सुदूर गांव की तपती जिंदगी जब शहरी चमक दमक को निहारती है तो सपना संजोती है कि मेरा भी एक आशियाना शहर में हो, ताकि मैं भी समय के साथ कदमताल कर सकूं। यह सपना पूरा होता था हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (एचएसवीपी) द्वारा ड्रा पद्धति से होने वाले प्लाट आवंटन के सहारे, जहां कोई भी व्यक्ति सिर्फ 500 रुपये व्यय करके आवेदन कर सकता था। सिर्फ 10 प्रतिशत धनराशि अग्रिम जमा करके आवंटन प्रक्रिया का सहभागी बन सकता था। लेकिन एचएसवीपी के नए नियमों के बाद गरीब और मध्यम वर्गीय समाज के लोगों से ऐसे सपने देखने का अधिकार छीन लिया है। अब सिर्फ अमीर घरानों के ऐसे लोग ही प्लाट या कामर्शियल प्लाट ले सकेंगे, जो सिर्फ 120 दिनों में लाखों रुपये की अदायगी करने की क्षमता रखते हों। इससे विभाग को भी बड़ा घाटा हो रहा है। वहीं, दूसरी ओर आवासों के आवंटन में 90 फीसदी तक की गिरावट आ गई है। अधिकांश लोगों का कहना है कि सरकार को नियमों में सरलीकरण करना चाहिए।
यह था पुराना नियम-
कोई भी व्यक्ति 500 रुपये में आवेदन पत्र खरीद कर भर सकता था। आवासीय प्लाटों में ड्रा फार्म के साथ सिर्फ 10 प्रतिशत अग्रिम राशि जमा करनी होती थी। 15 प्रतिशत राशि आवंटन तिथि से 30 दिनों के अंदर जमा करनी होती थी। शेष 75 प्रतिशत राशि छह वार्षिक किश्तों में देनी होती थी। वाणिज्यिक प्लाट, शॉप में बोली लगाकर नीलामी होती थी, जिसमें मौके पर 10 प्रतिशत राशि जमा करके कोई भी बोली लगा सकता था, 15 प्रतिशत राशि आवंटन के 30 दिनों के अंदर व 75 प्रतिशत राशि 4 सालों में आठ छमाही किश्तों में देनी होती थी। बूथ/क्योस्क (छोटी दुकानें आदि) में भी बोली लगाने वाली यही प्रक्रिया थी। उन्हें 75 प्रतिशत राशि पांच साल में 10 आसान किश्तों में देनी होती थी। जिससे इसमें गरीब व मध्यम वर्ग का व्यक्ति भी शहरों में आशियाना व दुकान बनाने के सपने संजोता था।
यह है नया नियम-
हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण ने नए नियमों के तहत पुरानी आवेदन करने व बोली लगाने वाली व्यवस्थाओं को समाप्त करके ई-नीलामी की प्रक्रिया ऑन लाइन शुरू की है। इसके तहत इच्छुक व्यक्ति को ऑनलाइन ही आवेदन करना होता है। सबसे अहम नियम यह है कि अब एचएसवीपी रकम लेने के लिए सालों का इंतजार नहीं करता है, ना ही किस्तें बनाता है, बल्कि ऑनलाइन आवंटन लेने वालों को प्लाट या भवन की पूरी कीमत सिर्फ 4 माह यानी 120 दिनों में प्राधिकरण को देनी होगी। यह रकम 35-40 लाख या उससे अधिक ही होती है।
पहले से प्लाट हो गए कई गुना महंगे
पिछली बार के आवंटन में 100 मीटर वाले एक प्लाट की न्यूनतम कीमत 35 से 40 लाख रुपये रखी गई थी। पिछले नियमों में प्लाट व कामर्शियल भवन की कीमत कलक्टर रेट पर आधारित होती है, लेकिन अब इसे मार्केट रेट पर आधारित कर दिया गया है। शहरों में प्लाटों, भवनों का मार्केट कहीं अधिक होने के कारण एचएसवीपी से प्लाट लेना हर किसी के वश की बात नहीं रही है। इतनी अधिक धनराशि सिर्फ चार महीने में चुकाना मध्यम वर्ग के लोगों के लिये भी काफी मुश्किल हो गया है। निम्न वर्ग के लोग तो सोच ही नहीं सकते।
