉर्डर पर फौजी तरीके से काम करने की जरूरत है। सर्विलांस के नए उपकरण काफी मददगार साबित हो सकते हैं।
सुरंगों का पता लगाने के लिए बीएसएफ को मिलें तकनीकी उपकरण
पूर्व आईजी विकास चंद्रा कहते हैं कि बीएसएफ अपनी ड्यूटी में कहीं कोई कमी नहीं छोड़ती। पहले घुसपैठिये, फेंसिंग को काट देते थे, आज तो वैसा कोई मामला सामने नहीं आ रहा। बीएसएफ को जब संसाधन मिल गए तो फेंसिंग को नुकसान पहुंचाने वालों को सबक सिखा दिया गया। यह बात सही है कि कुछ कमियां हैं, लेकिन उन्हें सुधारा जा सकता है। पेट्रोलिंग तो बीएसएफ भी सेना की तरह करती है। बॉर्डर पर अगर पांच-छह मीटर नीचे सुरंग खोदी जा रही है तो उपकरण के जरिए उसका पता लगाना आसान नहीं है। मौजूदा उपकरण तो मात्र दो तीन फुट की गहराई तक ही कुछ पता लगा पाएंगे।
इसके लिए जरुरी है कि वहां मैनुअल तरीके से गश्त की जाए। बीएसएफ का बजट बढ़ाना होगा। लेटेस्ट सर्विलांस उपकरण मुहैया कराए जाएं। बीएसएफ को फालतू ड्यूटी से दूर किया जाए। टनल चेकिंग पार्टी का गठन हो। इसका काम केवल टनल देखना ही रहे। जहां भी सुरंग मिलने की संभावना हो, वहां यह पार्टी नुकीली वस्तु जमीन में चार पांच फुट नीचे तक मारकर पता लगाएगी कि यहां खाली जगह तो नहीं है। जम्मू, सांबा और अख्नूर जैसी जगहों पर अतिरिक्त बटालियन तैनात की जाए। विकास चंद्रा ने कहा, बेहतर होगा कि बीएसएफ कैडर के अच्छे अफसरों को ही बल कमांड करने का मौका मिले।