हाड़ तोड़ मेहनत करने के बाद किसान बड़ी उम्मीद के साथ मंडी में धान लेकर आ रहा लेकिन फसल का सरकारी रेट न मिलने से सिर्फ निराशा हाथ लग रही। हालात ये हैं कि मजबूरन उसे धान इतना सस्ता बेचना पड़ रहा कि प्रति एकड़ दस हजार रुपये तक का घाटा झेल रहा है। तमाम खर्च और धान से होने वाली आमदन को जोड़कर देखा गया तो किसान के हिस्से केवल नुकसान ही आ रहा है। यह स्थिति जिले के केवल एक किसान की नहीं बल्कि ज्यादातर की है। ज्यादा खराब स्थिति उन किसानों की है जिन्होंने जमीन ठेके पर ले रखी है।
जिले में औसतन प्रति एकड़ जमीन का 40 से 45 हजार रुपये का ठेका है। एक एकड़ में धान उगाने में किसान के कम से कम 10 से 12 हजार रुपये खर्च हो रहे हैं, जबकि प्रति एकड़ में पीआर धान 22 से 25 क्विंटल निकलती है। इस धान का सरकारी रेट लगाने पर कीमत 45 हजार रुपये के करीब बनती है। ऐसे में ठेके पर जमीन लेने वाले किसान फिर से कर्जदार में डूब रहे हैं। जिन किसानों की खुद की जमीन है, उनको जरूर कुछ राहत है।
एक एकड़ का खर्च
बीज : 1000
पौध तैयार : 1000
लगवाई : 3000
खाद डीएपी एक कट्टा-1250
डीएपी तीन कट्टे 270 गुमा 3 : 810
कीटनाशक तीन सप्रे : 1500
बिजली बिल :1000
मंडी में धान लाना..1000
डीजल पेट्रोल : 1000
कुल खर्च : 10560
नोट : इसमें किसान की मेहनत को नहीं जोड़ा गया है।
बोले-गठजोड़ पड़ रहा भारी
अमर उजाला की टीम ने अनाज मंडी और खेतों का मुआयना कर जानने की कोशिश की आखिरकार क्यों धान कम रेट पर बिक रही और किसान कर्ज तले दब रहा है। तो किसानों ने बताया कि एमएसपी के बावजूद पूरा रेट नहीं मिल रहा है। मार्केट कमेटी, डीएफएससी, आढ़ती और मिलर्स की मिलीभगत हम पर भारी पड़ रही है। किसानों का आरोप है कि अव्वल तो सरकारी खरीद होती नहीं है, होती है तो नमी का बहाना बना सस्ते रेट पर मिलर्स को दिया जाता है। बलड़ी के किसान विकास कुमार, घोघड़ीपुर से अरविंद कुमार समेत कई किसानों ने बताया कि मंडी में सुचारु खरीद का कोई सिस्टम नहीं है। गेट पास से लेकर बिक्री तक सिफारिश या लेनदेन से हो रही है।
नमी के नाम पर चल रहा खेल
मंडी में कट के नाम पर भी खेल चल रहा है। नमी बताकर किसान से सस्ते दाम पर धान खरीदकर पूरे पैसे सरकार से लिये जाते हैं। मिलर्स का तर्क होता है कि अभी नमी ज्यादा है जब सूख जाएगी तो वजन कम होगा, इसलिए कट के पैसे काटे जाते हैं। मंडी आए किसान सुनील सिंह की धान 1800 रुपये के हिसाब से बिकी जबकि आढ़ती ने उसका पर्चा सरकारी रेट 1888 का ही काटा। ऐसे में सरकार ने फसल का पूरा दाम दिया लेकिन वह आढ़ती और मिलर्स में बंट गया। यह खेल जिलेभर की मंडियों में चल रहा है।
सीएम साहब, ऐसे तो ठेका भी पूरा नहीं होता
नरूखेड़ी के किसान जसवंत की घर के पास पांच एकड़ जमीन है। दो एकड़ ठेके पर ली है जिसका रेट 45 हजार रुपये प्रति एकड़ है। धान का प्रति एकड़ खर्च 10 से 12 हजार रुपये है। जब मंडी में धान लेकर आया तो खरीदार नहीं मिला। कोई मिल भी गया तो सरकारी रेट नहीं देता। किसान ने कहा-सीएम साहब ऐसे तो किसान का जमीन का ठेका भी पूरा नहीं होता। कम से कम सरकारी रेट दिला दो। जसवंत ने कहा कि यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में लोग खेती छोड़ देंगे। उसने बताया कि अभी से वह कर्जदार हो रहा है तो आगे गेहूं की बिजाई करनी है, उसके लिए भी कर्ज उठाना पड़ेगा।
हेल्प डेस्क क्यों नहीं : रतन मान
भाकियू प्रदेशाध्यक्ष रत्न मान का कहना है कि किसानों को न तो मोबाइल की जानकारी है न पोर्टल की। वे इधर से उधर चक्कर लगाते हैं। प्रशासन मंडी में हेल्प डेस्क स्थापित करे। जो किसानों से बात करने के साथ समस्याओं का समाधान कराए। कमेटी के कर्मचारी किसानों के साथ अच्छे तरीके से पेश आने के बजाय उनको चक्कर लगवाते हैं। निगरानी के लिए यहां पर अन्य विभाग के किसी अधिकारी को नियुक्त करना चाहिए।
