फतेहपुर (कांगड़ा)। बेशक सरकार शिक्षा के क्षेत्र मेें हर वर्ष करोड़ों खर्च कर रही है। बावजूद इसके सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या नहीं बढ़ पा रही है। सरकारी स्कूलों में बच्चों को दी जी रही मुफ्त वर्दी, मुफ्त खाना, किताबें तथा अन्य योजनाएं भी बच्चों को अपनी ओर खींचने में नाकाम साबित हो रही हैं। लोगों का सरकारी स्कूलों के बजाय निजी स्कूलों की तरफ रुझान बढ़ता जा रहा है। शिक्षा खंड फतेहपुर के सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या में हर वर्र्ष गिरावट आ रही है।
पिछले 4 वर्षों के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो खंड फतेहपुर के सरकारी स्कूलों में 2009-10 सत्र में बच्चों की संख्या 3188, 2010-11 सत्र में 2839, 2011-12 में 2636 और इस सत्र में अभी तक बच्चों की संख्या 2594 रह गई है। शिक्षा खंड फतेहपुर में मौजूदा समय में 87 प्राथमिक स्कूल हैं। इनमें करीब 1 दर्जन स्कूल 15 का आंकड़ा भी नहीं छू पाए हैं। वहीं पिछले वर्ष शिक्षा विभाग को खंड फतेहपुर के तहत पड़ते कुछ स्कूलों को बच्चों की संख्या 10 से कम होने के कारण बंद करना पड़ा था। वहीं इस वर्ष भी कुछ स्कूलों में बच्चों की संख्या कम होने के कारण तलवार लटकती नजर आ रही है। वहीं शिक्षा खंड अधिकारी फतेहपुर करतार सिंह ने भी बच्चों की संख्या में कमी को लेकर पुष्टि की है।
अभिभावकों का तर्क
अभिभावक उत्तम सिंह पठानिया, उमेश शर्मा, सुरेंद्र राणा, तृप्ता देवी, ज्योत्सना, रानी, अनीता, मनोज आदि का कहना है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ा रहे अध्यापकों के बच्चे निजी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। ऐसे में सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता पर सवाल उठना लाजिमी है। जब तक सरकारी स्कूलों के अध्यापक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाएंगे। तब तक लोगों का सरकारी स्कूलों पर विश्वास कायम नहीं हो सकेगा। उन्होंने कहा कि सरकार को इस संदर्भ में सरकारी अध्यापकों को निर्देश देने चाहिए।