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कम दूध देने वाली देसी गायें अब साहीवाल नस्ल को बढ़ावा देने के काम आएंगी। ऐसा संभव होगा सरोगेसी के जरिये। हरियाणा के हिसार में लाला लाजपतराय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास) के वैज्ञानिक अधिक दूध देने वाली साहीवाल नस्ल की गायों की संख्या बढ़ाने के लिए ऐसा प्रयोग कर रहे हैं। इसके तहत इन देसी गायों में सरोगेसी के जरिये साहीवाल नस्ल के भ्रूण को विकसित कराया जाएगा। तीन साल की इस परियोजना के अगले साल पूरा होने के बाद दूध उत्पादन में करीब तीन गुना वृद्घि की संभावना जताई गई है।
हरियाणा नस्ल की देसी गायों का प्रतिदिन औसतन दूध उत्पादन तीन लीटर है। इस प्रजाति की गायें अधिकतम पांच लीटर तक दूध देती हैं। जबकि शारीरिक बनावट के आधार पर चारा अन्य प्रजाति की गायों के बराबर ही खाती हैं। इससे इन्हें पालने वाले किसानों को कोई फायदा नहीं मिलता।
जब तक खेती में बैलों का प्रयोग हो रहा था, इन गायों के बछड़े उपयोगी थे, लेकिन मशीनों के बढ़े प्रयोग के बाद इनके बछड़े भी बेकार हो गए। कम दूध उत्पादन व खास उपयोगिता नहीं होने के कारण पशुपालक इन्हें सड़क पर खुला छोड़ देते हैं।
इस समस्या से निपटने में सरोगेसी तकनीक से बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है। लुवास के वैज्ञानिकों ने प्रथम चरण में हरियाणा नस्ल की गायों से सरोगेसी के जरिये साहीवाल नस्ल के बछड़े-बछिया का जन्म कराया है। अब इसे वृहद स्तर पर लागू करने की तैयारी है।
बछियों की संख्या बढ़ने से होगा बदलाव
इस प्रयोग का निर्देशन कर रहे लुवास के डायरेक्टर रिसर्च डॉ. नरेश जिंदल ने बताया कि सरोगेसी में पहले साल से बछिया पैदा होने की संभावना 80 प्रतिशत होगी। क्योंकि इसके लिए बछड़ों की संख्या कम होने और बछियों की संख्या बढ़ने से एक तो दूध उत्पादन बढ़ेगा, दूसरे सड़कों पर छुट्टा घूमने वाले सांड़ों की संख्या में भी कमी आएगी।
गोशालाओं में बढ़ेगा दूध उत्पादन
हिसार की गोशालाओं में करीब 55 हजार गोवंशीय पशु हैं। इनमें से बड़ी संख्या में हरियाणा नस्ल की देसी गाये हैं। इनकी देखरेख में खर्च तो हो रहा है, लेकिन दूध का उत्पादन काफी कम है। इसलिए सरोगेसी के जरिये नस्ल संवर्द्घन की शुरुआत इन्हीं गोशालाओं से होगी। प्रयोग सफल रहने पर सड़कों पर घूमने वाले गायों की संख्या में भी कमी आएगी।
अभी यह परियोजना प्रायोगिक स्तर पर है। हरियाणा नस्ल की गायों के दूध उत्पादन की क्षमता कम होने के चलते ही लोग इन्हें सड़कों पर छोड़ रहे हैं। प्रयोग सफल रहा तो आने वाले वर्षों में न केवल गायों की दूध उत्पादन क्षमता में तीन गुना वृद्घि होगी, बल्कि सड़कों पर से लावारिस पशुओं की समस्या में भी काफी हद तक कमी आ जाएगी।
-डॉ. नरेश जिंदल, डायरेक्टर रिसर्च, लुवास