तीन दशक से ज्यादा वक्त तक वामपंथ का किला रहा बंगाल अब दीदी का गढ़ बन गया है। कांग्रेस व वामपंथ हाशिये पर हैं तो भाजपा भी कमजोर हो रही है, क्योंकि सत्ता के बल पर टीएमसी दूसरे दलों के नेताओं को साम दाम दंड भेद से अपने पाले में कर रही है। बाबुल सुप्रियो उसी कड़ी में नया नाम है।
बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 में हार के बाद भाजपा राज्य में कमजोर होती नजर आ रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेता मुकुल रॉय के बाद अब बाबुल सुप्रियो ने दीदी हाथ थाम कर भाजपा को तगड़ा झटका दिया है। इसके लिए उन्होंने अलग तरीका अपनाया। पहले उन्होंने राजनीति से कथित 'संन्यास' लिया, जो कि नेता कम ही ले पाते हैं, और उसके बाद शनिवार को टीएमसी में शामिल हुए। बाबुल सुप्रियो को भाजपा ने संगीत की दुनिया से सियासत में लाकर केंद्रीय मंत्री तक की ऊंचाई दी, लेकिन एक चुनाव में पराजय ने उनकी पार्टी से बिदाई करा दी।
जून में मुकुल रॉय के बाद तेज हुआ भाजपा छोड़ने का सिलसिला
- दरअसल, दो मई 2021 को आए बंगाल के नतीजों में भाजपा को कामयाबी नहीं मिलने पर जून में वरिष्ठ नेता मुकुल राय अपने बेटे शुभ्रांशु के साथ भाजपा छोड़कर वापस तृणमूल में शामिल हो गए थे।
- 30 अगस्त को बांकुड़ा के विष्णुपुर से भाजपा विधायक तन्मय घोष ने भाजपा छोड़ दी।
- 31 अगस्त को उत्तर 24 परगना जिले के बोगदा से विधायक विश्वजीत दास टीएमसी में शामिल हो गए थे।
- 4 सितंबर को उत्तर दिनाजपुर जिले के कालियागंज से विधायक सौमेन राय टीएमसी में शामिल हुए थे।
2019 में शुरू हुई थी तृणमूल नेताओं के भगवाकरण की शुरूआत
बंगाल में एक वक्त ऐसा था जब तृणमूल के दिग्गज नेता भगवा रंग में रंगने को बेताब थे। 2019 के लोकसभा चुनाव से चंद महीनों पहले यह दौर शुरू हुआ था। सबसे पहले मुकुल रॉय ने भाजपा का दामन थामा और उसके बाद अनुपम हाजरा, सौमित्र खान आदि सांसद भाजपा में शामिल हो गए। इस बीच विधायक अर्जुन सिंह भी भाजपाई बने और उसका इनाम लोकसभा चुनाव में बतौर सांसद मिला। उसके बाद ममता के एकदम करीबी रहे राज्य के मंत्री सुवेंदु अधिकारी और शीलभद्र दत्ता आदि दिग्गज नेता भाजपा में शामिल हो गए थे।
भाजपा का कैडर आधार कहां खो गया?