इस तरह हो रहा एचएसवीपी को करोड़ों का घाटा
2014 की बात करें तो 1000 प्लाट का आवंटन किया गया था। इन प्लाटों को लेने के लिए विभाग के पास 1.18 लाख आवेदन पत्र आए थे। एक आवेदन पत्र 500 रुपये में बिकता था, यानी विभाग के पास 5.90 लाख करोड़ रुपये तो सिर्फ आवेदन पत्रों की बिक्री से ही आ गए थे। जिन्हें विभाग को वापस भी नहीं करना होता है। इसके अलावा 10 प्रतिशत अग्रिम धनराशि के रूप में करोड़ों की राशि एचएसवीपी को मिलती थी, वह भी करीब छह महीने तक तो प्राधिकरण के खाते में रहती ही थी। जिसका ब्याज भी प्राधिकरण को मिलता था, उसके बाद ही उन लोगों को अग्रिम राशि वापस की जाती थी, जिन्हें प्लाट नहीं मिल पाते थे। लेकिन नई व्यवस्था से यह धनराशि अब विभाग के पास नहीं आ रही है।
अब एचएसवीपी में सरकार ने आवासीय व कामर्शियल प्लाट्स आदि के आवंटन की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए ऑनलाइन कर दिया है। अब कोई भी ई-नीलामी के जरिये इसमें सहभागिता कर सकता है। ड्रा निकालने की व्यवस्था को खत्म कर दिया गया है। अब आवंटन लेने वाले को आवंटित प्लाट से लेकर बूथ तक जो भी आवंटन होगा, उसकी पूरी राशि 120 दिनों में जमा करनी होगी।
-सुशील भारद्वाज डिप्टी सुपरिंटेंडेंट एचएसवीपी करनाल।
सुदूर गांव की तपती जिंदगी जब शहरी चमक दमक को निहारती है तो सपना संजोती है कि मेरा भी एक आशियाना शहर में हो, ताकि मैं भी समय के साथ कदमताल कर सकूं। यह सपना पूरा होता था हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (एचएसवीपी) द्वारा ड्रा पद्धति से होने वाले प्लाट आवंटन के सहारे, जहां कोई भी व्यक्ति सिर्फ 500 रुपये व्यय करके आवेदन कर सकता था। सिर्फ 10 प्रतिशत धनराशि अग्रिम जमा करके आवंटन प्रक्रिया का सहभागी बन सकता था। लेकिन एचएसवीपी के नए नियमों के बाद गरीब और मध्यम वर्गीय समाज के लोगों से ऐसे सपने देखने का अधिकार छीन लिया है। अब सिर्फ अमीर घरानों के ऐसे लोग ही प्लाट या कामर्शियल प्लाट ले सकेंगे, जो सिर्फ 120 दिनों में लाखों रुपये की अदायगी करने की क्षमता रखते हों। इससे विभाग को भी बड़ा घाटा हो रहा है। वहीं, दूसरी ओर आवासों के आवंटन में 90 फीसदी तक की गिरावट आ गई है। अधिकांश लोगों का कहना है कि सरकार को नियमों में सरलीकरण करना चाहिए।
यह था पुराना नियम-
