पश्चिम बंगाल में भाजपा की उम्मीद एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी नहीं, बल्कि फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी के प्रदर्शन पर टिकी है। फुरफुरा शरीफ का राज्य के मुसलमानों पर अच्छे प्रभाव के कारण पार्टी को अल्पसंख्यक मतों में विभाजन की उम्मीद है। सिद्दीकी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) ने इस बार कांग्रेस और वाम दलों के साथ गठबंधन किया है।
दरअसल राज्य में मुसलमान मतदाता करीब सौ सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं। इस वर्ग का मालदा, उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण और उत्तर परगना के साथ-साथ मुर्शिदाबाद में व्यापक प्रभाव है। राज्य में करीब 28 फीसदी मतदाता इसी वर्ग से हैं।
ऐसे में भाजपा को पता है कि अगर यह वोट बैंक मजबूती के साथ टीएमसी के साथ खड़ा रहा तो सत्ता हासिल करने का उसका सपना पूरा नहीं होगा। गौरतलब है कि मुस्लिम वोट के कारण ही लोकसभा-विधानसभा के बीते दो चुनावों में टीएमसी का वोट शेयर 43-45 फीसदी के बीच रहा।
अब्बास से उम्मीद क्यों
बिहार विधानसभा चुनाव के बाद से ओवैसी को लेकर राज्य के मुसलमान सतर्क हैं। राज्य में थोड़े अंतर से राजग सरकार का रास्ता न रोक पाने की टीस राज्य के अल्पसंख्यक वर्ग में है। मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा राज्य में सत्ता परिवर्तन न होने के लिए ओवैसी को जिम्मेदार मानता है।
हालांकि सिद्दीकी और उनकी पार्टी की स्थिति दूसरी है। सिद्दीकी स्थानीय और बंगाली मुसलमान हैं। उनकी पार्टी कांग्रेस-वाम दल के साथ चुनाव मैदान में है।
टीएमसी के वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति
बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा को करीब 40 फीसदी तो टीएमसी को 43 फीसदी मत मिले थे। भाजपा को वोट शेयर बढ़ने की उम्मीद नहीं है। बल्कि लोकसभा के बाद जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, उसमें भाजपा के मत प्रतिशत में गिरावट आई।
ऐसे में उसकी रणनीति अपना वोट बैंक बरकरार रखने के साथ टीएमसी के वोट बैंक में सेंध लगाने की है। ऐसा तभी होगा, जब राज्य में अल्पसंख्यक वोट बैंक में बिखराव होगा।
मुसलमानों को टिकट दे सकती है भाजपा
भाजपा की पूरी कोशिश है कि अल्पसंख्यकों का टीएमसी के पक्ष में ध्रुवीकरण न हो। इसलिए पार्टी ने प्रतीकात्मक तौर पर ही सही मगर इस बिरादरी को टिकट देने का मन बनाया है। पार्टी के लिए मुश्किल यह है कि अल्पसंख्यक मतदाताओं के खिलाफ समानांतर ध्रुवीकरण के लिए सीएए, एनआरसी जैसे मुद्दे उठाना उसकी मजबूरी है।
पश्चिम बंगाल में भाजपा की उम्मीद एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी नहीं, बल्कि फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी के प्रदर्शन पर टिकी है। फुरफुरा शरीफ का राज्य के मुसलमानों पर अच्छे प्रभाव के कारण पार्टी को अल्पसंख्यक मतों में विभाजन की उम्मीद है। सिद्दीकी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) ने इस बार कांग्रेस और वाम दलों के साथ गठबंधन किया है।
दरअसल राज्य में मुसलमान मतदाता करीब सौ सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं। इस वर्ग का मालदा, उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण और उत्तर परगना के साथ-साथ मुर्शिदाबाद में व्यापक प्रभाव है। राज्य में करीब 28 फीसदी मतदाता इसी वर्ग से हैं।
ऐसे में भाजपा को पता है कि अगर यह वोट बैंक मजबूती के साथ टीएमसी के साथ खड़ा रहा तो सत्ता हासिल करने का उसका सपना पूरा नहीं होगा। गौरतलब है कि मुस्लिम वोट के कारण ही लोकसभा-विधानसभा के बीते दो चुनावों में टीएमसी का वोट शेयर 43-45 फीसदी के बीच रहा।
अब्बास से उम्मीद क्यों
बिहार विधानसभा चुनाव के बाद से ओवैसी को लेकर राज्य के मुसलमान सतर्क हैं। राज्य में थोड़े अंतर से राजग सरकार का रास्ता न रोक पाने की टीस राज्य के अल्पसंख्यक वर्ग में है। मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा राज्य में सत्ता परिवर्तन न होने के लिए ओवैसी को जिम्मेदार मानता है।
हालांकि सिद्दीकी और उनकी पार्टी की स्थिति दूसरी है। सिद्दीकी स्थानीय और बंगाली मुसलमान हैं। उनकी पार्टी कांग्रेस-वाम दल के साथ चुनाव मैदान में है।
टीएमसी के वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति
बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा को करीब 40 फीसदी तो टीएमसी को 43 फीसदी मत मिले थे। भाजपा को वोट शेयर बढ़ने की उम्मीद नहीं है। बल्कि लोकसभा के बाद जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, उसमें भाजपा के मत प्रतिशत में गिरावट आई।
ऐसे में उसकी रणनीति अपना वोट बैंक बरकरार रखने के साथ टीएमसी के वोट बैंक में सेंध लगाने की है। ऐसा तभी होगा, जब राज्य में अल्पसंख्यक वोट बैंक में बिखराव होगा।
मुसलमानों को टिकट दे सकती है भाजपा
भाजपा की पूरी कोशिश है कि अल्पसंख्यकों का टीएमसी के पक्ष में ध्रुवीकरण न हो। इसलिए पार्टी ने प्रतीकात्मक तौर पर ही सही मगर इस बिरादरी को टिकट देने का मन बनाया है। पार्टी के लिए मुश्किल यह है कि अल्पसंख्यक मतदाताओं के खिलाफ समानांतर ध्रुवीकरण के लिए सीएए, एनआरसी जैसे मुद्दे उठाना उसकी मजबूरी है।