बीजापुर के नक्सली हमले को लेकर तरह-तरह की बातें सामने आ रही हैं। इस ऑपरेशन से जुड़े कैडर अधिकारी ने एक बड़ा खुलासा किया है। उनके मुताबिक, नक्सलियों के खिलाफ हो रहे इस ऑपरेशन पर सीआरपीएफ और छत्तीसगढ़ पुलिस के टॉप अफसर लगातार नजर रख रहे थे। कई जूनियर अधिकारियों ने ऑपरेशन को लेकर कुछ बताना चाहा तो उन्हें सीनियरों ने चुप करा दिया। ये वही जूनियर अधिकारी हैं जो कई वर्षों से नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशनों को लीड करते रहे हैं।
नक्सली हमले के दौरान जब सुरक्षा बल आगे बढ़ रहे थे, तो बीच रास्ते में पड़ने वाले गांव सुनसान थे। वहां कोई नहीं था। इसका अर्थ कोई नहीं समझ सका। क्या वे गांव नक्सलियों ने खाली कराए थे, इसका मतलब वहां कोई बड़ा कांड होने वाला था, ये सब बातें उन आला अधिकारियों को समझ नहीं आईं, जो निगरानी केंद्र में बैठकर इस ऑपरेशन का संचालन कर रहे थे। यह कहा गया कि ड्रोन जैसे उपकरणों से नक्सलियों पर नजर रखी गई थी, तो पेड़ों पर 'हरे रंग' की वर्दी पहने बैठे नक्सली क्यों नहीं दिख सके। ऑपरेशन में शामिल अधिकांश जवान गोलियों से नहीं, बल्कि बम फटने से मारे गए।
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में लंबे समय से तैनात इन अधिकारियों का कहना है, इस ऑपरेशन की रणनीति उन्हें खुद समझ नहीं आ रही थी। सीनियर सिक्योरिटी एडवाइजर के. विजय कुमार, स्पेशल डीजी जुल्फिकार हसन और आईजी 'ऑपरेशन' नलिन प्रभात के मुताबिक यह ऑपरेशन चल रहा था। छत्तीसगढ़ पुलिस प्रमुख भी उनके साथ थे, लेकिन जिस रणनीति के तहत सुरक्षा बल आगे बढ़ रहे थे, वह सीआरपीएफ के टॉप अफसरों द्वारा ही तैयार की गई थी।
नक्सलियों ने पांच किलोमीटर के दायरे में ही घात लगाकर हमला कर दिया। जिस टीम पर हमला हुआ था, वह दो किलोमीटर ही अंदर गई थी। उससे पहले के निकटवर्ती गांव खाली थे। इन गांवों को किसने खाली कराया था, इस सवाल के जवाब में अधिकारियों का कहना है, ये सब नक्सलियों की रणनीति का एक हिस्सा था। सीनियर सिक्योरिटी एडवाइजर और सीआरपीएफ के रणनीतिकारों से इस स्थिति को समझने में भारी चूक हो गई। हालांकि डीजी कुलदीप सिंह कहते हैं कि सुरक्षा बलों की कोई चूक नहीं थी। सब योजनाबद्ध था। इंटेलिजेंस फेल होने की बात को भी उन्होंने नकार दिया।
सुरक्षा बलों ने जब इतना बड़ा ऑपरेशन प्लान किया था, तो उसकी पूरी जानकारी नक्सलियों के हाथ लग गई थी। एक साथ दो हजार जवानों को आगे भेज दिया गया। जब वे जवान जंगल के निकट तक पहुंचे होंगे तो वहां सैकड़ों गाड़ियां भी आई होंगी। जवानों के कैंप पर खाना भी तैयार हुआ होगा। मतलब, आसपास कोई भी यह अंदाजा लगा सकता था कि इतना भारी संख्या में फोर्स निकल रही है तो अवश्य कोई गंभीर मसला है।
जितने भी जवान मारे गए हैं, उन सभी के पास हथियार थे, लेकिन नक्सलियों ने जब गुरिल्ला युद्ध नीति से हमला किया, तो जवानों को हथियार चलाने का मौका ही नहीं मिल सका। वजह, नक्सलियों ने ऊंचाई पर पोजिशन ले रखी थी। जवान जब उनकी तरफ बढ़ रहे थे, तो उन्होंने ऊंचाई से जवानों पर पत्थर फैंकने शुरू कर दिए। जब तक जवान संभलते, नक्सलियों ने ऊंचाई का फायदा उठाकर देसी मोर्टार से बमों की बरसात कर दी। लगातार हैंड ग्रेनेड फैंके गए। वृक्षों पर हरी वर्दी पहनकर बैठे नक्सलियों ने भी बम फैंकने शुरू कर दिए। इसके बाद जवानों के पास बचने का कोई विकल्प नहीं था।
