चंबा। हिमाचल इलेक्ट्रोहोमियोपैथिक चिकित्सक संघ एवं राबिसन इंडिया इलेक्ट्रोहोमियो फार्मा चंबा के एक्सपर्ट डा. संजीव शर्मा ने कहा कि चंबा के इतिहास में एक और उपलब्धि जुड़ने जा रही है। इटली के बाद जिला चंबा का नाम इलेक्ट्रोहोमियोपैथिक रिसर्च में विश्व के मानचित्र पर नजर आएगा। उन्होंने कहा कि इलैक्ट्रोहोमियोपैथी एक पूर्ण वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति है। इसकी खोज वर्ष 1865 में इटली के विद्वान डा. काउंट सीजर मैडी ने की थी। भारत में यह वर्ष 1885 से प्रचारित हो रही है। हाल ही में केंद्र सरकार ने इस पद्धति के प्रशिक्षित उपाधि धारकों को देश में स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस करने और अनुसंधान एवं शैक्षणिक गतिविधियां संचालित करने की अनुमति दे दी है।
डा. शर्मा ने बताया कि पहले इस पद्धति की जड़ी-बूटियों के लिए इटली पर निर्भर रहना पड़ता था, मगर उनकी रिसर्च के चलते अब इससे भी अधिक प्रभावी और बिल्कुल वैसी ही जड़ी-बूटियां चंबा में पाई गई हैं। उन्होंने कहा कि इसका प्रमाण खुद इटली के वैज्ञानिक भी हासिल कर चुके हैं। वर्ष 2011 में इटली की विशेषज्ञ टीम ने अपने उपकरण से जो टेस्ट किए हैं, उनसे चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इनके अनुसार इटली की तुलना में चंबा में इन औषधीय पौधों की गुणवत्ता 72 फीसदी के मुकाबले 96 फीसदी पाई गई है। उन्होंने कहा कि यह बात साबित हो चुकी है कि चंबा और इटली के पर्यावरण और वनस्पति में काफी समानता है। उत्तर प्रदेश से आए एक्सपर्ट डा. रिहान उल हुडा ने बताया कि पहले इस पद्धति की औषधि बनाने के लिए जड़ी बूटी इटली या अन्य बाहरी देशों से पौधे मंगवानी पड़ती थी। वे भी सूखे होने के कारण गुणवत्ता नहीं थी। उन्होंने कहा कि अब चंबा में ही ये पौधे मिल गए हैं। लिहाजा यहां ग्रीन पौधे मिलने से दवा ज्यादा प्रभावी होगी। उन्होंने बताया कि इसी संबंध में देश के हर राज्य से एक प्रतिनिधि को 20 मई से शुरू हो रही वर्कशाप में भाग लेने के लिए बुलाया गया है। उन्होंने कहा कि इस पांच दिवसीय वर्कशाप में इन लीडर्स को चंबा के वन क्षेत्र में औषधीय पौधे दिखाने के अलावा अन्य प्रकार की रिसर्च की जानकारी दी जाएगी। इस अवसर पर मौजूद डा. सुरेंद्र ठाकुर ने बताया कि इस कार्यशाला में 60 प्रतिनिधि भाग लेंगे। इनमें 17 प्रदेशों के विशेषज्ञ शामिल हैं। ये विशेषज्ञ यहां से ट्रेनिंग लेकर अपने राज्य में प्रशिक्षण देंगे। इस अवसर पर डा. सपना शर्मा भी मौजूद थीं।