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कुल्लू। अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में शामिल हुए करीब एक दर्जन से अधिक देवी-देवता अपने देवालय की ओर लौट गए है। उत्सव के समापन पर शनिवार को देवी-देवताओं ने अगले साल फिर मिलने का वादा और लोगों को सुख शांति का आशीर्वाद देकर कूच किया। खोखण के आदि ब्रह्मा शनिवार दोपहर को ही देवालय की ओर निकले।
खोखण के आदि ब्रह्मा हर साल दशहरे के दूसरे दिन अपने देवालय जाते थे। लेकिन देवता को दोहरानाला में धाम के निमंत्रण पर जाना था। ऐसे में देवता दोपहर को चल पड़े। रथयात्रा के बाद देवी-देवताओं ने फिर मिलने का वादा कर अपने देवालय की ओर प्रस्थान किया। देवताओं का यह देवमिलन देखने के लिए शनिवार को ढालपुर में लोगों की भीड़ उमड़ी। गौर रहे कि इस बार दशहरा उत्सव कमेटी की ओर से देवताओं को निमंत्रण नहीं दिया गया था। महज सात देवताओं को उत्सव में आने के लिए कहा गया था। लेकिन पांच देवता बाद में स्वयं आ गए। ऐसे में इस बार सिर्फ एक दर्जन देवी-देवताओं ने ही दशहरे की शोभा बढ़ाई है। सात दिनों तक भगवान रघुनाथ की चाकरी करने के बाद उत्सव के समापन के साथ अठारह करड़ू की सौह अब देवताओं के बिना सूनी पड़ गई है। सुबह-शाम वाद्य यंत्रों की धुनों से ढालपुर मैदान गूंज रहा था। लेकिन अब एक साल तक मैदान सूना ही रहेगा। जिला देवी-देवता कारदार संघ के महासचिव नारायण चौहान ने कहा कि इस बार का दशहरा अलग रूप से हुआ है।
कुल्लू। अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में शामिल हुए करीब एक दर्जन से अधिक देवी-देवता अपने देवालय की ओर लौट गए है। उत्सव के समापन पर शनिवार को देवी-देवताओं ने अगले साल फिर मिलने का वादा और लोगों को सुख शांति का आशीर्वाद देकर कूच किया। खोखण के आदि ब्रह्मा शनिवार दोपहर को ही देवालय की ओर निकले।
खोखण के आदि ब्रह्मा हर साल दशहरे के दूसरे दिन अपने देवालय जाते थे। लेकिन देवता को दोहरानाला में धाम के निमंत्रण पर जाना था। ऐसे में देवता दोपहर को चल पड़े। रथयात्रा के बाद देवी-देवताओं ने फिर मिलने का वादा कर अपने देवालय की ओर प्रस्थान किया। देवताओं का यह देवमिलन देखने के लिए शनिवार को ढालपुर में लोगों की भीड़ उमड़ी। गौर रहे कि इस बार दशहरा उत्सव कमेटी की ओर से देवताओं को निमंत्रण नहीं दिया गया था। महज सात देवताओं को उत्सव में आने के लिए कहा गया था। लेकिन पांच देवता बाद में स्वयं आ गए। ऐसे में इस बार सिर्फ एक दर्जन देवी-देवताओं ने ही दशहरे की शोभा बढ़ाई है। सात दिनों तक भगवान रघुनाथ की चाकरी करने के बाद उत्सव के समापन के साथ अठारह करड़ू की सौह अब देवताओं के बिना सूनी पड़ गई है। सुबह-शाम वाद्य यंत्रों की धुनों से ढालपुर मैदान गूंज रहा था। लेकिन अब एक साल तक मैदान सूना ही रहेगा। जिला देवी-देवता कारदार संघ के महासचिव नारायण चौहान ने कहा कि इस बार का दशहरा अलग रूप से हुआ है।