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Amar Ujala Shabd Samman 2022: ‘आकाशदीप’ विजेता शेखर जोशी... समाज से अलग होकर लेखन का अस्तित्व नहीं हो सकता

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: Jeet Kumar Updated Sun, 29 Jan 2023 11:14 AM IST
सार

शब्दों की महान परंपरा के सतत सम्मान और श्रेष्ठतम सृजन को रेखांकित करते हुए इस बार शब्द सम्मान का सर्वोच्च अलंकरण ‘आकाशदीप’ हिंदी में शेखर जोशी को दिया जा रहा है। आइए पढ़ते हैं उनके द्वारा कहे गए कुछ अंश...

Amar Ujala Shabd Samman 2022, Akashdeep winner Shekhar Joshi said Writing can not exist apart from society
साहित्यकार शेखर जोशी - फोटो : अमर उजाला

विस्तार

बचपन में मां की मृत्यु के बाद जब मैं मामा के पास राजस्थान के केकड़ी कस्बे पहुंचा, तो वहां मुझे पुस्तकों के बीच सुमित्रानंदन पंत जी की एक पतली कविता की पुस्तक मिली थी- ‘उच्छवास’, जो उन्होंने अपने हस्ताक्षर के साथ किसी को भेंट की थी। उन कविताओं को पढ़कर मैं अभिभूत हो गया था। वर्ष 1955 में इलाहाबाद आने पर मैंने पाया कि व्हीलर बुक स्टॉल के मालिक ने पुरानी किताबों का एक विक्रय केंद्र सिविल लाइंस में खोला था। हर महीने वहां नई किताबों का स्टॉक आता था। मैंने वहां से बहुत कम दामों पर किताबें खरीदकर पढ़ीं।



देश में जो स्वतंत्रता आंदोलन का उभार हुआ था, उसका थोड़ा-बहुत संज्ञान उस पहाड़ी इलाके में हम लोगों को भी मिला। फिर दूसरे विश्वयुद्ध की विभीषिका भी प्रभावित कर गई, क्योंकि बहुत से जवान पहाड़ से फौज में गए थे, जो लौटे नहीं। पहाड़ की जो आर्थिक स्थिति थी, वह मनीऑर्डर संस्कृति से ही अपना जीवन चलाती थी। वे भले ही फौज वाले हों या मैदानी इलाकों में छोटी-मोटी या बड़ी नौकरियां करने वाले। फिर उत्तराखंड आंदोलन का बहुत बड़ा असर वहां के जनजीवन पर पड़ा। इसका असर मेरे लेखन पर भी पड़ा। समाज से अलग होकर लेखन का अस्तित्व नहीं हो सकता।


आप देखें तो पिछली सदी में सामूहिकता थी। इस दौर में या इस सदी में ये जो बहुमंजिली इमारतें और परिवारों का विघटन है, उससे लोग केवल अपने परिवार तक सीमित रह गए हैं। ऊंची-ऊंची इमारतों में जो फ्लैट हैं, वे जैसे गुफाएं हैं, इसके अंदर ही सीमित रहता है आदमी। वह सामाजिकता जो एक खुले समाज में थी, अब देखने में कम आती है। हालांकि लेखन पर ज्यादा समय नहीं दे पाया और दूसरी बात मेरे बहुत से अनुभव ऐसे हैं, जिनको लिपिबद्ध करना एक तरह से उस कुव्यवस्था को उजागर करना होता, जिसका कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है, लेकिन जो बहुत व्यापक रूप से सामाज में फैली हुई थी। आप कह सकते हैं कि मुझमें उतना साहस नहीं हुआ कि मैं उस कुव्यवस्था को अपनी रचनाओं में ले आऊं। मुख्य बात यही है कि मैं बहुत सार्थक किस्म की चीजें लिखना चाहता था।

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