फतेहाबाद। सिरसा सीट पर उम्मीद के मुताबिक कमल खिल ही गया। लेकिन सिरसा की सियासी जमीन पर कमल खिलाना इतना आसान नहीं था, जितना वोटों का बड़ा अंतर दिखा रहा है। इस सीट पर जीत के लिए पांच निर्णायक फैक्टर रहे जिन्होंने कांग्रेस-इनेलो के इस गढ़ को ध्वस्त कर भगवा परचम फहरा दिया।
डिसाइडिंग फैक्टर : 1
खुद को डेरा सच्चा सौदा से अलग दिखाकर सिख वोटों को लामबंद करने में कामयाब रही बीजेपी
लोकसभा चुनावों से पहले हर जुबां पर ये सवाल था कि डेरा प्रमुख को जेल होने के बाद अब बीजेपी को लेकर डेरा सच्चा सौदा का क्या रुख रहेगा। लेकिन डेरा से पहले ये जवाब खुद बीजेपी ने दे दिया। सारे चुनाव के दौरान बीजेपी ने डेरा सच्चा सौदा से दूरी बनाए रखी और इसका फायदा उन्हें चुनाव में साफ तौर पर देखने को मिला। बीजेपी की रणनीति डेरा से नाराज चल रहे सिक्ख समुदाय को अपने पाले में करने की थी। इसी के लिए उन्होंने इनेलो के सांझेदार रहे अकाली दल का गठबंधन पहले इनेलो से तुड़वाया और फिर बाद में खुद अकालीदल को साथ जोड़ लिया। इतना ही नहीं, पहली बार ऐसा हुआ कि इनेलो के खिलाफ सिरसा सीट पर सुखबीर बादल ने प्रचार किया। इससे साफ पता चलता है कि बीजेपी की रणनीति शुरू से ही डेरा के विरोधी रहे सिख समाज को अपने पाले में करने की थी और वो इसमें कामयाब भी रही। आपको बता दें कि सिरसा संसदीय क्षेत्र पर सिख समाज के तकरीबन डेढ़ लाख वोट हैं। जिसका अधिकतर हिस्सा बीजेपी के खाते में एकमुश्त आया है। दूसरी ओर लगातार डेरा के सत्संगों में जाकर कांग्रेस प्रत्याशी अशोक तंवर पहले ही सिक्ख वोटों से हाथ धो चुके थे और डेरा प्रबंधन से भी उन्हें खुला समर्थन नहीं मिल सका जिसकी उम्मीद वो कर रहे थे।
डिसाइडिंग फैक्टर : 2
मोदी फैक्टर ने एकतरफा कर दी बीजेपी के पक्ष में हवा
यूं तो नरेंद्र मोदी फैक्टर पूरे देश में चला। लेकिन सिरसा सीट, जहां पर आजतक बीजेपी प्रत्याशी जीतना तो दूर, सम्मानजनक स्थिति में भी नहीं पहुंच सका था। वहां पर मोदी फैक्टर कितना काम करेगा, इसपर सबकी निगाहें थी। बीजेपी के लिए बंजर माने जानी वाली सिरसा की सियासी जमीन पर मोदी फैक्टर ने कमल खिला दिया। खुद बीजेपी की विजयी प्रत्याशी सुनीता दुग्गल इस बात को मानती भी हैं। ‘अमर उजाला’ से बातचीत में उन्होंने कहा भी है कि पीएम मोदी की नीतियों पर जनता की मोहर है ये जीत।
डिसाइडिंग फैक्टर : 3
बीजेपी का बूथ मैनेजमेंट, आधे बूथों पर वर्कर तक नहीं दिखे कांग्रेस के
इस लोकसभा चुनाव में वोटिंग के दिन बीजेपी का बेहतरीन बूथ मैनेजमेंट सिरसा सीट पर जीत की सबसे बड़ी वजह बनकर उभरा। बीजेपी ने वोटिंग केे दिन की तैयारी पिछले कई महीनों से शुरू कर दी थी और ‘कयामत के दिन’ उन्होंने इसका सबसे अधिक फायदा भी उठाया। बीजेपी की बूथ मैनेजमेंट का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि फतेहाबाद हलके के प्रत्येक बूथ पर सुबह साढ़े छह बजे बीजेपी के तीन कार्यकर्ता मौजूद थे। वोटिंग वाले दिन संगठन मंत्री सुरेश भट्ट ने सुबह खुद चार बजे जिलाध्यक्षों को फोनकर उठाया और उनसे आगे जुटने को कहा। जिसके बाद जिलाध्यक्षों ने मंडल अध्यक्षों को उठाया और मंडल अध्यक्षों ने फिर पन्ना प्रमुखों को। दूसरी ओर वोटिंग वाले दिन आधे से अधिक बूथों पर कांग्रेस के तंबू तक ही नहीं थे, कार्यकर्ता तो दूर की बात थी। बीजेपी की इस बूथ मैनेजमेंट के कारण बीजेपी वर्कर अधिक से अधिक मतदान करवा सके और यही एक विशाल जीत की नींव बना।
