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Ashoka Stambh National Emblem designer Laxman Vyas exclusive interview to Amar Ujala explains art behind creation news in hindi
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Ashoka Stambh National Emblem: नए संसद भवन पर स्थापित राष्ट्रीय चिह्न की प्रतिकृति क्यों खास? आंकड़ों में समझें
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Thu, 14 Jul 2022 11:25 PM IST
सार
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दिल्ली में नए संसद भवन की छत पर स्थापित की गई अशोक स्तंभ की प्रतिकृति में तांबे का 90 फीसदी इस्तेमाल हुआ है। इसमें कभी जंग नहीं लगेगा। इसे स्थापित करने में दो महीने का वक्त लगा।
बीते सोमवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन की छत पर स्थापित अशोक स्तंभ की प्रतिकृति का अनावरण किया। इसे लेकर विवाद भी हो रहा है। हालांकि, इसे स्थापित करने वाले मूर्तिकार राजस्थान के लक्ष्मण व्यास कहते हैं कि यह प्रतिकृति सारनाथ में रखे गए अशोक स्तंभ जैसी ही है। अमर उजाला के साथ खास बातचीत में वे यह भी बताते हैं कि इस प्रतिकृति को स्थापित करना कितना चुनौतीपूर्ण था। तब दिल्ली में तापमान 45 से 50 डिग्री के बीच था। उनके कई साथी बीमार भी हुए, लेकिन राष्ट्रीय चिह्न को लेकर जुनून इस कदर था कि उनके साथियों ने तय वक्त में यह काम पूरा कर दिखाया। जानिए, इस प्रतिकृति और उसे स्थापित करने की प्रक्रिया से जुड़ी कुछ रोचक बातें...
लक्ष्मण व्यास बताते हैं कि प्रतिकृति बनाने का काम मुझे टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड की तरफ से मिला। यह डिजाइन मेरा नहीं है। डिजाइन मुझे टाटा के आर्टिस्ट से मिला। हमें मेटल कास्टिंग कर प्रतिमा को वहां स्थापित करने का जिम्मा मिला था। करीब 40 लोगों ने मिलकर इसे तैयार किया। इसमें पांच महीने लगे। इसका वजन 9620 किलोग्राम है।
चिलचिलाती धूप में 50 दिन की मेहनत
वे बताते हैं कि करीब 50 दिन हमने संसद की छत पर बिताए। 45-50 डिग्री से ज्यादा तापमान में हमने किया, कई साथी बीमार भी हुए, लेकिन जुनून और जज्बा अलग था। हमारी यही सोच थी कि हम देश के लिए यह काम कर रहे हैं और ईश्वर की दया से प्रतिकृति स्थापित हो गई। इसे इटैलिन लॉस्ट वैक्स प्रक्रिया के तहत तैयार किया गया। इसमें 150 टुकड़े थे। इसे संसद भवन की इमारत पर जाकर ही जोड़ा गया और वेल्डिंग की गई।
उन्होंने बताया कि हमारे लिए हर कृति एक चुनौती होती है। हमारा ध्येय रहता है कि हम पूरी कला को उसमें समाहित करें। जब यह प्रतिकृति भारत की सबसे बड़ी पंचायत में लगने वाली थी तो हमारी जिम्मेदारी बढ़ गई। इस प्रक्रिया में कई डिजाइनर, कई अधिकारी शामिल रहे, तब जाकर यह प्रतिकृति वहां स्थापित हो पाई।
'हम 36-36 घंटे सोए नहीं'
लक्ष्मण व्यास कहते हैं कि दिल्ली एयरपोर्ट पर हाथियों की प्रतिकृति और उदयपुर में 57 फीट की महाराणा प्रताप की प्रतिकृति हम लोगों ने ही बनाई थी। इस वजह से नए संसद भवन पर हमें मेटल कास्टिंग का यह काम मिला। इसमें 90 फीसदी कॉपर का इस्तेमाल हुआ है, इसमें कभी जंग नहीं लगेगी। 36-36 घंटे हम सोए नहीं, रात-दिन हमने वहां काम किया। इसे तैयार करते वक्त हम पर सरकार या टाटा की तरफ से कोई दबाव नहीं था। सीपीडब्ल्यूडी की तरफ से हमें पूरा सहयोग मिला। इतनी गर्मी में और इतनी ऊंचाई पर काम करने के बावजूद हमें पूरी सुरक्षा और सुविधाएं दी गईं। प्रधानमंत्री जी ने भी हमसे बात की और इस काम के लिए बधाई दी।
'यह सारनाथ में रखे अशोक स्तंभ की ही प्रतिकृति है'
प्रतिकृति से जुड़े विवाद पर व्यास कहते हैं कि कोई भी कुछ कहे तो मैं उस विवाद में नहीं जाना चाहता हूं। असल में प्रतिकृति का आकार काफी बड़ा है, इस वजह से शायद यह अलग लग रही होगी। मैं यही निवेदन करूंगा कि यह प्रतिकृति सारनाथ में लगे अशोक स्तंभ की ही है। राष्ट्रीय चिह्न की इतनी विशाल प्रतिकृति अब तक नहीं बनी थी। नीचे से तस्वीर लेने पर यह अलग दिखेगी। सामने से तस्वीर लेने पर वह एकदम सारनाथ जैसी दिखेगी। सारनाथ में रखे अशोक स्तंभ और इस प्रतिकृति में कोई फर्क नहीं है। अगर यही प्रतिकृति पचास फीट की बनती तो दांत और ज्यादा बड़े नजर आते।
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