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Dengue, Malaria treatment is being done by dental surgeon, PHC building is waiting for doctor
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Yamuna Nagar News: दांतों का सर्जन कर रहा डेंगू, मलेरिया का उपचार तो कहीं पीएचसी भवन को डाक्टर का इंतजार
यमुनानगर। गांवों में पीएचसी (प्राइमरी हेल्थ सेंटर) इसलिए खोले गए थे ताकि गांव स्तर पर ही लोगों को उपचार मिल सके। लोगों को उपचार कराने के लिए शहर के चक्कर न काटने पड़े। लेकिन जिले के अधिकांश प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों का भारी टोटा बना हुआ है। बिना डाक्टरों के पीएचसी केवल दिखावा बनकर रह गए हैं। हालात यह हैं कि कुछ अस्पतालों में डेंटल सर्जन वायरल, डेंगू व मलेरिया से पीड़ित मरीजों का भी उपचार कर रहे हैं।
करोड़ों रुपये की लागत से तैयार की गईं पीएचसी को इंतजार है कि कब कोई डाक्टर आए और दरवाजे पर लगे ताले को खोले। जिले के सभी पीएचसी में डाक्टरों के स्वीकृत 30 पदों में से 14 पद रिक्त हैं। जिले के गांव हैबतपुर, मुगलवाली, साबेपुर, बूड़िया, कलानौर, अलाहर, अंटावा, भंभौल, अरनौली, खारवन, कोट, खदरी, रसूलपुर, रणजीतपुर, मोहड़ी में स्वास्थ्य विभाग की तरफ से पीएचसी खोली गई हैं। इनमें मेडिकल ऑफिसर के 30 पद स्वीकृत हैं। जिनमें से केवल 16 ही एमओ हैं बाकी 14 पद रिक्त पड़े हैं।
डेंटल सर्जन के भरोसे के भरोसे चल रही पीएचसी कोट
छछरौली। कोट पीएचसी में दो मेडिकल ऑफिसर की पोस्ट है और दोनों ही अरसे से खाली हैं। डेंटल सर्जन यहां लोगों का उपचार कर रहे हैं। डेंगू, मलेरिया, वायरल समेत सभी बीमारियों के मरीजों को वहीं देखते हैं। अस्पताल में स्टाफ नर्स के दो व लैब टेक्नीशियन का एक पद भी खाली है। एमपीएचडब्ल्यू मैन के छह रेगुलर पदों में से पांच खाली पड़े हैं। कोट पीएचसी के भवन निर्माण में सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च किए हैं।
लोगों का कहना है कि सरकार ने भवन पर तो करोड़ों रुपये खर्च कर दिए, लेकिन बिना डॉक्टरों, नर्स व लैब टेक्नीशियन के यह भवन बेकार है। यहां से शहर की दूरी भी लगभग 30 किलोमीटर है। ऐसे में सबसे ज्यादा समस्या महिलाओं को होती है। महिलाओं के डिलीवरी हो या प्रसव पीड़ा के दौरान कोट पीएचसी में स्टाफ न होने से उन्हें शहर में रेफर कर दिया जाता है। एसएमओ डॉ. जितेंद्र का कहना है कि कोर्ट पीएचसी में स्टाफ की कमी को लेकर विभाग के उच्च अधिकारियों को लिखा हुआ है।
झेलनी पड़ रही काफी परेशानी
वाजिद खान का कहना है कि कोट पीएचसी में मेडिकल ऑफिसर न होने की वजह से बहुत परेशानी होती है। घाड़ क्षेत्र के करीब एक दर्जन गांव पीएचसी कोट के ऊपर निर्भर हैं। मरीजों को दवाई के लिए शहर की तरफ भागदौड़ करनी पड़ रही है।
सीएचसी और ट्रामा सेंटर रेफर किया जाता मरीजों को
शालिम जैतपुर का कहना है कि कोट पीएचसी में डाक्टरों की कमी के कारण छोटी मोटी चोट के मरीजों को भी सीएचसी या ट्रामा सेंटर रेफर किया जाता है। सबसे ज्यादा परेशानी रात के समय होती है।
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सफेद हाथी बनकर रह गया 3.61 करोड़ से बना भवन
जठलाना। क्षेत्र के गांव मोहड़ी में नई पीएचसी करीब तीन करोड़ 61 लाख रुपये से बनाई गई थी। यह भवन चिकित्सकों के अभाव में आजकल पशुओं व शरारती तत्वों का अड्डा बनी हुई है। शरारती तत्वों ने यहां कई खिड़कियों के कांच तोड़ दिए। दरवाजे उखाड़ दिए हैं। भवन परिसर घास उगी हुई है। पूरा परिसर पशुओं के गोबर से सना पड़ा है।
लोगों नहीं मिल रहा है उपचार
गांव मोहड़ी के शराफत खान का कहना है कि यहां पीएचसी के भवन का निर्माण शुुरू हुआ तो उन्हें आस जगी कि अब उन्हें इलाज के लिए दूर दराज के एरिया के धक्के नहीं खाने पडे़ंगे। पीएचसी की बिल्डिंग तो बन गई, लेकिन पीएचसी का लाभ नहीं मिल रहा।
आसपास में नहीं है कोई अस्पताल
गांव मोहड़ी के लक्ष्मण दास का कहना है कि आस-पास दूसरा सरकारी व प्राइवेट अस्पताल नहीं है। यहां इलाज न मिलने पर उन्हें रादौर या फिर नाहरपुर सीएचसी में जाना पड़ता है।
तार हटते ही टेकओवर करेंगे: डॉ. विजय
रादौर एसएमओ डॉ. विजय परमार का कहना है कि बिल्डिंग के पास से गुजर रही हाइटेंशन बिजली के तार को हटाने, भवन में बिजली कनेक्शन देने व कुछ छोटे-छोटे कार्य पूरे करने के लिए पीडब्ल्यूडी को पत्र लिखा हुआ है। जब यह कार्य पूरे होंगे तो विभाग भवन को अपने अधीन ले लेगा। जिसके बाद यहां स्टाफ की नियुक्ति करा दी जाएगा और लोगों को बेहतर चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।
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