डिसाइडिंग फैक्टर : 4
दुग्गल का पूरे पांच साल तक सिरसा सीट पर सक्रिय रहना
रतिया विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद सुनीता दुग्गल घर पर नहीं बैठी। वो पूरे पांच साल तक सिरसा संसदीय क्षेत्र में लगातार काम करती रही। चुनाव के दौरान इसका फायदा भी उन्हें मिला। मोदी फैक्टर के साथ साथ सिरसा संसदीय क्षेत्र के प्रत्येक गांव और शहर में सुनीता दुग्गल की अपनी पहचान भी बन चुकी थी जिसने उनके लिए सोने पर सुहागा का काम किया।
डिसाइडिंग फैक्टर : 5
टिकट का एलान होते ही बीजेपी की गुटबाजी खत्म, एक साथ सकारात्मक मेहनत शुरू
सुनीता दुग्गल को हमेशा से ही सुभाष बराला के विरोधी गुट का माना जाता है। पिछले पांच सालों में कई बार ये बातें निकलकर सामने आई कि सुनीता दुग्गल को टिकट मिलने में बराला गुट अड़चनें पैदा कर रहा है। लेकिन एक बार जब दुग्गल को टिकट मिल गई तो पार्टी के अंदर गुटबाजी एकदम से खत्म हो गई और प्रत्येक नेता उनके लिए सकारात्मक प्रचार में जुट गया। जिलाध्यक्ष वेद फुलां की बेहतरीन संगठनात्मक क्षमता का ही परिणाम है कि फतेहाबाद हलके से सुनीता दुग्गल की जीत 75896 मतों की हुई है। उधर पिछली बार टोहाना सीट कांग्रेस के खाते में गई थी, लेकिन इस बार टोहाना में भी बीजेपी का परचम लहराया है। रतिया से भी 35 हजार मतों की जीत ने दुग्गल को मजबूत किया है।
फतेहाबाद। सिरसा सीट पर उम्मीद के मुताबिक कमल खिल ही गया। लेकिन सिरसा की सियासी जमीन पर कमल खिलाना इतना आसान नहीं था, जितना वोटों का बड़ा अंतर दिखा रहा है। इस सीट पर जीत के लिए पांच निर्णायक फैक्टर रहे जिन्होंने कांग्रेस-इनेलो के इस गढ़ को ध्वस्त कर भगवा परचम फहरा दिया।
डिसाइडिंग फैक्टर : 1
खुद को डेरा सच्चा सौदा से अलग दिखाकर सिख वोटों को लामबंद करने में कामयाब रही बीजेपी
लोकसभा चुनावों से पहले हर जुबां पर ये सवाल था कि डेरा प्रमुख को जेल होने के बाद अब बीजेपी को लेकर डेरा सच्चा सौदा का क्या रुख रहेगा। लेकिन डेरा से पहले ये जवाब खुद बीजेपी ने दे दिया। सारे चुनाव के दौरान बीजेपी ने डेरा सच्चा सौदा से दूरी बनाए रखी और इसका फायदा उन्हें चुनाव में साफ तौर पर देखने को मिला। बीजेपी की रणनीति डेरा से नाराज चल रहे सिक्ख समुदाय को अपने पाले में करने की थी। इसी के लिए उन्होंने इनेलो के सांझेदार रहे अकाली दल का गठबंधन पहले इनेलो से तुड़वाया और फिर बाद में खुद अकालीदल को साथ जोड़ लिया। इतना ही नहीं, पहली बार ऐसा हुआ कि इनेलो के खिलाफ सिरसा सीट पर सुखबीर बादल ने प्रचार किया। इससे साफ पता चलता है कि बीजेपी की रणनीति शुरू से ही डेरा के विरोधी रहे सिख समाज को अपने पाले में करने की थी और वो इसमें कामयाब भी रही। आपको बता दें कि सिरसा संसदीय क्षेत्र पर सिख समाज के तकरीबन डेढ़ लाख वोट हैं। जिसका अधिकतर हिस्सा बीजेपी के खाते में एकमुश्त आया है। दूसरी ओर लगातार डेरा के सत्संगों में जाकर कांग्रेस प्रत्याशी अशोक तंवर पहले ही सिक्ख वोटों से हाथ धो चुके थे और डेरा प्रबंधन से भी उन्हें खुला समर्थन नहीं मिल सका जिसकी उम्मीद वो कर रहे थे।