भाजपा पार्टी विद डिफरेंस व कैडर आधारित मानी जाती है, लेकिन बंगाल में उसकी इसी विशेषता से समझौता उसे भारी पड़ गया। इधर उधर के नेताओं को शामिल कर उसने वामपंथ व कांग्रेस को तो कमजोर कर दिया, लेकिन बंगाल को दीदी का अभेद्य किला बनने से रोक नहीं सकी।
दीदी की नजर अब 2024 पर
लगता है बंगाल को गढ़ बनाने के बाद टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी की नजर 2024 के लोकसभा चुनाव पर है। वह संयुक्त विपक्ष की पीएम प्रत्याशी बनने की ओर अग्रसर है, इसलिए बंगाल को वह अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी व मुकुल रॉय तथा बाबुल सुप्रियो जैसे नेताओं के भरोसे छोड़ सकती हैं। भाजपा के लिए अब मुसीबत यह है कि वह बंगाल में अपने विधायकों को लामबंद रखे और टीएमसी का मुकाबला करे ताकि 2026 के विधानसभा चुनाव में 'तृणमूल' पर 'कमल' खिला सके।
विस्तार
तीन दशक से ज्यादा वक्त तक वामपंथ का किला रहा बंगाल अब दीदी का गढ़ बन गया है। कांग्रेस व वामपंथ हाशिये पर हैं तो भाजपा भी कमजोर हो रही है, क्योंकि सत्ता के बल पर टीएमसी दूसरे दलों के नेताओं को साम दाम दंड भेद से अपने पाले में कर रही है। बाबुल सुप्रियो उसी कड़ी में नया नाम है।
बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 में हार के बाद भाजपा राज्य में कमजोर होती नजर आ रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेता मुकुल रॉय के बाद अब बाबुल सुप्रियो ने दीदी हाथ थाम कर भाजपा को तगड़ा झटका दिया है। इसके लिए उन्होंने अलग तरीका अपनाया। पहले उन्होंने राजनीति से कथित 'संन्यास' लिया, जो कि नेता कम ही ले पाते हैं, और उसके बाद शनिवार को टीएमसी में शामिल हुए। बाबुल सुप्रियो को भाजपा ने संगीत की दुनिया से सियासत में लाकर केंद्रीय मंत्री तक की ऊंचाई दी, लेकिन एक चुनाव में पराजय ने उनकी पार्टी से बिदाई करा दी।
जून में मुकुल रॉय के बाद तेज हुआ भाजपा छोड़ने का सिलसिला
- दरअसल, दो मई 2021 को आए बंगाल के नतीजों में भाजपा को कामयाबी नहीं मिलने पर जून में वरिष्ठ नेता मुकुल राय अपने बेटे शुभ्रांशु के साथ भाजपा छोड़कर वापस तृणमूल में शामिल हो गए थे।
- 30 अगस्त को बांकुड़ा के विष्णुपुर से भाजपा विधायक तन्मय घोष ने भाजपा छोड़ दी।
- 31 अगस्त को उत्तर 24 परगना जिले के बोगदा से विधायक विश्वजीत दास टीएमसी में शामिल हो गए थे।
- 4 सितंबर को उत्तर दिनाजपुर जिले के कालियागंज से विधायक सौमेन राय टीएमसी में शामिल हुए थे।
2019 में शुरू हुई थी तृणमूल नेताओं के भगवाकरण की शुरूआत
बंगाल में एक वक्त ऐसा था जब तृणमूल के दिग्गज नेता भगवा रंग में रंगने को बेताब थे। 2019 के लोकसभा चुनाव से चंद महीनों पहले यह दौर शुरू हुआ था। सबसे पहले मुकुल रॉय ने भाजपा का दामन थामा और उसके बाद अनुपम हाजरा, सौमित्र खान आदि सांसद भाजपा में शामिल हो गए। इस बीच विधायक अर्जुन सिंह भी भाजपाई बने और उसका इनाम लोकसभा चुनाव में बतौर सांसद मिला। उसके बाद ममता के एकदम करीबी रहे राज्य के मंत्री सुवेंदु अधिकारी और शीलभद्र दत्ता आदि दिग्गज नेता भाजपा में शामिल हो गए थे।
भाजपा का कैडर आधार कहां खो गया?
भाजपा पार्टी विद डिफरेंस व कैडर आधारित मानी जाती है, लेकिन बंगाल में उसकी इसी विशेषता से समझौता उसे भारी पड़ गया। इधर उधर के नेताओं को शामिल कर उसने वामपंथ व कांग्रेस को तो कमजोर कर दिया, लेकिन बंगाल को दीदी का अभेद्य किला बनने से रोक नहीं सकी।
दीदी की नजर अब 2024 पर
लगता है बंगाल को गढ़ बनाने के बाद टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी की नजर 2024 के लोकसभा चुनाव पर है। वह संयुक्त विपक्ष की पीएम प्रत्याशी बनने की ओर अग्रसर है, इसलिए बंगाल को वह अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी व मुकुल रॉय तथा बाबुल सुप्रियो जैसे नेताओं के भरोसे छोड़ सकती हैं। भाजपा के लिए अब मुसीबत यह है कि वह बंगाल में अपने विधायकों को लामबंद रखे और टीएमसी का मुकाबला करे ताकि 2026 के विधानसभा चुनाव में 'तृणमूल' पर 'कमल' खिला सके।