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Amar Ujala shabd Samman Amazing duet between Sarod Vadak Ustad Amjad Ali Khan, Aman Ali Bangash And Ayan Ali
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अमर उजाला शब्द सम्मान 2022: फिजा में महकती रही सुरों की खुशबू, सरोद की लयकारी के बीच अद्भुत जुगलबंदी
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली।
Published by: देव कश्यप
Updated Tue, 31 Jan 2023 05:34 AM IST
सार
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उस्ताद अमजद अली खान के साथ अमान अली बंगश और अयान अली बंगश की साझी जुगलबंदी ने श्रोताओं को सरोद की अलहदा लयकारी और मीठी तंत्रकारी से परिचय कराया।
अमर उजाला शब्द सम्मान समारोह में विशेष प्रस्तुति देते प्रख्यात सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान, अरमान अली बंगश और अयान अली बंगश।
- फोटो : अमर उजाला
शब्द सम्मान समारोह के दूसरे चरण में पहुंचते ही उस्ताद अमजद अली खान की यह बात हकीकत में बदली नजर आई कि सुर और लय को सिर्फ महसूस किया जा सकता है। उस्ताद अमजद अली खान के साथ अमान अली बंगश और अयान अली बंगश की साझी जुगलबंदी ने श्रोताओं को सरोद की अलहदा लयकारी और मीठी तंत्रकारी से परिचय कराया। दर्शक सुर और ताल के उतार-चढ़ाव के बीच मंत्रमुग्ध होते चले गए। आखिरी दौर में, जब संगीत के तीनों धुरंधर एक साथ अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे थे, आनंद चरम पर पहुंचते ही पूरे हॉल ने अपने मनोभाव का इजहार तालियों की गड़गड़ाहट के बीच खड़े होकर किया।
संगीतमयी प्रस्तुति से दर्शक अवाक
सबसे पहली प्रस्तुति अमान अली बंगश और अयान अली बंगश की जुगलबंदी रही। दोनों भाइयों ने शुरुआत प्राचीन राग रागेश्वरी की दो रचनाओं से किया। तबले पर ईशान घोष और अणुव्रत चटर्जी की उंगलियों की थाप ने भी कमाल किया। दोनों भाइयों ने एक-एक कर सरोद और तबले की ताल से ताल मिलाया। अमान अली बंगश की सरोद से निकले सुर झपताल की 10 मात्राओं के साथ तारसप्तक तक की यात्रा कर रहे थे। उन्होंने सुरों की मधुरता को सरोद के नाद में पिरोया और राग की रंजकता को विस्तार दिया। फिर अयान अली बंगश ने भी इस विस्तार में अपने साज के सुर मिलाए। क्या आलाप, क्या जोड़, क्या झाला और क्या गतकारी, सबने श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। संगीत का यह संयोग रोमांचक रहा। सरोद की लय थमती तो भरपाई तबले की थाप से होती। तबला थमता तो उसकी जगह सरोद की धुन ले रही थी। करीब पांच मिनट तक चली संगीतमयी प्रस्तुति से दर्शक अवाक से थे।
श्रोताओं ने धुनों को तन्मयता के साथ महसूस किया
इसके बाद मंच पर उस्ताद अमजद अली खान का श्रोताओं ने स्वागत किया। उन्होंने बेहद समीचीन महात्मा गांधी के प्रिय भजन वैष्णव जन तो तेने कहिए... को सरोद के मीठे स्वरों पर उतारा। राग मिश्र खमाज में निबद्ध इस भजन की मूल रचना को बजाते वक्त उसके गायकी अंग को बखूबी सुनाया। वह मंद मंद सरोद को बजाते रहे और खुद के भीतर इस धुन को महसूस करते रहे। उनके साथ श्रोताओं ने भी इन धुनों को उतनी ही तन्मयता के साथ महसूस किया। उन्होंने रघुपति राघव राजा राम की धुन भी सुनाई।
और फिर वह पल आया जब अमजद अली खान ने वह धुन बजाई, जिसे वह अक्सर गुनगुनाते हैं। इसे उन्होंने गणेश वंदन नाम दिया है। फिर उनकी दोनों बेटों के साथ जुगलबंदी हुई। इस प्रस्तुति ने सभी को भावविभोर कर दिया।
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