बढ़ती लागत और घटते दामों के बीच पिसता अन्नदाता कर्ज में डूबता जा रहा है। इस कर्ज को उतारने के लिए बड़े घाटे के बावजूद किसानों को धान उत्पादन के लिए विवश होना पड़ रहा है। क्योंकि यदि धान नहीं लगेगा तो आढ़ती भरोसा नहीं करेंगे। वह फसल पर ही रकम देते हैं। इस पर दो प्रतिशत ब्याज भी लगाते हैं। किसानों का कहना है कि अब जो होना था, वह तो हो ही चुका है, लेकिन हो सकता है कि परमात्मा गेहूं की फसल में उनकी सुन ले, जिससे वह कर्जमुक्त होकर जीविकोपार्जन कर सकें।
3.80 लाख रुपये का घाटा हुआ, आखिरकार कैसे होगी खेती
-काछवा रनवीर नगर निवासी किसान कुंदन लाल कहते हैं कि उन्होंने किराये पर जमीन लेकर 50 एकड़ धान लगाया। इसमें 1509 भी है और पीआर 126 और 121 भी है। 12.50 लाख रुपये तो जमीन का ठेका और 7.50 लाख लागत कुल 20 लाख रुपये लागत लगी। धान हुआ 900 क्विंटल जो 1800 के भाव में 16.20 लाख रुपये में बिका। करीब 3.80 लाख रुपये का घाटा तो मोटे तौर पर ही हो गया। ऐसे में आखिरकार खेती किसानी कैसे होगी। ऐसा कोई किसान नहीं है, जो कर्ज लेकर खेती किसानी के काम न करता है, इतने में कैसे कर्ज निपटेगा। अब तो गेहूं की फसल का ही आसरा है।
इस बार एक हजार रुपये प्रति क्विंटल का घाटा
-पक्का खेड़ा गांव निवासी किसान पाल सिंह कहते हैं कि उन्होंने दो एकड़ में 1509 धान लगाया था। क्योंकि पिछले साल यह धान 2700 रुपये प्रति क्विंटल बिका था, लेकिन आज धान लेकर आया हूं तो 1000 रुपये प्रति क्विंटल की कमी के साथ 1700 रुपये भाव लगाया जा रहा है। सरकार तो इस धान को खरीद ही नहीं रही है। राइस मिलर्स आढ़ती कह रहे हैं कि कोरोना के कारण निर्यात आदि नहीं हो पाने के कारण भाव नहीं मिल रहा है। परेशानी यह है कि आढ़तियों का कर्ज भी इससे नहीं चुकेगा। मुझ पर इस समय करीब चार लाख रुपये कर्ज हैं, जिस पर ब्याज चल रहा है। धान न लगाना इस लिए जरूरी है कि कर्ज देने वाले आढ़ती को भरोसा रहे।
बढ़ती लागत और घटते दामों के बीच पिसता अन्नदाता कर्ज में डूबता जा रहा है। इस कर्ज को उतारने के लिए बड़े घाटे के बावजूद किसानों को धान उत्पादन के लिए विवश होना पड़ रहा है। क्योंकि यदि धान नहीं लगेगा तो आढ़ती भरोसा नहीं करेंगे। वह फसल पर ही रकम देते हैं। इस पर दो प्रतिशत ब्याज भी लगाते हैं। किसानों का कहना है कि अब जो होना था, वह तो हो ही चुका है, लेकिन हो सकता है कि परमात्मा गेहूं की फसल में उनकी सुन ले, जिससे वह कर्जमुक्त होकर जीविकोपार्जन कर सकें।
3.80 लाख रुपये का घाटा हुआ, आखिरकार कैसे होगी खेती
-काछवा रनवीर नगर निवासी किसान कुंदन लाल कहते हैं कि उन्होंने किराये पर जमीन लेकर 50 एकड़ धान लगाया। इसमें 1509 भी है और पीआर 126 और 121 भी है। 12.50 लाख रुपये तो जमीन का ठेका और 7.50 लाख लागत कुल 20 लाख रुपये लागत लगी। धान हुआ 900 क्विंटल जो 1800 के भाव में 16.20 लाख रुपये में बिका। करीब 3.80 लाख रुपये का घाटा तो मोटे तौर पर ही हो गया। ऐसे में आखिरकार खेती किसानी कैसे होगी। ऐसा कोई किसान नहीं है, जो कर्ज लेकर खेती किसानी के काम न करता है, इतने में कैसे कर्ज निपटेगा। अब तो गेहूं की फसल का ही आसरा है।
इस बार एक हजार रुपये प्रति क्विंटल का घाटा
-पक्का खेड़ा गांव निवासी किसान पाल सिंह कहते हैं कि उन्होंने दो एकड़ में 1509 धान लगाया था। क्योंकि पिछले साल यह धान 2700 रुपये प्रति क्विंटल बिका था, लेकिन आज धान लेकर आया हूं तो 1000 रुपये प्रति क्विंटल की कमी के साथ 1700 रुपये भाव लगाया जा रहा है। सरकार तो इस धान को खरीद ही नहीं रही है। राइस मिलर्स आढ़ती कह रहे हैं कि कोरोना के कारण निर्यात आदि नहीं हो पाने के कारण भाव नहीं मिल रहा है। परेशानी यह है कि आढ़तियों का कर्ज भी इससे नहीं चुकेगा। मुझ पर इस समय करीब चार लाख रुपये कर्ज हैं, जिस पर ब्याज चल रहा है। धान न लगाना इस लिए जरूरी है कि कर्ज देने वाले आढ़ती को भरोसा रहे।