केलांग। भारत-चीन युद्ध के बाद सीमांत में क्षेत्रों में बिगडे़ शिक्षण और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी ढांचे को फिर से पटरी पर लाने के लिए अहम भूमिका निभाने वाले महिला कर्मचारियों की कोई सुनवाई नहीं है।
हिमाचल के जनजातीय क्षेत्रों में तैनात ऐसे ही करीब बाइस कर्मचारियों को पिछले सात साल से वेतन तक नहीं दिया जा रहा है। भारत-चीन युद्ध के बाद सीमांत क्षेत्रों में स्वास्थ्य और शिक्षा की हालत पटरी से उतर गई। इन क्षेत्रों की महिलाओं और शिशुओं को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए राज्य और केंद्रीय सरकारों की सांझा आर्थिक मदद से 1964 में कल्याण विस्तार परियोजना नाम से एक कार्यक्रम की शुरूआत की गई। बालवाड़ी केंद्र, प्रोढ़ शिक्षा केंद्र, बाल आहार योजना टीकाकरण, लघु बचत और सिलाई प्रशिक्षण केंद्रों के जरिए युद्ध प्रभावित सीमांत क्षेत्रों में जिंदगी की गाड़ी को फिर से पटरी पर लाने के लिए अहम भूमिका निभाई।
दुर्भाग्वश केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड ने अप्रैल 2005 में इस परियोजना को बंद करते हुए यहां तैनात कर्मियों को राज्य सरकाराें के अधीन समेकित बाल विकास परियोजना और अन्य संबंधित विभागों में समायोजित करने के निर्देश जारी किए। केंद्र सरकार के निर्देशानुसार हालांकि कई राज्यों नेे ऐसे कर्मियों को साल 2006 में ही समेकित बाल कल्याण योजना विभाग में समायोजित कर दिया हैं। हिमाचल में ऐसा न हो सका।
तीस साल की सेवा देने वाली मुख्य सेविका बीना देवी और बाल सेविका छिमे देवी बताती हैं कि स्थानीय महिलाओं और उनके शिशुओं को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए अपनी पूरी जवानी कुर्बान कर दी। अब केंद्र ओर राज्य की सरकाराें ने उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया है। प्रेमलाल कहते हैं कि सरकार ने उन्हें ऐसे मोड़ पर लेकर छोड़ दिया है, जहां पर रोजगार को अब उनके लिए कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है।
उधर, सामाजिक एवं अधिकारिता मंत्री सरवीण चौधरी ने कहा कि मामला राज्य सरकार के पास विचाराधीन है। जल्द ही इस पर निर्णय लिया जाएगा।