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Bombay High Court says Ex Maharashtra governor and BJP leader remarks on Shivaji Maharaj no criminal offence
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Bombay HC: अदालत ने कहा- शिवाजी महाराज पर महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल की टिप्पणी अपराध नहीं, याचिका खारिज
पीटीआई, मुंबई
Published by: वीरेंद्र शर्मा
Updated Mon, 27 Mar 2023 02:48 AM IST
सार
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शिवाजी महाराज, समाज सुधारक महात्मा फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई और मराठी लोगों के बारे में दिए गए बयानों से विवाद खड़ा हुआ था। जिसके बाद कोश्यारी ने पिछले महीने राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया था।
बंबई हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी और भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी को राहत दी है। कोर्ट ने छत्रपति शिवाजी महाराज और अन्य दिग्गजों पर दिए बयानों पर कार्रवाई की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा, यह किसी भी अधिनियम के तहत अपराध नहीं है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि बयान इन हस्तियों के संबंध में वक्ता की समझ और विचारों को दर्शाते हैं, जिसका लक्ष्य दर्शकों/श्रोताओं को समझाना है और उनकी मंशा समाज की बेहतरी के लिए उनको ज्ञान देना है। शिवाजी महाराज, समाज सुधारक महात्मा फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई और मराठी लोगों के बारे में दिए गए बयानों से विवाद खड़ा हुआ था। जिसके बाद कोश्यारी ने पिछले महीने राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया था।
पुराने समय का प्रतीक कहने से खड़ा हुआ विवाद
शिवाजी महाराज को "पुराने समय का प्रतीक" कहने के लिए कोश्यारी को आलोचना का सामना करना पड़ा था, जबकि त्रिवेदी ने कथित तौर पर कहा था कि मराठा साम्राज्य के संस्थापक ने मुगल सम्राट औरंगजेब से माफी मांगी थी। इसी को लेकर 20 मार्च को पनवेल निवासी रमा कतरनवरे ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। जस्टिस सुनील शुकरे और अभय वाघवासे ने याचिका को खारिज कर दिया, जो अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय से संबंधित है।
याचिकाकर्ता ने बयानों को बताया था अपमानजनक
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि कोश्यारी और त्रिवेदी द्वारा सार्वजनिक भाषणों में दिए गए बयान दिवंगत राजनीतिक हस्तियों के प्रति अपमानजनक हैं। हालांकि, पीठ ने अपने आदेश में कहा, बयानों को गहराई से जानने पर स्पष्ट होगा कि वे इतिहास के विश्लेषण और इतिहास से सीखे जाने वाले सबक की प्रकृति के हैं। आगे कहा कि ये बयान मुख्य रूप से उन आंकड़ों के बारे में वक्ता की धारणा और राय को दर्शाते हैं, जिसका उद्देश्य दर्शकों को राजी करना है, जिनके लिए उन्हें व्यक्त किया गया है, इस तरह से सोचने और कार्य करने के लिए जो समाज के लिए अच्छा हो। बयान के पीछे की मंशा समाज की बेहतरी के लिए प्रबुद्धता प्रतीत होती है, जैसा कि स्पीकर ने माना है। कोर्ट ने कहा, जो बयान दिए गए थे, वे प्रथम दृष्टया अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम या किसी अन्य आपराधिक कानून के तहत दंडनीय अपराध नहीं बनते हैं।
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