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बीजापुर के नक्सली हमले को लेकर तरह-तरह की बातें सामने आ रही हैं। इस ऑपरेशन से जुड़े कैडर अधिकारी ने एक बड़ा खुलासा किया है। उनके मुताबिक, नक्सलियों के खिलाफ हो रहे इस ऑपरेशन पर सीआरपीएफ और छत्तीसगढ़ पुलिस के टॉप अफसर लगातार नजर रख रहे थे। कई जूनियर अधिकारियों ने ऑपरेशन को लेकर कुछ बताना चाहा तो उन्हें सीनियरों ने चुप करा दिया। ये वही जूनियर अधिकारी हैं जो कई वर्षों से नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशनों को लीड करते रहे हैं।
नक्सली हमले के दौरान जब सुरक्षा बल आगे बढ़ रहे थे, तो बीच रास्ते में पड़ने वाले गांव सुनसान थे। वहां कोई नहीं था। इसका अर्थ कोई नहीं समझ सका। क्या वे गांव नक्सलियों ने खाली कराए थे, इसका मतलब वहां कोई बड़ा कांड होने वाला था, ये सब बातें उन आला अधिकारियों को समझ नहीं आईं, जो निगरानी केंद्र में बैठकर इस ऑपरेशन का संचालन कर रहे थे। यह कहा गया कि ड्रोन जैसे उपकरणों से नक्सलियों पर नजर रखी गई थी, तो पेड़ों पर 'हरे रंग' की वर्दी पहने बैठे नक्सली क्यों नहीं दिख सके। ऑपरेशन में शामिल अधिकांश जवान गोलियों से नहीं, बल्कि बम फटने से मारे गए।
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में लंबे समय से तैनात इन अधिकारियों का कहना है, इस ऑपरेशन की रणनीति उन्हें खुद समझ नहीं आ रही थी। सीनियर सिक्योरिटी एडवाइजर के. विजय कुमार, स्पेशल डीजी जुल्फिकार हसन और आईजी 'ऑपरेशन' नलिन प्रभात के मुताबिक यह ऑपरेशन चल रहा था। छत्तीसगढ़ पुलिस प्रमुख भी उनके साथ थे, लेकिन जिस रणनीति के तहत सुरक्षा बल आगे बढ़ रहे थे, वह सीआरपीएफ के टॉप अफसरों द्वारा ही तैयार की गई थी।
नक्सलियों ने पांच किलोमीटर के दायरे में ही घात लगाकर हमला कर दिया। जिस टीम पर हमला हुआ था, वह दो किलोमीटर ही अंदर गई थी। उससे पहले के निकटवर्ती गांव खाली थे। इन गांवों को किसने खाली कराया था, इस सवाल के जवाब में अधिकारियों का कहना है, ये सब नक्सलियों की रणनीति का एक हिस्सा था। सीनियर सिक्योरिटी एडवाइजर और सीआरपीएफ के रणनीतिकारों से इस स्थिति को समझने में भारी चूक हो गई। हालांकि डीजी कुलदीप सिंह कहते हैं कि सुरक्षा बलों की कोई चूक नहीं थी। सब योजनाबद्ध था। इंटेलिजेंस फेल होने की बात को भी उन्होंने नकार दिया।
सुरक्षा बलों ने जब इतना बड़ा ऑपरेशन प्लान किया था, तो उसकी पूरी जानकारी नक्सलियों के हाथ लग गई थी। एक साथ दो हजार जवानों को आगे भेज दिया गया। जब वे जवान जंगल के निकट तक पहुंचे होंगे तो वहां सैकड़ों गाड़ियां भी आई होंगी। जवानों के कैंप पर खाना भी तैयार हुआ होगा। मतलब, आसपास कोई भी यह अंदाजा लगा सकता था कि इतना भारी संख्या में फोर्स निकल रही है तो अवश्य कोई गंभीर मसला है।
जितने भी जवान मारे गए हैं, उन सभी के पास हथियार थे, लेकिन नक्सलियों ने जब गुरिल्ला युद्ध नीति से हमला किया, तो जवानों को हथियार चलाने का मौका ही नहीं मिल सका। वजह, नक्सलियों ने ऊंचाई पर पोजिशन ले रखी थी। जवान जब उनकी तरफ बढ़ रहे थे, तो उन्होंने ऊंचाई से जवानों पर पत्थर फैंकने शुरू कर दिए। जब तक जवान संभलते, नक्सलियों ने ऊंचाई का फायदा उठाकर देसी मोर्टार से बमों की बरसात कर दी। लगातार हैंड ग्रेनेड फैंके गए। वृक्षों पर हरी वर्दी पहनकर बैठे नक्सलियों ने भी बम फैंकने शुरू कर दिए। इसके बाद जवानों के पास बचने का कोई विकल्प नहीं था।