मंडी। ब्यास नदी के तट पर बसे मंदिरों के शहर छोटी काशी के नाम से विख्यात मंडी में भगवान के घर पर अब भक्तों का कब्जा हो गया है। राज्यपाल के हस्तक्षेप पर विशेष दल ने मंडी का दौरा कर अपनी रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्य पेश किए हैं। 1527 में राजा अजबरसेन की ओर से बाबा भूतनाथ के मंदिर के साथ ही इस आधुनिक मंडी नगर की स्थापना के बाद यहां के हर गली मुहल्ले में किसी न किसी देवी देवता का मंदिर स्थापित होने की वजह से इसे छोटी काशी का नाम दिया गया। अपने समय की पाषाण वास्तु शिल्पकला के अद्वितीय नमूने इन मंदिरों पर लगातार बढ़ते शहर का भी असर पड़ा है। कभी स्लेटनुमा मकानों के ऊपर कहीं से भी मंदिरों के शिखर दिखाई देते थे। मगर अब मंदिरों के चारों ओर बने विशालकाय भवनों ने मंदिरों को ढांप कर रख दिया है। मंदिरों की परिक्रमाओं पर अब लोगों ने कब्जे कर रखे हैं। यहां तक कि मंदिर परिसरों में ही लोगों ने मकान बना कर कब्जे कर रखे हैं। अपने समय और काल के गवाह रहे इन मंदिरों के वजूद पर अब संकट के बादल मंडराने लगे हैं। मंदिर शांति, पवित्रता और आस्था के केंद्र माने रहे हैं मगर मंडी शहर के मंदिरों को देखकर आज ऐसा नहीं लगता है। नए दौर के भक्तजनों ने मंदिरों को शोर शराबे का केंद्र बना दिया है। रही सही कसर मंदिरों को रंग रोगन से पोत कर इनके असली स्वरूप को ही मिटा दिया है। अनाम कलाकारों की वास्तु कला को रंग के आवरण के नीचे ढांप दिया गया है। मंडी के अधिकांश मंदिरों का निर्माण 15वीं से 18वीं सदी के बीच हुआ है। अजबर सेन, सूरज सेन और सिद्धसेन जैसे राजाओं ने इन मंदिरों का निर्माण करवाया था जो इतिहास की धरोहर हैं। मगर आधुनिक भक्तों ने इस धरोहर को मिटाने का जैसे बीड़ा उठा रखा है। इधर, विशेष कार्यकारी अधिकारी मंदिर एवं सहायक निदेशक प्रेम प्रसाद पंडित जिन्होंने राज्यपाल उर्मिला सिंह के निर्देश पर मंडी के मंदिरों का जायजा लिया, का कहना है कि मंडी के मंदिरों की बहुत ही दयनीय हालत है। लोगों ने मंदिरों की परिक्रमाओं पर कब्जे कर रखे हैं। वहीं रंग रोगन कर इनके वास्तविक स्वरूप को ही बिगाड़ दिया है।