हाड़ तोड़ मेहनत करने के बाद किसान बड़ी उम्मीद के साथ मंडी में धान लेकर आ रहा लेकिन फसल का सरकारी रेट न मिलने से सिर्फ निराशा हाथ लग रही। हालात ये हैं कि मजबूरन उसे धान इतना सस्ता बेचना पड़ रहा कि प्रति एकड़ दस हजार रुपये तक का घाटा झेल रहा है। तमाम खर्च और धान से होने वाली आमदन को जोड़कर देखा गया तो किसान के हिस्से केवल नुकसान ही आ रहा है। यह स्थिति जिले के केवल एक किसान की नहीं बल्कि ज्यादातर की है। ज्यादा खराब स्थिति उन किसानों की है जिन्होंने जमीन ठेके पर ले रखी है।
जिले में औसतन प्रति एकड़ जमीन का 40 से 45 हजार रुपये का ठेका है। एक एकड़ में धान उगाने में किसान के कम से कम 10 से 12 हजार रुपये खर्च हो रहे हैं, जबकि प्रति एकड़ में पीआर धान 22 से 25 क्विंटल निकलती है। इस धान का सरकारी रेट लगाने पर कीमत 45 हजार रुपये के करीब बनती है। ऐसे में ठेके पर जमीन लेने वाले किसान फिर से कर्जदार में डूब रहे हैं। जिन किसानों की खुद की जमीन है, उनको जरूर कुछ राहत है।
एक एकड़ का खर्च
बीज : 1000
पौध तैयार : 1000
लगवाई : 3000
खाद डीएपी एक कट्टा-1250
डीएपी तीन कट्टे 270 गुमा 3 : 810
कीटनाशक तीन सप्रे : 1500
बिजली बिल :1000
मंडी में धान लाना..1000
डीजल पेट्रोल : 1000
कुल खर्च : 10560
नोट : इसमें किसान की मेहनत को नहीं जोड़ा गया है।
बोले-गठजोड़ पड़ रहा भारी
अमर उजाला की टीम ने अनाज मंडी और खेतों का मुआयना कर जानने की कोशिश की आखिरकार क्यों धान कम रेट पर बिक रही और किसान कर्ज तले दब रहा है। तो किसानों ने बताया कि एमएसपी के बावजूद पूरा रेट नहीं मिल रहा है। मार्केट कमेटी, डीएफएससी, आढ़ती और मिलर्स की मिलीभगत हम पर भारी पड़ रही है। किसानों का आरोप है कि अव्वल तो सरकारी खरीद होती नहीं है, होती है तो नमी का बहाना बना सस्ते रेट पर मिलर्स को दिया जाता है। बलड़ी के किसान विकास कुमार, घोघड़ीपुर से अरविंद कुमार समेत कई किसानों ने बताया कि मंडी में सुचारु खरीद का कोई सिस्टम नहीं है। गेट पास से लेकर बिक्री तक सिफारिश या लेनदेन से हो रही है।
नमी के नाम पर चल रहा खेल
मंडी में कट के नाम पर भी खेल चल रहा है। नमी बताकर किसान से सस्ते दाम पर धान खरीदकर पूरे पैसे सरकार से लिये जाते हैं। मिलर्स का तर्क होता है कि अभी नमी ज्यादा है जब सूख जाएगी तो वजन कम होगा, इसलिए कट के पैसे काटे जाते हैं। मंडी आए किसान सुनील सिंह की धान 1800 रुपये के हिसाब से बिकी जबकि आढ़ती ने उसका पर्चा सरकारी रेट 1888 का ही काटा। ऐसे में सरकार ने फसल का पूरा दाम दिया लेकिन वह आढ़ती और मिलर्स में बंट गया। यह खेल जिलेभर की मंडियों में चल रहा है।
सीएम साहब, ऐसे तो ठेका भी पूरा नहीं होता
नरूखेड़ी के किसान जसवंत की घर के पास पांच एकड़ जमीन है। दो एकड़ ठेके पर ली है जिसका रेट 45 हजार रुपये प्रति एकड़ है। धान का प्रति एकड़ खर्च 10 से 12 हजार रुपये है। जब मंडी में धान लेकर आया तो खरीदार नहीं मिला। कोई मिल भी गया तो सरकारी रेट नहीं देता। किसान ने कहा-सीएम साहब ऐसे तो किसान का जमीन का ठेका भी पूरा नहीं होता। कम से कम सरकारी रेट दिला दो। जसवंत ने कहा कि यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में लोग खेती छोड़ देंगे। उसने बताया कि अभी से वह कर्जदार हो रहा है तो आगे गेहूं की बिजाई करनी है, उसके लिए भी कर्ज उठाना पड़ेगा।
हेल्प डेस्क क्यों नहीं : रतन मान
भाकियू प्रदेशाध्यक्ष रत्न मान का कहना है कि किसानों को न तो मोबाइल की जानकारी है न पोर्टल की। वे इधर से उधर चक्कर लगाते हैं। प्रशासन मंडी में हेल्प डेस्क स्थापित करे। जो किसानों से बात करने के साथ समस्याओं का समाधान कराए। कमेटी के कर्मचारी किसानों के साथ अच्छे तरीके से पेश आने के बजाय उनको चक्कर लगवाते हैं। निगरानी के लिए यहां पर अन्य विभाग के किसी अधिकारी को नियुक्त करना चाहिए।