कुल्लू। आधुनिकता की चकाचौंध में टेंशन भरी जिंदगी और रिश्तों के घटते मायनों को दर्शाता ‘आत्महत्या की दुकान’ नाटक में दर्शकों की खूब भीड़ जुटी। नाट्य उत्सव कुल्लू रंग मेले की सातवीं संध्या में मंचित इस नाटक में कलाकारों ने अपने अभिनय से हर पात्र को सजीव कर दिया। लाल चंद प्रार्थी कलाकेंद्र में प्रदर्शित इस नाटक में एक्टिव मोनाल कल्चरल एसोसिएशन कुल्लू के कलाकारों ने दमदार संवाद अदायगी से दर्शकों के जहन में गहरी छाप छोड़ी। आशा वर्मा द्वारा लिखित इस नाटक का निर्देशन केहर सिंह ठाकुर ने किया।
हास्य व्यंग्य से भरपूर इस नाटक का आगाज अटपटे लाल उर्फ एटीपी की बाजार में सजी आत्महत्या की दुकान से होता है। आत्महत्या करने के सामान दुकान भरी पड़ी है। लेकिन एटीपी यह सामान ग्राहकों को नहीं बेचता। ग्राहक आते हैं, एटीपी उनकी आत्महत्या की वजह जानकर उनमें जीने की ललक और उत्साह पैदा करता है। इस बीच पुलिस का दरोगा और सिपाही दुकान में आ धमकते हैं। बिना लाइसेंस दुकान खोलने पर एटीपी के चालान की बात कहते हैं लेकिन ग्राहक एटीपी के बचाव में आ जाते हैं।
नाटक के बीच एक किस्सा युवाओं पर भी केंद्रित किया है। डॉली एक लड़के से शादी न होने पर मरने जा रही है। इसी मकसद से वह आत्महत्या की दुकान पर पहुंचती है। लेकिन एटीपी उसेे बताता है कि जिस लड़के के खातिर वह जान देने को तैयार है वह धोखेबाज है। इसके बाद मां-बाप के कहने पर एक अच्छे घर में डॉली का रिश्ता होता है। एक लड़का-लड़की दुकान पर आत्महत्या का सामान खरीदने पहुंचते हैं लेकिन एटीपी के सुझाव पर दोनों विवाह सूत्र में बंध जाते हैं। यह सारे किस्से सुनने के बाद भी दरोगा, एटीपी को गिरफ्तार करना चाहता है। इस पर जिंदगी की नई रोशनी पा चुके तमाम लोग गवाही देते हैं कि यह आत्महत्या की दुकान नहीं बल्कि मैरिज ब्यूरो है।
नाटक में कवि की भूमिका दीन दयाल, डॉली डिंपल, अधेड़ के किरदारों को श्याम, शीला और भूषण ने अदा किया। फोकट के रूप में कुलदीप, मंजनू के रूप में जस्सी, सिपाही के रूप में लेख राज तथा मिसेज एटीपी के रूप में साक्षी ने दर्शकों का मनोरंजन किया। प्रकाश व्यवस्था और पार्श्व संगीत का संचालन राकेश ने किया।