यमुनानगर। वयोवृद्घ स्वतंत्रता सेनानी कैप्टन रामनाथ शर्मा भ्रष्टाचार को देश का सबसे बड़ा दुश्मन मानते है। कैप्टन शर्मा उम्र के सौवें दशक में प्रवेश करने वाले हैं। 89 साल की उम्र में भी वह तंदरुस्त हैं और अपने दैनिक कार्य खुद करते हैं। पैदल चलना, अखबार पढ़ना और न्यूज चैनल देखना उनकी दिनचर्या में शामिल है। भ्रष्टाचार पर उनका मन खिन्न हो जाता है। आजादी के पहले दिनों को याद करते हुए वह कहते हैं कि उस जमाने में देशभक्ति का जज्बा और इमानदारी हर इंसान में थी। आजादी के बाद भी ये गुण देश वासियों में रहे और सबने देश की तरक्की का सपना देखा लेकिन आज तो फिजा ही बदल गई है। वे कहते हैं कि आज देश को बाहरी दुश्मनाें से ज्यादा भीतर के गद्दारों से खतरा है। यदि देश से भ्रष्टाचार खत्म हो जाए तो देश और देशवासियों की तरक्की को कोई रोक नहीं सकता। इसके लिए देश के हर नागरिक को इमानदार बनना होगा। कैप्टन शर्मा ने अपने बेटे और पौत्र को भी अच्छाई की राह पर चलने की शिक्षा दी। उनके बेटे का निधन हो चुका है और पौत्र मर्चेंट नेवी में है।
विश्व युद्ध और देश के लिए लड़ी तीन लड़ाइयां
कैप्टन रामनाथ शर्मा जब 18 साल के थे तो उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में हिस्सा लिया। उन्होंने छह साल तक वर्मा, रंगून और जापान में लड़ाई लड़ी। विश्व युद्ध के बाद वह वापस भारत आ गए। देश आजाद होने के बाद वह भारतीय फौज का हिस्सा बन गए। देश के विभाजन के समय छिड़े युद्ध के कारण वह कई साल तक जम्मू-कश्मीर में अपनी 16 फील्ड रेजिमेंट के साथ रहे। 1962 में चीन के साथ युद्ध छिड़ा तो वे भारत-चीन सीमा पर लड़ाई के लिए पहुंच गए और तीन साल तक वहां रहे। 1965 में भारत-पाक एक बार फिर आमने-सामने हुए तो कैप्टन शर्मा जम्मू-कश्मीर बार्डर पर आ गए। सीमा पर तैनाती के दौरान ही 1971 में एक बार फिर भारत-पाक में युद्घ छ़िड़ गया और कैप्टन शर्मा ने इस लड़ाई में भी हिस्सा लिया। कैप्टन शर्मा ने सेना में अपनी 32 साल की सर्विस के दौरान 26 साल लड़ाई के मैदान में गुजारे। इस दौरान उन्हें सेना ने प्रतिष्ठित वीर चक्र सहित अन्य 13 मेडल से नवाजा।
यमुनानगर। वयोवृद्घ स्वतंत्रता सेनानी कैप्टन रामनाथ शर्मा भ्रष्टाचार को देश का सबसे बड़ा दुश्मन मानते है। कैप्टन शर्मा उम्र के सौवें दशक में प्रवेश करने वाले हैं। 89 साल की उम्र में भी वह तंदरुस्त हैं और अपने दैनिक कार्य खुद करते हैं। पैदल चलना, अखबार पढ़ना और न्यूज चैनल देखना उनकी दिनचर्या में शामिल है। भ्रष्टाचार पर उनका मन खिन्न हो जाता है। आजादी के पहले दिनों को याद करते हुए वह कहते हैं कि उस जमाने में देशभक्ति का जज्बा और इमानदारी हर इंसान में थी। आजादी के बाद भी ये गुण देश वासियों में रहे और सबने देश की तरक्की का सपना देखा लेकिन आज तो फिजा ही बदल गई है। वे कहते हैं कि आज देश को बाहरी दुश्मनाें से ज्यादा भीतर के गद्दारों से खतरा है। यदि देश से भ्रष्टाचार खत्म हो जाए तो देश और देशवासियों की तरक्की को कोई रोक नहीं सकता। इसके लिए देश के हर नागरिक को इमानदार बनना होगा। कैप्टन शर्मा ने अपने बेटे और पौत्र को भी अच्छाई की राह पर चलने की शिक्षा दी। उनके बेटे का निधन हो चुका है और पौत्र मर्चेंट नेवी में है।
विश्व युद्ध और देश के लिए लड़ी तीन लड़ाइयां
कैप्टन रामनाथ शर्मा जब 18 साल के थे तो उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में हिस्सा लिया। उन्होंने छह साल तक वर्मा, रंगून और जापान में लड़ाई लड़ी। विश्व युद्ध के बाद वह वापस भारत आ गए। देश आजाद होने के बाद वह भारतीय फौज का हिस्सा बन गए। देश के विभाजन के समय छिड़े युद्ध के कारण वह कई साल तक जम्मू-कश्मीर में अपनी 16 फील्ड रेजिमेंट के साथ रहे। 1962 में चीन के साथ युद्ध छिड़ा तो वे भारत-चीन सीमा पर लड़ाई के लिए पहुंच गए और तीन साल तक वहां रहे। 1965 में भारत-पाक एक बार फिर आमने-सामने हुए तो कैप्टन शर्मा जम्मू-कश्मीर बार्डर पर आ गए। सीमा पर तैनाती के दौरान ही 1971 में एक बार फिर भारत-पाक में युद्घ छ़िड़ गया और कैप्टन शर्मा ने इस लड़ाई में भी हिस्सा लिया। कैप्टन शर्मा ने सेना में अपनी 32 साल की सर्विस के दौरान 26 साल लड़ाई के मैदान में गुजारे। इस दौरान उन्हें सेना ने प्रतिष्ठित वीर चक्र सहित अन्य 13 मेडल से नवाजा।