तोशाम (भिवानी)। ‘खाणा कितणी देर में बणै मन्ने गैस की चिंता ना होती। म्हारै तो घर की ए गैस एजेंसी सै। हमनैं नहीं बेरा कितनी गैस खर्च होवै और गैस सिलेंडर के कितणे दाम बढैं सैं।’ यह कहना है, बायोगैस का इस्तेमाल कर रहे किसान राजेश की पत्नी लखपति का। लखपति बॉयोगैस प्लांट के जरिये उसकी रसोेई तक पहुंचने वाली गैस पर ही खाना पकाती हैं। वहीं, बॉयोगैस प्लांट गैस देने के साथ ही उसमें इस्तेमाल हो रहे गोबर से केचुआ खाद तैयार करता रहता है, जो राजेश को खेत में लगाए गए किन्नू के पौधों में लाभदायक साबित हो रही है।
तोशाम-बवानीखेड़ा मार्ग पर सड़क किनारे राजेश ने अपने खेत में अपना घर बनाया हुआ है। राजेश ने एक साल पहले नेशनल बॉयोगैस एंड मैम्योर मैनेजमेंट प्रोग्राम के तहत बॉयोगैस प्लांट लगाया था, जो सुचारू रूप से चल रहा है। प्लांट में राजेश अपने आधा दर्जन पशुओं के गोबर का इस्तेमाल करते हैं। यहां से बनने वाली गैस का सीधा कनेक्शन राजेश के घर की रसोई तक है, जहां यह गैस खाना बनाने में मदद करती है।
कृषि विभाग के अनुसार, बायोगैस प्लांट पर आठ से साढ़े 13 हजार रुपए तक की सब्सिडी किसान ले सकते हैं, जबकि प्लांट लगाने पर खर्च करीब 15 से 16 हजार रुपए तक आता है। तीन साल में तोशाम क्षेत्र में 30 से अधिक किसानों ने अपने खेतों में बायोगैस प्लांट लगाए हैं। हर साल आने वाली स्कीम में किसान पहले आओ पहले पाओ के हिसाब से इस योजना का लाभ उठा सकते हैं। कृषि विकास अधिकारी डा. सतेंद्र ओला ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग का असर सबसे ज्यादा खेती पर पड़ रहा है। अगर किसान बायोगैस प्लांट लगाएं तो मीथेन गैस का उत्सर्जन नहीं होगा और खाना बनाने के लिए गैस के साथ-साथ खरपतवार के बीज रहित खाद भी तैयार होगी।
तोशाम (भिवानी)। ‘खाणा कितणी देर में बणै मन्ने गैस की चिंता ना होती। म्हारै तो घर की ए गैस एजेंसी सै। हमनैं नहीं बेरा कितनी गैस खर्च होवै और गैस सिलेंडर के कितणे दाम बढैं सैं।’ यह कहना है, बायोगैस का इस्तेमाल कर रहे किसान राजेश की पत्नी लखपति का। लखपति बॉयोगैस प्लांट के जरिये उसकी रसोेई तक पहुंचने वाली गैस पर ही खाना पकाती हैं। वहीं, बॉयोगैस प्लांट गैस देने के साथ ही उसमें इस्तेमाल हो रहे गोबर से केचुआ खाद तैयार करता रहता है, जो राजेश को खेत में लगाए गए किन्नू के पौधों में लाभदायक साबित हो रही है।
तोशाम-बवानीखेड़ा मार्ग पर सड़क किनारे राजेश ने अपने खेत में अपना घर बनाया हुआ है। राजेश ने एक साल पहले नेशनल बॉयोगैस एंड मैम्योर मैनेजमेंट प्रोग्राम के तहत बॉयोगैस प्लांट लगाया था, जो सुचारू रूप से चल रहा है। प्लांट में राजेश अपने आधा दर्जन पशुओं के गोबर का इस्तेमाल करते हैं। यहां से बनने वाली गैस का सीधा कनेक्शन राजेश के घर की रसोई तक है, जहां यह गैस खाना बनाने में मदद करती है।
कृषि विभाग के अनुसार, बायोगैस प्लांट पर आठ से साढ़े 13 हजार रुपए तक की सब्सिडी किसान ले सकते हैं, जबकि प्लांट लगाने पर खर्च करीब 15 से 16 हजार रुपए तक आता है। तीन साल में तोशाम क्षेत्र में 30 से अधिक किसानों ने अपने खेतों में बायोगैस प्लांट लगाए हैं। हर साल आने वाली स्कीम में किसान पहले आओ पहले पाओ के हिसाब से इस योजना का लाभ उठा सकते हैं। कृषि विकास अधिकारी डा. सतेंद्र ओला ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग का असर सबसे ज्यादा खेती पर पड़ रहा है। अगर किसान बायोगैस प्लांट लगाएं तो मीथेन गैस का उत्सर्जन नहीं होगा और खाना बनाने के लिए गैस के साथ-साथ खरपतवार के बीज रहित खाद भी तैयार होगी।