कोई भी व्यक्ति 500 रुपये में आवेदन पत्र खरीद कर भर सकता था। आवासीय प्लाटों में ड्रा फार्म के साथ सिर्फ 10 प्रतिशत अग्रिम राशि जमा करनी होती थी। 15 प्रतिशत राशि आवंटन तिथि से 30 दिनों के अंदर जमा करनी होती थी। शेष 75 प्रतिशत राशि छह वार्षिक किश्तों में देनी होती थी। वाणिज्यिक प्लाट, शॉप में बोली लगाकर नीलामी होती थी, जिसमें मौके पर 10 प्रतिशत राशि जमा करके कोई भी बोली लगा सकता था, 15 प्रतिशत राशि आवंटन के 30 दिनों के अंदर व 75 प्रतिशत राशि 4 सालों में आठ छमाही किश्तों में देनी होती थी। बूथ/क्योस्क (छोटी दुकानें आदि) में भी बोली लगाने वाली यही प्रक्रिया थी। उन्हें 75 प्रतिशत राशि पांच साल में 10 आसान किश्तों में देनी होती थी। जिससे इसमें गरीब व मध्यम वर्ग का व्यक्ति भी शहरों में आशियाना व दुकान बनाने के सपने संजोता था।
यह है नया नियम-
हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण ने नए नियमों के तहत पुरानी आवेदन करने व बोली लगाने वाली व्यवस्थाओं को समाप्त करके ई-नीलामी की प्रक्रिया ऑन लाइन शुरू की है। इसके तहत इच्छुक व्यक्ति को ऑनलाइन ही आवेदन करना होता है। सबसे अहम नियम यह है कि अब एचएसवीपी रकम लेने के लिए सालों का इंतजार नहीं करता है, ना ही किस्तें बनाता है, बल्कि ऑनलाइन आवंटन लेने वालों को प्लाट या भवन की पूरी कीमत सिर्फ 4 माह यानी 120 दिनों में प्राधिकरण को देनी होगी। यह रकम 35-40 लाख या उससे अधिक ही होती है।
पहले से प्लाट हो गए कई गुना महंगे
पिछली बार के आवंटन में 100 मीटर वाले एक प्लाट की न्यूनतम कीमत 35 से 40 लाख रुपये रखी गई थी। पिछले नियमों में प्लाट व कामर्शियल भवन की कीमत कलक्टर रेट पर आधारित होती है, लेकिन अब इसे मार्केट रेट पर आधारित कर दिया गया है। शहरों में प्लाटों, भवनों का मार्केट कहीं अधिक होने के कारण एचएसवीपी से प्लाट लेना हर किसी के वश की बात नहीं रही है। इतनी अधिक धनराशि सिर्फ चार महीने में चुकाना मध्यम वर्ग के लोगों के लिये भी काफी मुश्किल हो गया है। निम्न वर्ग के लोग तो सोच ही नहीं सकते।
इस तरह हो रहा एचएसवीपी को करोड़ों का घाटा
2014 की बात करें तो 1000 प्लाट का आवंटन किया गया था। इन प्लाटों को लेने के लिए विभाग के पास 1.18 लाख आवेदन पत्र आए थे। एक आवेदन पत्र 500 रुपये में बिकता था, यानी विभाग के पास 5.90 लाख करोड़ रुपये तो सिर्फ आवेदन पत्रों की बिक्री से ही आ गए थे। जिन्हें विभाग को वापस भी नहीं करना होता है। इसके अलावा 10 प्रतिशत अग्रिम धनराशि के रूप में करोड़ों की राशि एचएसवीपी को मिलती थी, वह भी करीब छह महीने तक तो प्राधिकरण के खाते में रहती ही थी। जिसका ब्याज भी प्राधिकरण को मिलता था, उसके बाद ही उन लोगों को अग्रिम राशि वापस की जाती थी, जिन्हें प्लाट नहीं मिल पाते थे। लेकिन नई व्यवस्था से यह धनराशि अब विभाग के पास नहीं आ रही है।
अब एचएसवीपी में सरकार ने आवासीय व कामर्शियल प्लाट्स आदि के आवंटन की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए ऑनलाइन कर दिया है। अब कोई भी ई-नीलामी के जरिये इसमें सहभागिता कर सकता है। ड्रा निकालने की व्यवस्था को खत्म कर दिया गया है। अब आवंटन लेने वाले को आवंटित प्लाट से लेकर बूथ तक जो भी आवंटन होगा, उसकी पूरी राशि 120 दिनों में जमा करनी होगी।
-सुशील भारद्वाज डिप्टी सुपरिंटेंडेंट एचएसवीपी करनाल।