डिसाइडिंग फैक्टर : 2
मोदी फैक्टर ने एकतरफा कर दी बीजेपी के पक्ष में हवा
यूं तो नरेंद्र मोदी फैक्टर पूरे देश में चला। लेकिन सिरसा सीट, जहां पर आजतक बीजेपी प्रत्याशी जीतना तो दूर, सम्मानजनक स्थिति में भी नहीं पहुंच सका था। वहां पर मोदी फैक्टर कितना काम करेगा, इसपर सबकी निगाहें थी। बीजेपी के लिए बंजर माने जानी वाली सिरसा की सियासी जमीन पर मोदी फैक्टर ने कमल खिला दिया। खुद बीजेपी की विजयी प्रत्याशी सुनीता दुग्गल इस बात को मानती भी हैं। ‘अमर उजाला’ से बातचीत में उन्होंने कहा भी है कि पीएम मोदी की नीतियों पर जनता की मोहर है ये जीत।
डिसाइडिंग फैक्टर : 3
बीजेपी का बूथ मैनेजमेंट, आधे बूथों पर वर्कर तक नहीं दिखे कांग्रेस के
इस लोकसभा चुनाव में वोटिंग के दिन बीजेपी का बेहतरीन बूथ मैनेजमेंट सिरसा सीट पर जीत की सबसे बड़ी वजह बनकर उभरा। बीजेपी ने वोटिंग केे दिन की तैयारी पिछले कई महीनों से शुरू कर दी थी और ‘कयामत के दिन’ उन्होंने इसका सबसे अधिक फायदा भी उठाया। बीजेपी की बूथ मैनेजमेंट का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि फतेहाबाद हलके के प्रत्येक बूथ पर सुबह साढ़े छह बजे बीजेपी के तीन कार्यकर्ता मौजूद थे। वोटिंग वाले दिन संगठन मंत्री सुरेश भट्ट ने सुबह खुद चार बजे जिलाध्यक्षों को फोनकर उठाया और उनसे आगे जुटने को कहा। जिसके बाद जिलाध्यक्षों ने मंडल अध्यक्षों को उठाया और मंडल अध्यक्षों ने फिर पन्ना प्रमुखों को। दूसरी ओर वोटिंग वाले दिन आधे से अधिक बूथों पर कांग्रेस के तंबू तक ही नहीं थे, कार्यकर्ता तो दूर की बात थी। बीजेपी की इस बूथ मैनेजमेंट के कारण बीजेपी वर्कर अधिक से अधिक मतदान करवा सके और यही एक विशाल जीत की नींव बना।
डिसाइडिंग फैक्टर : 4
दुग्गल का पूरे पांच साल तक सिरसा सीट पर सक्रिय रहना
रतिया विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद सुनीता दुग्गल घर पर नहीं बैठी। वो पूरे पांच साल तक सिरसा संसदीय क्षेत्र में लगातार काम करती रही। चुनाव के दौरान इसका फायदा भी उन्हें मिला। मोदी फैक्टर के साथ साथ सिरसा संसदीय क्षेत्र के प्रत्येक गांव और शहर में सुनीता दुग्गल की अपनी पहचान भी बन चुकी थी जिसने उनके लिए सोने पर सुहागा का काम किया।
डिसाइडिंग फैक्टर : 5
टिकट का एलान होते ही बीजेपी की गुटबाजी खत्म, एक साथ सकारात्मक मेहनत शुरू
सुनीता दुग्गल को हमेशा से ही सुभाष बराला के विरोधी गुट का माना जाता है। पिछले पांच सालों में कई बार ये बातें निकलकर सामने आई कि सुनीता दुग्गल को टिकट मिलने में बराला गुट अड़चनें पैदा कर रहा है। लेकिन एक बार जब दुग्गल को टिकट मिल गई तो पार्टी के अंदर गुटबाजी एकदम से खत्म हो गई और प्रत्येक नेता उनके लिए सकारात्मक प्रचार में जुट गया। जिलाध्यक्ष वेद फुलां की बेहतरीन संगठनात्मक क्षमता का ही परिणाम है कि फतेहाबाद हलके से सुनीता दुग्गल की जीत 75896 मतों की हुई है। उधर पिछली बार टोहाना सीट कांग्रेस के खाते में गई थी, लेकिन इस बार टोहाना में भी बीजेपी का परचम लहराया है। रतिया से भी 35 हजार मतों की जीत ने दुग्गल को मजबूत किया है।